Surjit Singh सवाल चाल, चरित्र, चेहरा और नैतिकता का है. बात दक्षिण राज्य तमिलनाडू का है. बात अदालत की टिप्पणी की है. तमिलनाडू के राज्यपाल की है. और बात तमिलनाडु के दो मंत्रियों के इस्तीफे की है. इसलिए इस पर बात जरुरी है. मीडिया आतंकी घटना के बाद युद्ध करने में व्यस्त हैं. इसलिए आपको पता नहीं चला होगा कि अदालत की सख्त टिप्पणी के बाद तमिलनाडू के दो मंत्रियों ने 27 अप्रैल को इस्तीफा दे दिया है. जिन्होंने इस्तीफा दिया है, उनके नाम वी सेंथिल बालाजी और के पोनमुडी है. दोनों मंत्रियों का इस्तीफा सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी के बाद हुआ है.
के पोनमुडी के खिलाफ मद्रास हाईकोर्ट ने उनके शैव-वैष्णववाद और महिलाओं पर आपत्तिजनक बयान को "नफरत भरा भाषण" मानते हुए स्वत: संज्ञान लिया और तमिलनाडु सरकार को 23 अप्रैल तक उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया. कोर्ट की इस सख्त रुख के बाद के पेनमुडी ने इस्तीफा दे दिया है.
सेंथिल बालाजी के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग केस में उनकी जमानत पर सवाल उठाते हुए कहा था कि उन्हें मंत्री पद और आजादी में से एक को चुनना होगा, क्योंकि एक जमानती व्यक्ति का कैबिनेट में रहना उचित नहीं है.
दोनों ही मामलों में अदालत ने सिर्फ टिप्पणी की है. दोनों ही मामले को देखें तो देश में कई मंत्री ऐसे मिल जाएंगे, जो जमानत पर हैं और मंत्री भी हैं. उनके मंत्री बने रहने का सवाल चाल, चरित्र और नैतिकता का है. दोनों मंत्रियों ने इसकी परवाह की, या उनकी पार्टी ने परवाह की, इसलिए या तो दोनों ने अपनी इच्छा से या पार्टी के कहने पर इस्तीफा दे दिया.
अब बात तमिलनाडू के राज्यपाल आरएन रवि की. विधानसभा से पास 10 कानूनों को लटकाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उनके खिलाफ टिप्पणी की. उनके काम को अवैध बताया. इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने यह भी तय कर दिया कि राज्यपाल अधिकतम कितने दिनों तक विधानसभा से पारित कानून को लंबित रख सकते हैं.
तमिलनाडू के राज्यपाल ने 10 कानूनों को लंबित करने का ही अवैध काम नहीं किया था. उन्होंने जब देखा कि सुप्रीम कोर्ट आदेश दे सकता है, तो उन 10 कानूनों को राष्ट्रपति के पास भेज दिया. लिहाजा सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति के लिए समय सीमा तय कर दी.
अवैध काम करते रंगेहाथ पकड़े जाने और सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी के बाद न तो राज्यपाल आरएन रवि ने इस्तीफा दिया और ना ही केंद्र सरकार ने उन पर कार्रवाई की. उल्टे हुआ यह कि भाजपा के बरबोले नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया.
यह अलग बात है कि भाजपा के अध्यक्ष ने बयान जारी कर पार्टी के रुख को अलग बताया. लेकिन भाजपा ने उस बरबोले नेता पर कार्रवाई भी नहीं की. इसलिए आज यह सवाल उठना जरुरी है कि क्या भाजपा के लिए न सिर्फ चाल-चरित्र और चेहरा बल्कि नैतिकता भी अलग है!