New Delhi : राज्यसभा में आज गुरुवार को राष्ट्रीय जनता दल सहित कुछ दलों ने महिलाओं को लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं में एक तिहाई आरक्षण देने की सीमा पर प्रश्न उठाते हुए सुझाव दिया कि इसे बढ़ाकर 50 प्रतिशत या अधिक भी किया जा सकता है. उच्च सदन में इन दलों के सदस्यों ने महिला आरक्षण के प्रावधान वाले संविधान (128वां संशोधन) विधेयक, 2023 पर चर्चा के दौरान यह सुझाव दिया. नेशनल खबरों के लिए यहां क्लिक करें
#WATCH | On Women’s Reservation Bill, RJD MP Manoj Jha says, “The government doesn’t have a clear intention on this bill…There’s no road map and this bill is being passed. You have rejected and excluded a big population. PM Modi and his team need to understand that the… pic.twitter.com/GegHFiQ3i9
— ANI (@ANI) September 21, 2023
महिला आरक्षण की सीमा 33 प्रतिशत तक ही सीमित क्यों रखी जाये?
वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के वी विजयसाई रेड्डी ने महिला आरक्षण विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि इसे (महिला आरक्षण की सीमा को) 33 प्रतिशत तक ही सीमित क्यों रखा जाये? उन्होंने कहा कि महिला आरक्षण की सीमा बढ़ाकर 50 प्रतिशत तक क्यों नहीं की जा सकती? भारत राष्ट्र समिति के डॉ के केशव राव ने कहा कि उनकी पार्टी महिला आरक्षण के पक्ष में खड़ी है. उन्होंने डॉ. भीमराव आंबेडकर के एक बयान को उद्धृत करते हुए कहा कि कोई भी देश महिलाओं को पीछे छोड़कर आगे नहीं बढ़ सकता है.
उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष जे पी नड्डा के इस बयान का विरोध किया कि संविधान के प्रावधानों के अनुसार इस विधेयक को जनगणना एवं परिसीमन के बाद ही लागू किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि जब संसद में इसे लेकर आम सहमति है तो फिर इसे अभी क्यों नहीं लागू किया जा सकता?
परिसीमन आयोग का गठन राज्य सरकार नहीं मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) करते हैं
राव ने प्रश्न किया कि जब कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाया गया था तो क्या संविधान या कानूनी प्रक्रिया को देखा गया था? उन्होंने कहा कि परिसीमन आयोग का गठन राज्य सरकार नहीं मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) करते हैं. उन्होंने मांग की कि राजनीतिक रूप से प्रेरित सीईसी द्वारा इसका गठन नहीं किया जाना चाहिए. चर्चा में भाग लेते हुए पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा ने 10 अप्रैल 2023 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लिखे एक पत्र को सदन के पटल पर रखा जिसमें उन्होंने महिला आरक्षण के प्रावधान वाला विधेयक लाये जाने का अनुरोध किया था. जनता दल (एस) नेता ने कहा कि वह जब कर्नाटक के मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने महिला आरक्षण के बारे में एक विधेयक पेश किया था जिसे राज्य विधानसभा ने पारित किया था. देवेगौड़ा ने कहा कि जब वह प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने वही विधेयक संसद में पेश किया था.
भाजपा सरकार का नारी सशक्तीकरण से कोई लेनादेना नहीं
राष्ट्रीय जनता दल के मनोज झा ने कहा कि संविधान बनने से बहुत पहले 1931 में बेगम शहनवाज और सरोजनी नायडू ने समान प्रतिनिधित्व की बात की थी. राजद सदस्य ने प्रश्न किया, हम काहे को 33 प्रतिशत पर अटके पड़े हैं? मुझे समझ नहीं आ रहा कि 33 के साथ क्या रिश्ता है हमारा? यह 50 क्यों नहीं हो सकता, 55 क्यों नहीं हो सकता. आपका पूरा का पूरा वर्ग चरित्र बदल जायेगा. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के इलामारम करीम ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि सरकार यह विधेयक चुनावी कारणों से लायी है. उन्होंने कहा कि कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों में मिली हार के बाद भाजपा सरकार इस विधेयक को लेकर आयी है और इसका नारी सशक्तीकरण से कोई लेनादेना नहीं है. उन्होंने कहा कि भाजपा ने अपने घोषणापत्र में महिला आरक्षण का वादा किया था किंतु उन्हें नौ साल तक इससे वंचित करके रखा.
स्वाधीनता संग्राम में महिलाओं ने बहुत ही सशक्त योगदान दिया
उन्होंने कहा कि सत्तारूढ़ दल नारी शक्ति वंदन की बाद करता है किंतु महिलाओं को सड़क पर प्रताड़ित किया जाता है. एमडीएमके के वाइको ने चर्चा में भाग लेते हुए विधेयक का समर्थन किया. उन्होंने कहा कि तमिलनाडु की जस्टिस पार्टी ने 1921 में महिलाओं को मतदान का अधिकार दिया था. असम गण परिषद के वीरेंद्र प्रसाद वैश्य ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि देश के स्वाधीनता संग्राम में महिलाओं ने बहुत ही सशक्त योगदान दिया. उन्होंने कहा कि आजादी के आंदोलन में असम की किशोरी कनकलता बरुआ सहित कई महिलाओं ने अपने प्राणों की आहूति दी. उन्होंने कहा कि यह विधेयक समुचित समय पर आया है. उन्होंने कहा कि महिला आरक्षण संबंधित विधेयक 2010 में राज्यसभा में पारित तो हो गया किंतु इसे लोकसभा में पारित करने की गंभीरता नहीं दिखायी गयी. वैश्य ने उम्मीद जतायी कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार इस महत्वपूर्ण विधेयक को संसद में पारित करने में सफल होगी.
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