Ranchi: शहीद तिलका मांझी पर लिखी गई एक नई किताब ‘आदिविद्रोही तिलका मांझी’ विमोचन हुआ. इस किताब को झारखंड के एक्टिविस्ट घनश्याम ने लिखा है. यह हुलगुलान के शहीद श्रृखंला की पहली किताब है. शुक्रवार को पुरूलिया रोड स्थित एसडीसी सभागार में कार्यक्रम आयोजित हुआ. इस दौरान टीआरआई के पूर्व निदेशक रणेद्र कुमार, लेखक रविभूषण, लेखक प्रकाश, लेखक सावित्री बड़ाईक समेत अन्य मौजूद थे.
इस दौरान लेखको ने कहा कि बाबा तिलका मांझी को लेकर कुछ गलतफहमी है कि इस नाम का कोई पात्र इतिहास में दर्ज नहीं है. लेकिन उनसे संबंधित अपने पक्ष को मजबूती रखते हुए उन्होंने ठोस तर्क दिए हैं और यह स्पष्ट किया है कि जबरा पहाड़िया नामक जो पात्र अगस्टस क्लीवलैंड के समय आया है, वही तिलका मांझी हैं. तिलका मांझी नाम से भागलपुर शहर में चौक भी और विश्वविधालय भी है. इसलिए उनके नहीं होने की मनगढ़ंत बातें एक भ्रम पैदा करने अलावा और कुछ नहीं है.
प्रसिद्ध लेखक घनश्याम ने कहा कि इतिहासकारों को आदिवासी साहित्य और उनके संघर्ष पर और अधिक कार्य करने की जरूरत है. उन्होंने जोर देकर कहा कि आज भी आदिवासी समुदायों की संस्कृति और धरोहर खतरे में है, जिसे बचाने और सहेजने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि अंग्रेजों द्वारा लिखा गया इतिहास एक विशिष्ट दृष्टिकोण से लिखा गया था, जिसमें आदिवासी वीरों और क्रांतिकारियों को उपेक्षित किया गया. सावित्री बड़ाईक ने तिलका मांझी की जीवन संघर्ष के बारे में बताया.
लेखक रवि भूषण ने कहा, यह किताब सही समय पर आई है, जो समाज के सामाजिक और सांस्कृतिक रूपांतरण को दर्शाती है. इसमें वर्तमान की चिंताओं और सवालों को भी स्थान दिया गया है.उन्होंने जोर देते हुए कहा कि इस किताब का संथाली समेत सभी प्रमुख भाषाओं में अनुवाद होना चाहिए, ताकि तिलका मांझी के संघर्ष की गूंज हर समुदाय तक पहुंचे.
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