alt="पॉलिटीकल इकॉनमिक्स और लॉ ऑफ कम्पाउंडिंग" width="600" height="400" /> तो अब महत्वपूर्ण यह है कि आप शुरू कहां से करते हैं. जैसे 100 से शुरू किया तो दो साल में 110.25 पर आए. मगर केवल 10 से शुरू किया होता, तो दो साल में मात्र 11.025 पर पहुचते. दर वही है. यानी दो लोगों में एक, जिसने 100 से शुरू किया, दो साल में 10.25 बढ़ा गया. दूसरा जिसने 10 से शुरू किया दो साल में मात्र 11.025 बढ़ा सका. अब क्या 100 वाले को बेहतर प्रबंधक, नेता, लीडर, गुणवान, ज्ञानवान बताया जा सकता है. हां, बिल्कुल. यदि आपको ला ऑफ कम्पाउंडिंग का पता नही. इसी तरह आप यूरोप को भारत से बेहतर प्रबंधन वाला मानते हैं. क्या 10 से शुरू करने वाले को समाजवादी, वामपंथी, बकवास लीडर बताया जा सकता है. हां बिल्कुल, यदि उसका नाम नेहरू हो. और आप उसके देश की अहसानफरामोश, बेवकूफ, व्हाट्सप प्रेमी पीढ़ी हो. जिसकी रुचि एडविना में ज्यादा हो और जिसे 200 साल तक लुटे हुए भारत के इकॉनमिक ध्वंस का अंदाजा न हो.
alt="पॉलिटीकल इकॉनमिक्स और लॉ ऑफ कम्पाउंडिंग" width="600" height="400" /> और तब, जब आप उस वक्त जन्मे हो. जब ग्रोथ का कर्व अपने 60-70 वें वर्ष में हो. पीक पर हो. हर बात, हर प्रोजेक्ट, हर फ़ेंकरी कम से कम पांच-सात हजार की सुनने के आदी हों. बात की बात ही 40-50 हजार करोड़ से कम की न होती हो. 196 करोड़ के बजट और 5-10 करोड़ से देश मे औद्योगिकीकरण की शुरुआत करने वाला आपको अजीब सा गरीब तो लगेगा. ऐसे में टैक्स में ( आपकी-मेरी, यानी "जनता की हैसियत" में) लाख दो लाख करोड़ की गिरावट भी हंसी ठट्ठा लगेगी. है न?? तो जनाब, एक लॉ ऑफ डिमिनिशिंग रिटर्न्स भी होता है. इस पर फिर कभी. बस ग्राफ को उल्टा करके देखिये. मोबाईल उलटा करके. भारत का भविष्य दिखेगा. डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.