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उत्कलमणि गोपबंधु दास की जयंती पर ओड़िया भाषा-साहित्य व संस्कृति को मजबूत बनाने का संकल्प

Saraikela / Kharsawan : खरसावां में ओड़िया सामाजिक संगठन आदर्श सेवा संघ व उत्कल सम्मेलनी के संयुक्त तत्वावधान में स्वतंत्रता सेनानी उत्कलमणि पं गोपबंधु दास की 144वीं जयंती मनायी गयी. मौके पर ओड़िया समुदाय के लोगों ने पं गोपबंधु दास की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित की. साथ ही उनके बताये मार्ग पर चलकर भाषा, साहित्य व संस्कृति को सशक्त बनाने का संकल्प लिया. इस अवसर पर पं गोपबंधु दास के रचित कविताओं का भी पाठ किया गया. कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रुप में उपस्थित शिक्षाविद कामाख्या प्रसाद षाडंगी ने कहा कि पं गोपबंधु के बताये मार्ग पर चल कर ही हम अपनी मातृभाषा, संस्कृति व साहित्य को ओर अधिक सशक्त कर सकते हैं. पं गोपबंधु दास द्वारा भाषा, साहित्य व संस्कृति के उत्थान के लिये किये गये कार्याे को हमेशा याद किया जाता रहेगा. उत्कल सम्मेलनी के जिलाध्यक्ष हरिश आचार्या ने कहा कि भाषा, साहित्य, संस्कृति ही हमारी पहचान है. इसके उत्थान के लिये हम सभी को संगठित होकर कार्य करना होगा. पं गोपबंधु दास के विचार हमेशा प्रासंगिक बने रहेंगे. आदर्श सेवा संघ के अध्यक्ष सुमंत मोहंती ने कहा कि पं गोपबंधु दास के आदर्शों को आत्मसात करने की आवश्यकता है. उत्कल सम्मेलनी के जिला महासचिव सुशील षाडं़गी ने कहा कि अपनी भाषा, साहित्य व संस्कृति को ओर अधिक सशक्त बनाने के लिये सभी लोगों को आगे आना होगा. उदय सिंहदेव ने पं गोपबंधु दास को महान स्वंत्रता सेनानी व कवि बताते हुए राज्य सरकार से ओड़िया भाषियों के हितों की रक्षा करने की अपील की. कार्यक्रम को अनूप सिंहदेव, आलोक दास, जीतेन घोड़ाई, अजय प्रधान, चंद्रभानु प्रधान, रश्मि रंजन मिश्रा, भरत चंद्र मिश्रा, रंजीत मंडल, रेणु महारणा, अनिता दलबेहरा, सपना टोप्पो, जयजीत षाडंगी, चंद्रभानु प्रधान, सदानंद प्रधान आदि ने भी संबोधित किया. इससे पूर्व राजबाड़ी के सामने स्थित पं गोपबंधु दास की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर ओड़िया समाज के लोगों ने उनके बताये राह पर चलने का संकल्प लिया. कोविड-19 को लेकर इस वर्ष सादगी के साथ गोपबंधुं दास की जयंती मनाई गई.

कौन थे उत्कलमणी पं गोपबंधु दास ?

9 अक्तूबर 1877 को जन्मे समाज सेवी पं गोपबंधु दास अपने जीवनकाल में हमेशा ओड़िया भाषा, साहित्य व संस्कृति को सशक्त बनाने के साथ-साथ लोगों की सेवा करने में तत्पर रहे. ओड़िशा के गांधी समझे जाने वाले पं गोपबंधु दास भाषा प्रेमी, समाजसेवी, लेखक के साथ-साथ वे स्वतंत्रता सेनानी भी थे. स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कई बार जेल गये. पंड़ित जी के ओड़िया में लिखे हुए सैकड़ों किताब आज भी बाजार में उपलब्ध है. उत्कलमणि गोपबंधु दास का नाम हर ओड़िया भाषी बड़ी श्रद्धा व आदर के साथ लेता है. ओड़िशा के साथ-साथ खरसावां, सरायकेला, चक्रधरपुर, घाटशीला, मुसाबनी, बहरागोड़ा समेत कई स्थानों में पंड़ित जी की प्रतिमायें स्थापित की गयी है. सिंहभूम के विभिन्न स्थानों पं गोपबंधु दास द्वारा स्थापित ओड़िया स्कूल अब भी चल रहे हैं.

1920 में सिंहभूम आये थे गोपबंधु दास

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ओड़िया भाषा के प्रति लोगों में जागरुकता लाने व ब्रितानिया हुकुमत के खिलाफ लोगों को एकजुट करने के लिये 1920 में पं गोपबंधु दास सिंहभूम के विभिन्न क्षेत्रों पहुंचे थे. यहां चक्रधरपुर, केरा, खरसावां, सरायकेला, जैतगढ़, बहरागोड़ा समेत विभिन्न क्षेत्रों में जा कर लोगों क अंग्रेजों के खिलाफ एकजुट किया था. इस दौरान चक्रधरपुर में ओड़िया विद्यालय की स्थापना भी की थी. लक्ष्मीधर नायक द्वारा लिखित पुस्तक सिंहभूम रे गोपबंधु में इसका उल्लेख भी किया गया है. [wpse_comments_template]

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