Pravin Kumar
देश दुनिया जब भी बिरसा मुंडा को याद करती है तो उलिहातू,चलकद और डोंबारीबुरू का उल्लेख जरूर होता है. आमतौर पर इतिहासकार हों या बिरसा मुंडा के क्रातिदर्शी विचारों के अनुयायी उन दिनों के बारे में बात नहीं करते जिसने बिरसा मुंडा के जीवन को परिपक्वता दिया और अपने लोगों को सिखाया उलगुलान का अंत नहीं और मुंडाओं का यह भरोसा पक्का हो गया कि बिरसा फिर लौटेंगे और सूर्य की तरह चमकते हुए आदिवासियों के हर संघर्ष में विचारों के रूप में मार्गदर्शन करेंगे.
आज भी रोगतो में मौजूद है वह घर जिसमें अपनी पत्नी के साथ बिरसा मुंडा रहते थे
9 जनवरी 1900 को सइलरकब के डोंबारीबुरू पर हजारों आदिवासी जमा हुए थे. औरतें और बच्चे भी थे. तीन दिनों से आदिवासियों का काफिला डोंबारीबुरू पर जमा हो रहा था. लोग नाच और गा रहे थे. साथ ही उलगुलान की रणनीति भी बन रही थी. लेकिन 9 जनवरी की सुबह सब पूरा सइलरकब कोहरे के आगोश में था. अंग्रेज पुलिस ने धावा बोल दिया. बिना किसी सूचना के गोलीबारी शुरू कर दी गयी. इस घटना में कितने लोग मरे इसे लेकर अलग- अलग दावे हैं. यदि आदिवासियों के विवरण को देखा जाए तो उसमें कहा गया था कि पूरा डोंबारीबुरू रक्त से नहा उठा था और इसमें नवजात बच्चों और उनकी माताओं को भी नहीं बख्शा गया था. आदिवासियों के बीच माना जाता है कि बिरसा मुंडा को पहले ही डोंबारी से सुरक्षित भेज दिया गया था. बिरसा ने गिरफ्तारी से दो साल पहले से ही अपना नया ठिकना पोड़ाहाट के जंगलों को बनाया था. रोगतो के ग्रामीणों ने बिरसा मुंडा को खेती के लिए जमीन भी दिया था. जिस घर में बिरसा मुंडा रहते थे वह घर आज भी रोगतो में मौजूद है.
बिरसा मुंडा अपनी पत्नी के साथ रोगतो में रहते थे. पोड़ाहाट में ही बिरसाइत धर्म संहिता और अपने शिष्यों को दिक्षा देने का काम बिरसा मुंडा ने किया था.इसके बाद बिरसा मुंडा के इतिहास की चर्चा कम की जाती है. उस पर लिखा भी कम गया है. यही कारण है कि पोड़ाहाट के घने जंगलों के बीच रोगतो की ज्यादा चर्चा नहीं होती है. बस इतना उल्लेख मिलता है कि पांच-पांच रूपये की लालच में सात मुंडाओं की मुखबरी के बाद बिरसा मुंडा को इसी रोगतो के निकट शंकरा से गिरफ्तार कर लिया गया. रोगतो गांव में बिरसा मुंडा ने क्या किया और लोगों को फिर से संगठित करने के लिए क्या प्रयास किए इस पर ज्यादा शोध नहीं हुआ है.
रोगदो दुनुब के नाम से जाना जाता है बिरसा की आखिरी बड़ी बैठक
रोगतो की चर्चा बिरसा मुंडा के प्रसिद्ध जीवनीकार डॉ. कुमार सुरेश सिंह ने अपनी पुस्तक बिरसा मुंडा और उनका उलगुलान में भी किया है. इसमें रोगदो दुनुब यानी रोगतो में आदिवासियों की बड़ी प्रतिनिधि सभा का उल्लेख किया गया है. जिसमें बिरसाइत पंथ को लेकर विस्तार से दिशा निर्देश दिए जाने का उल्लेख है. साथ ही आगे की लड़ाइयों के लिए भी आदिवासियों को बड़ी तैयार करने की बात कही गयी है.
आज रोगतो किस हालत में है और बिरसा मुंडा की याद किस तरह जीवंत है यह जानना दिलचस्प है.साथ ही बिरसा की जिंदगी में रोगतो के महत्व को जानना काफी रोचक है. इन इलाकों में बिरसा मुंडा अपनी पत्नी के साथ गिरफ्तारी के आखिरी दिनों में रहे थे.
हजारीबाग जेल से छूटने के बाद अपना नया ठिकना बनाया था पोड़ाहाट को
रोगतो के टीपरू मुंडा बताते हैं कि बिरसा जब हजारीबाग जेल से लौटे थे, तब अपने रहने का ठिकाना रोगतो को बनाया था. बिरसा मुंडा के साथ उनकी पत्नी भी रोगतो में ही रहती थी. रोगतो में बिरसा मुंडा को जमीन भी मिली था. पुलिस बिरसा मुंडा की गिरफ्तारी से पहले गांव के मलकू मुंडा को गिरफ्तार करके ले गयी थी. रोगतो गांव में रहने वाले सभी परिवार बिरसा धर्म मानते हैं. गांव के विकास के बारे में पूछने पर टिपरू कहते हैं कि गांव के किसी भी लोग के पास राशन कार्ड नहीं है. गांव में चापाकल नहीं है. सड़क भी नहीं बना हुआ है. गांव में बिजली नहीं पहुंची है. सोलर सिस्टम का समान गांव लाकर 5 साल पहले फेंक दिया गया लेकिन उसे चालू नहीं किया गया.
बिरसा की गिरफ्तारी के पहले इलाके में अग्रेजों ने किया था दमन
शंकरा के ग्रामप्रधान कहते हैं कि बिरसा मुंडा रात के समय शंकरा में रहते थे. जब पुलिस उनको खोजने आती थी, तब वह मांदर के पिछे छुप जाते थे. दिन के वक्त वह रोगतो चले जाते थे. जब अंग्रेज कैप्टन रोसे को इस बात की जानकारी मिली, तब अंग्रेज सैनिकों को बिरसा को खोजने में लगाया गया. इस खोज कार्य में चक्रधरपुर मिलिट्री पुलिस भी लगी हुई थी. पवर्जो से मिली जानकारी के अनुसार, बिरसा अपना धर्मिक उपदेश शंकरा और रोगतो में दिया करते थे. उस दौर में इलाके में अंग्रेजी फौजों के द्वारा काफी दमन किया गया. गांव को खाली कर के शंकरा और रोगतो के लोगों को शिविर में रखा गया. आज भी हमलोग बिरसा भगवान के उपदेश का अनुसरण करते हैं.
2 फरवरी के पहले हफ्ते में हुई थी बिरसा मुंडा की गिरफ्तारी
बिरसा मुंडा ने अपनी गिरफ्तारी से पहले दो साल पहले से ही अपना ठिकाना रोगतो को बनाया था. यह इलाका पोराहाट जंगल में पड़ता है. जरीकेल,हलमत,मानमारू,शंकरा में रोगतो जैसे दर्जनों गांव में बिरसा समर्थक मौजूद थे. इन इलाकों में आंदोलन को पूरी तरह कुचल डालने के लिए बिरसा- अनुयायियों पर भयानक आंतक बरपा गया. ग्रामीणों के मुताबिक, फरवरी के पहले हफ्ते में शंकरा के पश्चिम स्थित जंगल से मानमारू गांव के सात लोभी लोग ने बिरसा मुंडा को अपने कब्जे में ले लिया. वहां से बिरसा को बंदगांव लाया गया.बिरसा को पकड़वाने वाले लोगों को 500 रूपये का नकद इनाम दिया गया था.
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