alt="" width="300" height="135" /> अपनी बंजर कृषि भूमि और कोयना नदी में भरे लौह पत्थर व फाईन्स को दिखाते जामकुंडिया व अन्य गांवों के ग्रामीण.[/caption]

सारंडा: खदानों के कचरे से कोयना नदी का अस्तित्व खतरे में, किनारे की कृषि भूमि भी हुई बंजर

Kiriburu : सारंडा के जामकुंडिया, राजाबेडा़, छोटा जामकुंडिया गांव के ग्रामीणों ने जामकुंडिया गांव में सारंडा पीढ़ के मानकी लागुडा़ देवगम की अध्यक्षता में बैठक की. बैठक में सेल की गुवा, चिड़िया समेत अन्य प्राईवेट खदानों प्रबंधनों के खिलाफ आंदोलन का निर्णय लिया गया. ग्रामीणों का आरोप है कि खदानों से बहकर आने वाली मिट्टी-मुरुम और फाइन्स ने उनकी दर्जनों एकड़ रैयत कृषि भूमि को बंजर बना दिया है, जिसपर वर्षों से कोई फसल नहीं हो पा रही है. बंजर खेत की मालगुजारी वह सरकार को दे रहे हैं. कोयना नदी और अन्य जल स्रोतों का अस्तित्व खतरे में है. ग्रामीण सबसे ज्यादा प्रभावित गुवा और चिड़िया खदान से हैं लेकिन माइंस प्रबंधन इन्हें रोजगार व मुआवजा तक नहीं दे रहा है. इसके अलावे डीएमएफटी फंड या सीएसआर से गांव का विकास भी नहीं किया जा रहा है. [caption id="attachment_146272" align="aligncenter" width="300"]
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alt="" width="300" height="135" /> अपनी बंजर कृषि भूमि और कोयना नदी में भरे लौह पत्थर व फाईन्स को दिखाते जामकुंडिया व अन्य गांवों के ग्रामीण.[/caption]
alt="" width="300" height="135" /> अपनी बंजर कृषि भूमि और कोयना नदी में भरे लौह पत्थर व फाईन्स को दिखाते जामकुंडिया व अन्य गांवों के ग्रामीण.[/caption]