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राफेल पेपर्स : फ्रांस-भारत जेट डील के ये विस्फोटक दस्तावेज-1

मीडियापार्ट रिपोर्ट के तीसरे और अंतिम भाग का हिन्दी अनुवाद

फ्रांस द्वारा भारत को 36 राफेल लड़ाकू विमानों की विवादास्पद बिक्री की तीन भागों की अपनी जांच की इस अंतिम रिपोर्ट में अब तक अप्रकाशित दस्तावेजों के साथ मीडियापार्ट खुलासा कर रहा है कि कैसे एक प्रभावशाली भारतीय व्यापार मध्यस्थ को राफेल निर्माता दसॉ एविएशन और फ्रांसीसी रक्षा इलेक्ट्रॉनिक्स फर्म थेल्स द्वारा गुपचुप तरीके से लाखों यूरो का भुगतान किया गया था और आखिरकार कैसे वे राफेल सौदे के अनुबंध से भ्रष्टाचार-विरोधी धाराओं को हटाने में सफल रहे. यान फिलीपीन की रिपोर्ट. इसका हिंदी अनुवाद लगातार.इन के राजनीतिक संपादक आनंद कुमार ने किया है.

26 मार्च 2019, नयी दिल्ली. भारत का प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) हथियारों के बड़े दलाल सुशेन गुप्ता को गिरफ्तार करता है. दो महीने तक विचाराधीन कैदी रहने के बाद उसे जमानत मिल जाती है. गुप्ता को 2013 में इतालवी-ब्रिटिश ग्रुप वीवीआईपी अगस्ता वेस्टलैंड से हेलीकॉप्टरों की खरीद के 500 मिलियन पौंड के सौदे में मनी लांड्रिंग का दोषी पाया गया था. चापरगेट के नाम से चर्चित इस घोटाले के कई मुख्य पात्र इटली की अदालतों से बरी कर दिये गये हैं, लेकिन भारत में इसकी जांच अभी चल रही है. सुशेन गुप्ता और अन्य बिचौलियों ने आईटी सेवाओं के ओवरचार्ज की आड़ में अगस्ता वेस्टलैंड से अपतटीय (offshore) कमीशन के रूप में 50 मिलियन यूरो से अधिक की रकम ली. आरोप है कि यह पैसा राजनेताओं, नौकरशाहों और सरकारी अधिकारियों" को रिश्वत में दिया गया.

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25 जनवरी 2016 को नयी दिल्ली में अपने भारतीय समकक्ष मनोहर पर्रिकर के साथ हाथ मिलाते फ्रांस के रक्षा मंत्री ज्यां-यवेस ले ड्रियन (बायें). फोटो- एएफपी

अगस्ता वेस्टलैंड के गुप्त पैसे पर नजर रख रहे ईडी के एजेंटों ने पता लगाया कि गुप्ता ने कुछ दूसरे सैन्य करारों को प्रभावित करने के लिए भी कमीशन खाया था. अगस्ता हेलीकॉप्टर सौदे में जिन संदिग्ध आईटी कांट्रैक्ट के कागजात मिले थे, वही कागजात इन सौदों में भी पाये गये और पैसा भी उन्हीं शेल कंपनियों के माध्यम से आया, जो हेलीकॉप्टर मामले में आया था. लेकिन इडी ने उस दस्तावेज का जिक्र नहीं किया, जो राजनीतिक तौर पर सबसे ज्यादा विस्फोटक था. यह था राफेल करार, जो 2016 में फ्रांस्वा ओलांद के राष्ट्रपतित्व काल में फ्रांस और भारत की सरकारों के बीच दसॉ एवियेशन के साथ 7.8 बिलियन यूरो में 36 राफेल फाइटर जेटों की खरीद के लिए हुआ था.

20 मई को प्रवर्तन निदेशालय ने सुशेन गुप्ता के खिलाफ लगाये गये अपने अभियोग में लिखा कि चूंकि दूसरे सौदों से संबंधित दलाली का हेलीकॉप्टर मामले की जांच से कोई संबंध नहीं है, उनकी अलग से जांच की जायेगी. 2019 में पहले भारतीय मीडिया कोबरापोस्ट औऱ उसके बाद इकोनॉमिक टाइम्स ने उन दस्तावेजों का खुलासा किया, जिनसे दसॉ, सुशेन गुप्ता और राफेल सौदे के बीच संबंध जाहिर होते थे. लेकिन दो साल बाद भी इसके कोई संकेत नहीं हैं कि प्रवर्तन निदेशालय ने राफेल सौदे की जांच का मामला हाथ में लिया है. इस मामले में संपर्क किये जाने पर प्रवर्तन निदेशालय ने कोई जवाब नहीं दिया.

तो क्या फ्रांस की तरह इस मामले को भारत में भी दफन कर दिया गया था. भारत के प्रधानमंत्री के बेहद नजदीकी शख्स की सहभागिता के मद्देनजर हर लिहाज से यह मामला बहुत संवेदनशील है. हालांकि गवाहों, खोजों और अंतरराष्ट्रीय पत्रों को देखने देने के लिए हम सभी लोगों का धन्यवाद देते हैं. प्रवर्तन निदेशालय के एजेंटों ने सुशेन गुप्ता पर दस्तावेजों का एक भंडार जमा किया है, जो गवाही, ईमेल,कंप्यूटर फाइलों,बैंक स्टेटमेंट, डायरी औऱ हस्तलिखित नोट के रूप में है. मीडियापार्ट ने प्रवर्तन निदेशालय की जांच फाइलों से कई गोपनीय दस्तावेज हासिल किये हैं, जो राफेल बिक्री की पृष्ठभूमि पर नयी रोशनी डालते हैं.

हमारी जांच के पहले दो हिस्सों से भारत कई दिनों तक हिल गया. ऐसे में इन सभी खुलासों का दस्तावेजीकरण करने में सफल हुए बिना हमारे रहस्योद्घाटन से वैसे लोगों के और भ्रमित होने का खतरा है, जो बरसों से दस्तावेजों के अभाव में इस विशाल घोटाले की सत्यता को लेकर संदेह जताते रहे हैं.

हमारे दस्तावेजों के अनुसार दसॉ और उसकी भागीदार कंपनी थेल्स ने सुशेन गुप्ता को रिश्वत के रूप लाखों यूरो का भुगतान किया, जो खुले तौर पर ऊंची कीमत वाले आईटी अनुबंधों और ऑफशोर कंपनियों को भुगतान के रूप में था. इसमें हमारे खुलासे में पहले भाग में बताये गये राफेल के मॉडलों के निर्माण के लिए 1 मिलियन यूरो का कांट्रैक्ट भी शामिल है.

दसॉ और थेल्स द्वारा नियुक्त मध्यस्थ ने जबर्दस्त काम किया. 2015 में राफेल अनुबंध पर बातचीत करते हुए उसने भारतीय वार्ताकार दल की गतिविधियों से संबंधित गोपनीय दस्तावेज रक्षा मंत्रालय से हासिल कर लिये. अभियोग के अनुसार सुशेन गुप्ता के पास ऐसा संवेदनशील डेटा था, जिसकी सिर्फ रक्षा मंत्रालय के पास रहने की उम्मीद की जाती है.

यह पता नहीं चल सका कि एक हथियार दलाल ने रक्षा मंत्रालय से इन संवेदनशील दस्तावेजों को कैसे हासिल कर लिया. तीन साल पहले की एक बातचीत में, जो स्पष्ट रूप से दसॉ के बारे में थी, सुशेन गुप्ता ने बहुत स्पष्ट लहजे में कहा, “बहुत देर हो चुकी है. मैं रोक नहीं सकता, मैं अपने वादे की कद्र करता हूं. ऑफिस के लोग पैसे मांगते हैं. यदि हम पैसा नहीं देंगे, तो ये लोग हमें जेल में डाल देंगे.”

कैसे राफेल डील से भ्रष्टाचार विरोधी प्रावधान हटाये गये

भारतीय जांचकर्ताओं द्वारा हासिल की गयी जानकारियों से यह समझना बहुत आसान है कि क्यों राफेल टीम के दो सदस्यों, दसॉ और MBDA मिसाइल ने फ्रांस्वा ओलांद के तत्कालीन रक्षा मंत्री (वर्तमान विदेश मंत्री) जीन-यवेस ले ड्रियन द्वारा हस्ताक्षरित अंतर सरकारी समझौते से भ्रष्टाचार विरोधी प्रावधानों को वापस कराने के लिए दिन-रात एक कर दिया था. ये प्रावधान विमान निर्माताओं के लिए खर्चीली समस्याएं पैदा कर सकते थे. इनमें लिखा था - “भारतीय रक्षा मंत्रालय को अपनी आधिकारिक खरीद प्रक्रिया में इन शर्तों को शामिल करने की जरूरत है कि “न सिर्फ भ्रष्टाचार, बल्कि विक्रेता की ओर से भारतीय नेताओं और नौकरशाहों को सुविधा या सिफारिश के लिए किसी एजेंट को भुगतान करने पर भारत इस अनुबंध को तोड़ सकता है और/या निर्माता से मुआवजा ले सकता है”. लेकिन "टीम राफेल" ऐसा नहीं चाहती थी.
जुलाई 2015 में, राफेल विमान के आयुधीकरण (एमबीडीए के साथ अनुबंध) पर समझौते के मसौदे में दसॉ और एमबीडीए ने लिखा था कि समझौते में शामिल भ्रष्टाचार विरोधी प्रावधान उसे स्वीकार्य नहीं हैं. लेकिन भारत ने उनकी आपत्तियों को खारिज कर दिया और उन खंडों को अनुबंध में फिर से शामिल कर लिया. (नीचे दस्तावेज़ देखें)

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छह महीने बाद 13 जनवरी 2016 को फ्रांस द्वारा प्रस्तावित विमान की आपूर्ति (दसॉ के साथ अनुबंध) पर फिर से आपत्ति करते हुए कंपनी ने अनुलग्नक में दोनों भ्रष्टाचार विरोधी खंडों को फिर से "लागू नहीं" लिख कर मार्क किया. (नीचे पढ़ें)

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“द हिंदू” अखबार के अनुसार सितंबर 2016 में रक्षा मंत्री की अध्यक्षता में हुई बैठक में राफेल समझौते पर हस्ताक्षर होने के ठीक पहले तक भारत सरकार ने इन भ्रष्टाचार विरोधी प्रावधानों को हटाने पर रजामंदी नहीं दी थी. तो क्या उस समय उनके फ्रांसीसी समकक्ष जीन-यवेस ले ड्रियन ने भी भ्रष्टाचार-विरोधी उपायों को वापस लेने की मंजूरी दी थी? क्या यह संभव है कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं रही होगी. इस पर वर्तमान विदेश मंत्री (ले ड्रियन) के प्रवक्ता ने कहा, "किसी भी मामले में हम आपकी जानकारी की पुष्टि नहीं करते हैं. "अंतर-सरकारी समझौता केवल राफेल विमानों की आपूर्ति और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के फ्रांसीसी सरकार के दायित्वों से संबंधित है.”

निश्चित रूप से, लेकिन दो राज्यों के बीच एक सौदे में अंतर-सरकारी समझौते में कुछ कानूनी बंधन भी हैं. वार्ता में 11 लोगों की जिस टीम का नेतृत्व जीन-यवेस ले ड्रियन ने किया था, उसमें जेनरल डायरेक्ट्रेट ऑफ आर्मामेंट (DGA) और वायुसेना के 8 अधिकारी शामिल थे. इनके अलावा दसॉ के दो और MBDA से एक प्रतिनिधि इस टीम में था.

मीडियापार्ट द्वारा पूछे जाने पर सशस्त्र बलों के मंत्रालय ने कहा कि ली ड्रियन द्वारा दी गयी प्रतिक्रिया में जोड़ने के लिए हमारे पास कुछ नहीं है. मिसाइल निर्माता ने कंपनी हमें बताया कि कॉन्ट्रैक्ट वार्ताओं पर टिप्पणी करने के लिए MBDA का इस्तेमाल नहीं किया जाता. दसॉ ने इस मामले पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. (ब्लैक बॉक्स पढ़ें).

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दसॉ एविएशन कंपनी का एक आंतरिक दस्तावेज़, जिसमें आइडीएस को ऑर्डर और भुगतान का ब्योरा है. © दस्तावेज़ मेडियापार्ट

उस समय फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने जवाब दिया कि "उन्हें वार्ता के तथ्यों के बारे में जानकारी नहीं थी और इसलिए वह भ्रष्टाचार विरोधी खंडों की संभावित वापसी को मंजूरी देने में असमर्थ थे."

गुप्त दलाली और ओवरचार्ज अनुबंध

उद्योगपति भ्रष्टाचार विरोधी प्रावधानों से छुटकारा क्यों चाहते थे? इसे समझने के लिए हमें दसॉ और थेल्स के क्लाउड एजेंट में दिलचस्पी लेनी चाहिए. अमेरिकी नागरिक सुशेन गुप्ता एक भारतीय परिवार से आते हैं, जो तीन पीढ़ियों से वैमानिकी और रक्षा सौदों में मध्यस्थ का काम कर रहा है. सुशेन और उनके भाई ने अपने पिता देव गुप्ता से यह काम सीखा था. उनकी कंसल्टिंग फर्म इंडियन एविट्रॉनिक्स कई फ्रेंच समूहों (राफेल मामले में सफरान) सहित एयरोनॉटिक्स और रक्षा क्षेत्र में कई बड़ी कंपनियों के लिए काम करती है. सफरान विशेष रूप से राफेल इंजन (दस्तावेज़ देखें) का निर्माण करता है. इस कंपनी ने 1997 से 2003 के बीच स्विस कंपनी गुप्ता को 1.2 मिलियन यूरो का भुगतान किया. मीडियापार्ट द्वारा पूछे जाने पर सफरान ने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.

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बिचौलिया सुशेन गुप्ता से मिले दस्तावेज का अंश, जिसमें 2010 में सफ़रान की सैन्य इंजन शाखा के लिए भारत के साथ कावेरी लड़ाकू विमान बनाने की एक संयुक्त परियोजना का जिक्र है. © दस्तावेज़ मेडियापार्ट

सुशेन गुप्ता राजनीतिक और सैन्य क्षेत्र में अपने संबंधों के लिए प्रसिद्ध हैं. 2007 में वह अपने एक क्लायंट, जो एक बड़ा पश्चिमी वैमानिकी समूह था, के लिए भारत सरकार में सभी स्तरों पर मौजूद अपने संपर्कों को सक्रिय कर चुके थे. आरोप है कि इस हथियार दलाल के पास "भारतीय वायुसेना की भविष्य की उन जरूरतों की अग्रिम जानकारी थी, जो कहीं सार्वजनिक नहीं थी.
दसॉ और थेल्स ने गुप्ता के पास मौजूद जानकारी को भुनाने के लिए तगड़ा खर्च किया. 2000 के दशक की शुरुआत में ही, जब भारत ने 126 फाइटर जेट्स खरीदने की योजना की घोषणा की, उन्होंने सुशेन गुप्ता को हायर कर लिया. भारतीय जांचकर्ताओं के दस्तावेजों के अनुसार अनुबंध हासिल करने की 15 वर्षों की लड़ाई के दौरान दोनों कंपनियों ने उसे लाखों यूरो का भुगतान किया. लेकिन समस्या यह है कि इस पैसे का भुगतान गुप्ता की भारतीय कंसल्टेंसी फर्म को नहीं करके ऑफशोर कंपनियों को रिश्वत और कभी-कभार जायज दिखाने के लिए संदिग्ध अनुबंधों द्वारा किया गया.

अभियोग के अनुसार थेल्स ने गुप्ता को विभिन्न विषयों पर प्रतिवेदन (रिपोर्ट) देने का आदेश दिया. लेकिन उसने भुगतान गुप्ता परिवार के एक वकील की दुबई में रजिस्टर्ड एक फ्रंट कंपनी को किया, जिसका न तो कोई दफ्तर था और न कर्मचारी. सुशेन गुप्ता की एक अकाउंटिंग स्प्रेडशीट के अनुसार थेल्स ने 2004-2008 के बीच इस कंपनी के माध्यम से 2.4 मिलियन यूरो का भुगतान किया. इस बारे में पूछे जाने पर थेल्स ने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.

दसॉ के धन को इकट्ठा करने के लिए सुशेन गुप्ता ने उसी चाल का इस्तेमाल किया, जो उसने हेलीकॉप्टर मामले में किया था और जिसके कारण भारत में उसे दोषी पाया गया था. उन्होंने एक भारतीय आईटी सेवा कंपनी आइडीएस पर का सहारा लिया, जहां गुप्ता का एक पारिवारिक सदस्य काम करता था. आइडीएस ने दसॉ के साथ स्पष्ट रूप से ओवरचार्ज किये गये अनुबंध प्राप्त किये और बदले में उसने मध्यस्थ को बड़ी सावधानी से पैसों का भुगतान किया.

आईडीएस के एक कार्यकारी ने अधिकृत रूप से कहा कि दसॉ ने उसे मॉरीशस की एक लेटरबॉक्स कंपनी “इंटरस्टेलर” को कमीशन देने का आदेश दिया था. दसॉ के एक आंतरिक दस्तावेज़ (नीचे) से पता चलता है कि इस विमान निर्माता ने 2004 में आईडीएस को 2 मिलियन यूरो के ऑर्डर दिये थे जबकि योजना कुल 6.6 मिलियन के ऑर्डर देने की थी. आइडीएस ने 2002 और 2005 के बीच इंटरस्टेलर को 9 लाख यूरो दान में दिया.

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पढ़ें दस्तावेज.

आईडीएस के एक कार्यकारी ने जांचकर्ताओं को बताया कि बाद में आइडीएस- इंटरस्टेलर सर्किट को संशोधित करते हुए दसॉ ने 2004 से सिंगापुर की कंपनी इंटरदेव को इसमें जोड़ा और उससे आईटी सेवाएं लेना शुरू किया. इंटरदेव को एशिया में दसॉ के सिस्टम इंटीग्रेटर के रूप में बताया गया. जबकि हकीकत में यह एक शेल कंपनी थी, जिसकी कोई वास्तविक गतिविधि नहीं थ. इसे गुप्ता के इशारे पर संचालित किया जाता था.

इंटरदेव पर आइडीएस को आईटी सेवाओं के लिए भुगतान करने का जिम्मा था और उसने एक संदिग्ध उप-अनुबंध (नीचे) की आड़ में इंटरस्टेलर को मॉरीशस में कमीशन का भुगतान किया. यह दस्तावेज़ बताता है कि दसॉ ने इंटरदेव को इंटरस्टेलर के साथ हुए अनुबंध में सब कांट्रैक्ट का अधिकार दिया था., जबकि असलियत में इंटरदेव मॉरीशस में गुप्ता की एक फर्जी कंपनी थी, जो अब खत्म हो चुकी है.

सुशेन गुप्ता के एक पारिवारिक स्प्रेडशीट के अनुसार "D" (दलाल द्वारा दसॉ के लिए प्रयोग किया जानेवाला कोड) ने 2004 और 2013 के बीच सिंगापुर में इंटरदेव को 14.6 मिलियन यूरो का भुगतान किया. इंटरदेव ने भारतीय आईटी कंपनी आईडीएस को 2.6 मिलियन यूरो डोनेट कर दिया और 11.9 मिलियन मॉरीशस (देखें दस्तावेज़) में इंटरस्टेलर के पास गये. दसॉ ने इसपर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. सुशेन गुप्ता और आइडीएस ने कोई जवाब नहीं दिया.

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दलाल सुशेन गुप्ता की एक स्प्रेडशीट जिसमें सिंगापुर स्थित कंपनी इंटरदेव की वित्तीय गतिविधियों का विवरण है. "IDS" एक भारतीय आईटी सेवा कंपनी है, जबकि "MRU" मॉरीशस में पंजीकृत ऑफशोर कंपनी इंटरस्टेलर को दर्शाता है. © मीडियापार्ट

दसॉ और थेल्स के लाखों यूरो आखिर कहां गये. गुप्ता की एकाउंट्स स्प्रेडशीट से भी स्विट्जरलैंड, लिकटेंस्टीन या संयुक्त अरब अमीरात में पंजीकृत उसकी पारिवारिक शेल कंपनियों को बीच बंटे हुए धन का हिसाब रखना बहुत मुश्किल है. इनमें कई मिलियन डॉलर तो गुप्ताओं के ऐशो-आराम भरी जीवन शैली पर खर्च हो गये. इनमें 310,000 डॉलर से दो पोर्श कारों की खरीद और विवाह समारोह के लिए 150,000 डॉलर के नकद भुगतान के साथ-साथ उनके निवेश, खासकर होटल और रियल एस्टेट उद्योग में भारी निवेश शामिल हैं.
लेकिन कई भुगतान निजी रूप से भी होते हैं, जिन्हें उनके नाम के पहले अक्षर से जाहिर किया जाता है और कभी-कभी "ए 34" जैसे कोड के माध्यम से. प्रवर्तन निदेशालय के जांचकर्ताओं ने भी नकदी की भारी निकासी को देखा. गुप्ता परिवार की इंडियन एविट्रॉनिक्स के कर्मचारियों में से एक ने ऑन रिकॉर्ड कहा कि सुशेन गुप्ता ने उसे नकदी दी थी, लेकिन जिन लोगों तक उसने पैसा पहुंचाया था, अब उनके नाम वह भूल गया है.

आरोप के अनुसार इडी को संदेह है कि इस नकदी का कुछ हिस्सा "कई सैन्य अनुबंधों" के मामले में भारतीय अधिकारियों को रिश्वत देने के लिए इस्तेमाल किया गया था. क्या राफेल अनुबंध भी इन सैन्य अनुबंधों का हिस्सा है? सुशेन गुप्ता के डिजिटल अभिलेखागार में पाया गया एक गोपनीय नोट तो ऐसा ही कहता है. (जारी)

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