Deoghar: लोगों को अच्छी स्वास्थ्य सेवा मिले यह सरकार का कर्तव्य है. सरकार इसके लिए बड़े-बड़े दावे और घोषणाएं तो करती है. लेकिन सेवा प्रदान कौन करे, यह सबसे बड़ी समस्या है. डॉक्टर और नर्स का मुख्य रूप से यह काम होता है. लेकिन सबसे बड़ी कमी इन्हीं कर्मचारियों की है. देवघर जिले में स्वीकृत पदों के मुकाबले कम चिकित्सक हैं. लिहाजा बेसिक स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराना मुश्किल हो रहा है. लिहाजा जिले के निजी स्वास्थ्य केंद्रों में भारी भीड़ देखने को मिलती है.
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चिकित्सक बिन चिकित्सालय !
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बाघमारा में बिल्डिंग बनकर तैयार है. जो शहर से सात किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यहां 2 नर्स के सहारे ही स्वास्थ्य केंद्र का संचालन हो रहा है. हालांकि एक डॉक्टर की प्रतिनियुक्ति यहां पर हुई थी. लेकिन विडंबना है कि एक साल से यहां वे आए ही नहीं. उनके विभाग ने उन्हें सदर अस्पताल में डिपुटेशन पर बुला लिया. ऐसे में बिना चिकित्सक के मरीजों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं कैसे दी जा रही हैं. यह अस्पताल एक नर्स के सहारे संचालित हो रहा है.
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हेल्थ सेंटर के वार्डों पर ताला
ये बाघमारी का स्वास्थ्य केंद्र सिर्फ बाहर से अच्छा दिख रहा है. लेकिन अस्पताल के अंदर की कहानी कुछ और ही बयां कर रही है. अस्पताल के सभी वार्डों के कमरों पर ताला जड़ा है. जब लगातार डॉट इन के संवाददाता ने इन तस्वीरों को कैद करने की कोशिश की, तो नर्स ने कार्यालय का दरवाजा खोलना शुरू किया. इससे मालूम होता है कि यहां सब कुछ ऐसे ही चलता है. स्वास्थ्य प्रशिक्षक अजय कांत ने बताया कि विभाग के वरीय पदाधिकारी को कई बार सूचना दी गई है. लेकिन समस्या जस की तस बनी हई है. ऐसे में स्वास्थ्य व्यवस्था फिलहाल भगवान भरोसे ही चल रहा है.
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स्वास्थ्य उप केंद्र गिद्धनी भी बंद
कोठिया के पास एक लगातार की टीम को उप स्वास्थ्य केंद्र मिला. इस पर भी लगातार की टीम को ताला जड़ा मिला. अस्पताल परिसर में झाड़ियों ने जगह ले रखी है. तस्वीर देख ऐसा प्रतीत होता है कि वर्षों से यह स्वास्थ्य केंद्र खुला ही नहीं है. देवघर का ये स्वास्थ्य उप केंद्र भी कुव्यवस्था का शिकार हो गया है.
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स्टाफ क्वार्टर पर भी ताला
यहां पारा मेडिकल स्टाफ के लिए बनाई गई बिल्डिंग भी बंद पड़ी है. खाली पड़ी बिल्डिंग धूल फांक रही है. पानी की समस्या बरकरार है. शौचालय भी है, लेकिन उसकी जगह झाड़ियों ने ले रखी है. अंदाजा लगाइए कैसे कर्मचारी यहां पर रहेंगे. लाखों की बनी बिल्डिंग से मेडिकल स्टाफ को लाभ नहीं मिल पा रहा. ऐसे में इसे सरकारी धन की फीजूल खर्ची नहीं तो और क्या कहेंगे.
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