Vinod Kumar
याद कीजिये बंगाल में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के कारवां पर हमले की घटना के बाद किस कदर हंगामा किया था भाजपा ने. कल्पना कीजिये कि यदि उत्तरप्रदेश में योगी के कारवां पर इस तरह का हमला होता तो क्या होता?
उसकी तुलना में हेमंत सोरेन के काफिले पर सोमवार की शाम जिस तरह से हमला हुआ. उसे देखते हुए हेमंत सोरेन का व्यवहार संयत रहा. पुलिसर्मियों व अफसरों का व्यवहार भी संयत रहा. पर, भाजपा के नेता खुल कर इस घटना का राजनीतिकरण करने में लगे हैं.
बाबूलाल मरांडी, सीपी सिंह सहित तमाम भाजपा नेता ओरमांझी की घटना के राजनीतिकरण में लग गये हैं. लेकिन इस संवेदनशील मसले पर हेमंत ने किसी तरह की बयानबाजी या राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश अब तक नहीं की है.
यह स्वीकार करने में हर्ज नहीं कि स्त्रियों के प्रति अपराध की घटना में वृद्धि हुई है. इसकी जितनी भी निंदा की जाये कम है. सरकार को इस मसले पर सख्त कदम उठाने ही होंगे. यदि गठबंधन सरकार कानून व्यवस्था की स्थिति को काबू में नहीं कर पायी तो यह उसकी विफलता मानी जायेगी.
यह भी कहा जा रहा है कि जनता को विरोध का अधिकार है. लेकिन क्या वास्तव में किशोरगंज चौराहे पर जिस तरह मुख्यमंत्री के काफिले पर हमला हुआ, वह सहज स्वाभाविक आक्रोश का प्रदर्शन था? ऐसा बिलकुल नहीं लगता. यह पूरी घटना एक साजिशपूर्ण कार्रवाई लगती है.
क्यों?
– सबसे पहली बात यह कि यह घटना जिस जगह पर हुई, वह ओरमांझी से 20 किमी दूर की जगह है. विरोध प्रदर्शन उस क्षेत्र की जनता कर सकती थी और राष्ट्रीय मार्ग को जाम किया जा सकता था. लेकिन घटना उस स्थान पर हुई जहां घनी आबादी है. जो भाजपा का गढ़ है.
– भाजपा एक विपक्षी पार्टी के रूप में विरोध प्रदर्शन कर सकती थी. लेकिन इस तरह के विरोध प्रदर्शनों की सामान्यतः इजाजत ली जाती है. या पुलिस प्रशासन को सूचना जरूर दी जानी चाहिए थी. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. कुछ लोग छितराये से वहां जमा रहे और काफिले के करीब आने पर एकबारगी सड़क पर आ गये.
– मुख्यमंत्री के काफिले के आगे सुरक्षा गार्ड्स चलते हं जिनका काम पूरे रास्ते मुख्यमंत्री की सुरक्षा की गारंटी करना है. और जिस तरह से उन पर हमला हुआ, उसके जवाब में वे कार्रवाई कर सकते थे. वहां फायरिंग हो सकती थी और बेगुनाह लोग मारे जा सकते थे. लेकिन उन लोगों ने भी संयम से काम लिया. घटना के तुरंत बाद पहुंचे पुलिस के अफसरों व जवानों ने भी संयम से काम लिया. खुद चोट खाकर भी संयम में रहें. और मुख्यमंत्री रास्ता बदल अपनी सरकारी आवास पर चले गये. एक बड़ा हादसा टल गया.
– घटना के बाद से भाजपा नेताओं की बयानबाजी शुरु हो गयी. उनकी बयानबाजी में आपराधिक घटनाओं की चिंता कम और राजनीति की मात्रा ज्यादा दिखायी देती है.
– लेकिन हेमंत सोरेन खामोश रहे. शायद ओरमांझी जैसी घटना पर वे संजीदा हों, वरना वे भी अपने ऊपर हमले का राजनीतिक लाभ लेने की कोशिशों में लग जाते.
इस घटना की जांच तो होनी ही चाहिए. साथ ही महागठबंधन में शामिल दलों को इस घटना का राजनीतिक रूप से भी विरोध करना चाहिए. और कानून व्यवस्था में सुधार की जिम्मेदारी तो हेमंत सरकार की है ही.
डिस्क्लेमरः लेखक झारखंड के वरिष्ठ पत्रकार हैं और यह लेख उनके फेसबुक वॉल पर प्रकाशित हुआ है.