LagatarDesk
पढ़ें फ्रांस द्वारा भारत को 36 राफेल लड़ाकू विमानों की विवादास्पद बिक्री की तीन भागों की जांच की अंतिम किस्त. यान फिलीपीन की इस रिपोर्ट का हिंदी अनुवाद लगातार के राजनीतिक संपादक आनंद कुमार ने किया है.
"दफ्तर के लोग पैसे मांग रहे हैं"
31 जनवरी 2012 को दसॉ ने 126 फाइटर विमानों की आपूर्ति के लिए निविदा हासिल की, लेकिन यह तो सिर्फ एक शुरुआत थी. तनाव भरे राजनीतिक माहौल में इस पर अभी और मोलभाव करना और अनुबंध पर हस्ताक्षर होना बाकी था. मार्च में एक सांसद के इस दावे पर कि यूरोफाइटर टाइफून विमानों के अधिक महंगा होने के बावजूद राफेल कैसे निविदा हासिल करने में सफल रहा, रक्षा मंत्री ने टेंडर नतीजों पर एक आंतरिक जांच बैठायी. टेंडर में भारत द्वारा दसॉ पर अनुबंध की आधी राशि भारतीय कंपनियों को विमानों के कलपुर्जों की खरीद के माध्यम से लौटाने के बिंदु पर भी संदेह जताया गया था.
आपूर्ति किये जानेवाले 126 राफेल विमानों में से 108 विमानों को केंद्र सरकार के स्वामित्व वाली विमान निर्माता कंपनी हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लि. (HAL) द्वारा भारत में ही एसेंबल किया जाना था. दसॉ ने निजी क्षेत्र से अपने मुख्य साझीदार के रूप में अरबपति मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) को चुना, जिसके पास वैमानिकी का कोई अनुभव नहीं था. फरवरी 2012 में दोनों समूहों ने एक भारतीय ज्वाइट वेंचर बनाने के लिए एक करार पर हस्ताक्षर किये, जो दसॉ के लिए कलपुर्जों की आपूर्ति करता.
सुशेन गुप्ता ने भारतीय उद्योगपतियों के चयन में मुख्य भूमिका निभाई. 13 अप्रैल, 2012 को सिंगापुर में उसकी फ्रंट कंपनी इंटरदेव ने परामर्शी के रूप में दसॉ के साथ 4 मिलियन यूरो के तीन अनुबंध किये. इसमें रक्षा बाजार और संभावित भागीदारों (दस्तावेज़ देखें) पर अध्ययन रिपोर्ट देना शामिल था. यह ज्ञात नहीं है कि इन अनुबंधों पर हस्ताक्षर किये गये थे या नहीं. गुप्ता की स्प्रेडशीट के अनुसार, "D" ने पांच दिन बाद इंटरदेव को 5 लाख डॉलर का भुगतान किया. लेकिन सुशेन गुप्ता के हिसाब से इतना पर्याप्त नहीं था. ये जानकारी गुप्ता के डिजिटल आर्काइव से मिली एक वर्ड फाइल से मिली है, जो स्पष्ट रूप से दसॉ के बारे में है. इस फ़ाइल को अंतिम बार 7 सितंबर, 2012 को सुबह 7:22 बजे एडिट किया गया था. इसमें पेरिस से नयी दिल्ली के लिए सुशेन गुप्ता का फ्लाइट टिकट भी है, जो 7 सितंबर की ही रात 10 बजे रवाना हुई थी. (दस्तावेज देखें).
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ये तथ्य बताते हैं कि सुशेन गुप्ता की 7 सितंबर, 2012 को पेरिस में दसॉ के साथ मुलाकात हुई थी. इस मुलाकात में सुशेन गुप्ता ने अपनी नाराजगी जतायी थी. उसने कहा- “पहली बार मुझे आश्चर्य हो रहा है कि मैं ऐसा क्यों कर रहा हूं. मैंने वही किया जो आप चाहते थे. हमने क्या गलती की? हम जवाब लेने भारत से आये हैं."
इस नोट से पता चलता है कि गुप्ता ने भारतीय अधिकारियों को पैसा दिया होगा, लेकिन दसॉ ने गुप्ता को इन भुगतानों की भरपाई नहीं की होगी. उसने कहा -“हमने जोखिम लिया. आपके पास एक एजेंट है. हमने भुगतान किया है. अब सुनिश्चित करें कि सब कुछ कानून के अनुसार और स्पष्ट है. पैसा नहीं, तो कोई फैसला भी नहीं. क्या आप खुश थे, क्योंकि पैसे मैंने लगाये. और अब आप नाराज हो रहे हैं क्योंकि आपको मुझे पैसे देने हैं? यह बहस का समय नहीं है. आपको शुरू ही नहीं करना चाहिए था, अब आपको खत्म करना होगा.”
बाकी भारतीय कंपनियों ने काम लेने के लिए क्या किया है?
बाकी दस्तावेज़ और भी अधिक स्पष्ट हैं - “मैं अब नहीं रुक सकता. बहुत देर हो चुकी है. मुझे लोगों के पैसों और वादों का बदला चुकाना है. दफ्तर के लोग पैसे मांगते हैं. सुशेन [गुप्ता] ने उनसे वादा किया, क्योंकि आपने वादा किया था. यदि हम भुगतान नहीं करते हैं, तो ये लोग हमें जेल में डाल देंगे और RIL (रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड) हट जायेगा. फिर हम सच में खत्म हो जायेंगे. और जैसा कि RM (मीडियापार्ट के अनुसार रक्षा मंत्री) ने संसद से वादा किया है, सौदा रद्द हो जायेगा.
गुप्ता मानता था कि कोई खतरा नहीं था. “कैश किसी और जगह से आता है और कोई संबंध नहीं है, तो फिर समस्या कहां है? "यह भी प्रतीत होता है कि दसॉ ने अपने भारतीय औद्योगिक साझेदारों से हिस्सा देने का अनुरोध किया था. जैसा कि लिखा है- बाकी भारतीय कंपनियों ने काम लेने के लिए क्या किया है?
दसॉ ने इस नोट और 7 सितंबर, 2012 को सुशेन गुप्ता के साथ किसी अनुमानित बैठक के अस्तित्व पर कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. सुशेन ने कोई जवाब नहीं दिया.
लेकिन एक बात तय है, सुशेन गुप्ता बाद तक दसॉ के रणनीतिक सलाहकार बने रहे और उन्होंने तीन साल बाद राफेल अनुबंध पर भारतीय वार्ताकारों की गतिविधियों पर रक्षा मंत्रालय से वे गोपनीय दस्तावेज हासिल किये,जो उनके पास नहीं होने चाहिए थे.
बिचौलिये गुप्ता ने मंत्रालय से गुप्त दस्तावेज हासिल किये
2014 में दसॉ और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी एचएएल के बीच मतभेदों के चलते समझौता वार्ता ख़त्म हो गयी. 12 मई 2014 को कांग्रेस पार्टी चुनाव हार गयी. हिंदू राष्ट्रवादी पार्टी बीजेपी के नेता नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने. 24 जून को दसॉ के एक नोट में सुशेन गुप्ता ने "भारतीय राजनीतिक हाईकमान के साथ बैठक" की संभावना का उल्लेख किया. जानकारी से लैस इस बिचौलिये ने संकेत दिया कि रक्षा मंत्री को जुलाई के अंत तक बदल दिया जाना चाहिए. यह नवंबर में हुआ.
10 अप्रैल, 2015 को राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के साथ एलिसी पैलेस में एक बैठक के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी को अचरज में डालते हुए एक क्रांतिकारी फैसले का एलान किया. 126 राफेल विमानों की खरीद की निविदा रद्द कर दी गयी. अब वह दो देशों के बीच अनुबंध के तहत फ्रांस में बने 36 विमानों को लेना चाहते थे.
ताश के पत्तों के फेंटने की तरह कई बदलाव हुए. सार्वजनिक कंपनी एचएएल को सौदे से बाहर कर दिया गया. प्रधानमंत्री के करीबी मुकेश अंबानी के रिलायंस इंडस्ट्रीज समूह का स्थान उनके भाई अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस एडीएजी ने ले लिया.
चूंकि अब यह एक अंतर-सरकारी समझौता था, इसलिए बातचीत देनों देशों के रक्षा मंत्रालयों के बीच आयोजित की गयी. फ्रांसीसी पक्ष से वार्ताकारों के दल में रक्षा मंत्री जीन-यवेस ले ड्रियन के नेतृत्व में रक्षा मंत्रालय के आठ अधिकारी, दसॉ के दो अधिकारी और मिसाइल कंपनी MBDA का एक प्रतिनिधि था.
सबसे अहम बिंदु था विमानों की कीमत. 13 मई, 2015 को भारतीयों ने मांग की कि फ्रांस के वादे के अनुसार राफेल का मूल्य दसॉ की अब तक लगायी गयी सबसे कम कीमत हो. भारत के हाथ में तुरुप का पत्ता भी था. निविदा में असफल रहे यूरोपीय संघ का यूरोफाइटर जुलाई 2014 में 20% की छूट के प्रस्ताव के साथ इस दौड़ में वापस आने की कोशिश कर रहा था.
बहुत जल्दी यह टकराव में तब्दील हो गया. अगस्त 2015 में काफी माथापच्ची के बाद भारतीय टीम ने अनुमान लगाया कि हथियारों के साथ विमान का उचित मूल्य 5.06 बिलियन यूरो होना चाहिए. लेकिन जनवरी 2016 में दसॉ ने इसकी कीमत लगायी 10.9 बिलियन, जो दोगुने से भी ज्यादा थी. वह भी बगैर मिसाइलों के. (दस्तावेज देखें)
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फ्रांसीसी खेमे के लिए सुशेन गुप्ता की मदद अमूल्य साबित हुई. हमारी जानकारी के अनुसार उसने इस प्राइस वार के बारे में रक्षा मंत्रालय से गोपनीय दस्तावेज प्राप्त हासिल किये. इन दस्तावेजों में भारतीय वार्ताकार दल की बैठकों के मिनट, फ्रांसीसियों के सामने रखे जानेवाले तर्क, कीमत की गणना पर विस्तृत नोट और इसके लिए अपनाई गयी पद्धति शामिल थे. सुशेन गुप्ता ने टैरिफ की गणना करने के लिए भारतीय वार्ताकार दल के सदस्यों में से एक द्वारा बनायी गयी एक्सेल शीट भी हासिल कर ली. (दस्तावेज देखें)
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गुप्ता ने आखिरकार यूरोफाइटर कंसोर्टियम की ओर से एयरबस द्वारा जुलाई 2014 में भारतीय रक्षा मंत्री को भेजा गया पूरा संशोधित प्रस्ताव भी हासिल कर लिया. लीक हुए दस्तावेजों के बारे में संपर्क करने पर भारतीय रक्षा मंत्रालय ने कोई जवाब नहीं दिया.(दस्तावेज देखें)
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इसलिए सुशेन गुप्ता के पास भारतीय तर्कों को काटने के लिए सभी जरूरी जानकारी थी. उसने कंप्यूटर स्प्रेडशीट में सर्वोत्तम मूल्य की गणना करते हुए दसॉ की रणनीति में सक्रिय रूप से भाग लिया. उनमें से एक शीट, जिसे 20 जनवरी 2016 को बनाया गया था, के एक कॉलम में टैरिफ के रूप में 7.87 बिलियन की राशि दर्ज है. अगले दिन मोलभाव के दौरान फ्रांसीसी दल ने ठीक यही कीमत ऑफर की. भारतीयों ने इसमें रियायत की मांग की. फ्रांसीसी दल ने इंकार कर दिया और बैठक बाधित हो गयी.
चार दिन बाद, 25 जनवरी को राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नयी दिल्ली में एक बड़े समारोह में राफेल की बिक्री पर हस्ताक्षर किये. लेकिन यह केवल एक राजनीतिक समझौता था, जो बिल्कुल बाध्यकारी नहीं था. फ्रांस्वा ओलांद ने घोषणा की कि चर्चा प्रगति पर है, लेकिन हकीकत में बातचीत का रास्ता बंद था.
मई 2016 में प्रकाशित एक लेख में साइट इंटेलिजेंस ऑनलाइन (आईओएल) ने इस बात की पुष्टि की कि उस समय थेल्स कंपनी ने गुप्ता को कॉल कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हिंदू राष्ट्रवादी पार्टी भाजपा को अपने पक्ष में करने के लिए कहा.
अंततः 23 सितंबर को रक्षा मंत्री जीन-यवेस ले ड्रियन और उनके भारतीय समकक्ष ने इस अनुबंध पर हस्ताक्षर किये. भारत ने आखिरकार 7.87 बिलियन का अंतिम फ्रांसीसी प्रस्ताव स्वीकार कर लिया, जिसे उसने छह महीने पहले खारिज कर दिया था.
इस अंतिम सौदे पर भारतीय रक्षा मंत्रालय में सर्वसम्मति नहीं थी. सात वार्ताकारों में से तीन ने उन विसंगतियों की पहचान करने के लिए एक गोपनीय नोट पर दस्तखत किये, जो उनकी नजर में आये थे. द हिंदू द्वारा उजागर किये गये इस दस्तावेज़ में, उन्होंने खासतौर पर कीमतों की गणना करने की विधि में फेरबदल को दोषपूर्ण बताया. उनके अनुसार इसके कारण विमानों की कीमत दसॉ के पक्ष में हो गयी. उनका यह भी मानना था कि यूरोफाइटर इसके मुकाबले सस्ता था.
इस नोट का भारत के महालेखा परीक्षक (CAG) ने खंडन किया. उसने अनुमान लगाया कि शुरुआती
टेंडर की तुलना में अंतिम मूल्य 17% सस्ता था. भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने इस बारे में फैसला दिया कि यह मामला जांच का आदेश देने के लिए पर्याप्त संदेहजनक नहीं था. लेकिन अदालत को प्रवर्तन निदेशालय की जांच की जानकारी नहीं थी.
दसॉ के लिए मामला खुशगवार तरीके से खत्म हो गया और दलाल सुशील गुप्ता को एक बार फिर से पुरस्कृत किया गया. उसके परिवार द्वारा संचालित भारतीय कंपनियों में से एक डेफसिस सॉल्यूशंस ने पचास राफेल मॉडलों (हमारे सर्वेक्षण का पहला एपिसोड पढ़ें) के निर्माण के लिए दसॉ को 1 मिलियन यूरो का इनवॉइस भेजा.
दसॉ की एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार डिफसिस सॉल्यूशंस भारतीय रैफेल अनुबंध के सब-कांट्रैक्टरों में एक भी बन गया. दसॉ ने हमें अनुबंध की प्रकृति और धनराशि बताने से इनकार कर दिया. (समाप्त)
मीडियापार्ट की ओर से-
• हमने इस मामले में शामिल सभी लोगों को विस्तृत लिखित प्रश्न भेजे थे.
• राफेल और उसके उपकरणों का निर्माण करने वाली चार मुख्य कंपनियों, अर्थात् दसॉ एविएशन, थेल्स (इलेक्ट्रॉनिक्स), सफ़रान (इंजन) और एमबीडीए (मिसाइल) ने हमें जवाब देने से इंकार कर दिया. यह दर्शाता है कि वे टिप्पणी नहीं करना चाहते थे.
• कई बार संपर्क करने और ईमेल किये जाने के बावजूद बिचौलिये सुशेन गुप्ता ने कोई जवाब नहीं दिया.
• विदेश मंत्री जीन-यवेस ले ड्रियन के प्रवक्ता, जो तत्कालीन में रक्षा मंत्री थे, ने हमें एक छोटी लिखित प्रतिक्रिया (एक्सटेंड टैब में पूर्ण रूप से पढ़ने के लिए) भेजी. सशस्त्र बलों के मंत्रालय ने हमें जवाब दिया कि इसमें "उनके जोड़ने लायक कुछ नहीं है. यह जवाब हमें काई डी-ओरसा द्वारा भेजा गया. फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने हमें एसएमएस से जवाब दिया.
• भारतीय मनी-लॉन्ड्रिंग एजेंसी, प्रवर्तन निदेशालय ने पुष्टि की कि उसे हमारे प्रश्न मिले हैं और फिर उसने कोई जवाब नहीं दिया. भारतीय रक्षा मंत्रालय में एक प्रेस अटैची ने हमारे सवालों की रसीद दी, फिर कोई जवाब नहीं दिया.
• ईमेल से संपर्क करने पर भारतीय कंपनी आइडीएस ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी