Vinit Abha Upadhyay
Ranchi: झारखंड हाईकोर्ट ने सर्वेक्षण आयुक्त नियुक्त करने के ट्रायल कोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए फैसला सुनाया है. हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए इस बात पर जोर दिया कि आयुक्त की नियुक्ति का उद्देश्य साक्ष्य एकत्र करना नहीं है, बल्कि उन मामलों को स्पष्ट करना है, जो स्थानीय प्रकृति के हैं और जिन्हें केवल मौके पर स्थानीय जांच द्वारा ही किया जा सकता है.
दरअसल देवघर सिविल कोर्ट में एक भूमि विवाद से जुड़े मामले में मुकदमा दायर किया गया.
जिसके तहत उन्होंने भूमि के कुछ भूखंडों पर वादी के टाइटल की घोषणा करने कथित अनधिकृत कब्जेदारों के रूप में प्रतिवादियों से कब्जा वापस लेने और एक स्थायी निषेधाज्ञा प्राप्त करने की मांग की थी. इस मामले की सुनवाई के दौरान देवघर सिविल कोर्ट ने पिछले वर्ष भूमि के सर्वे के लिए प्लीडर कमिश्नर की नियुक्ति का आदेश दे दिया, जिसके खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई.
सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा प्लीडर कमिश्नर की नियुक्ति के लिए आवेदन में ही आवेदक ने यह उल्लेख नहीं किया कि वह किस उद्देश्य से सर्वेक्षण आयुक्त की रिपोर्ट मांगना चाहता है. ट्रायल कोर्ट का कोई निष्कर्ष नहीं है कि सर्वेक्षण आयुक्त की रिपोर्ट दोनों पक्षों के संबंधित दावों की सही और न्यायसंगत सराहना के लिए कैसे आवश्यक थी.
लेकिन हाईकोर्ट ने यह पाया कि मुकदमे की संपत्ति की पहचान और स्थान के संबंध में पक्षों के बीच कोई विवाद नहीं है, इसलिए जिस आदेश के तहत ट्रायल कोर्ट ने आवेदन को अनुमति दी है. उसमें हस्तक्षेप की आवश्यकता है. इसलिए प्लीडर कमिश्नर नियुक्त करने के आदेश को रद्द किया जाता है. इस मामले की सुनवाई हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस सुभाष चंद की कोर्ट में हुई.
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