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सारंडा के नक्सल प्रभावित गांवों का हाल, वन विभाग से एनओसी के बाद भी पक्की सड़क को तरस रहे ग्रामीण

मुख्य सड़क तितलीघाट मोड़ से बहदा गांव तक लगभग पांच किलोमीटर लंबी सड़क आज भी है कच्ची, बरसात में टापू बन जाते हैं ये गांव.

info@lagatar.in by info@lagatar.in
September 3, 2021
in कोल्हान प्रमंडल, चाईबासा
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Kiriburu : सारंडा के छोटानागरा पंचायत का अत्यंत नक्सल प्रभावित बहदा और तितलीघाट गांव के ग्रामीण आजादी के बाद से ही पक्की सड़क के लिए तरस रहे हैं. मुख्यमंत्री से लेकर सांसद, विधायक, एसपी और उपायुक्त से निरंतर गुहार लगाने के बावजूद आज तक इस गांव को जाने वाली सड़क का निर्माण नहीं हो पाया. उल्लेखनीय है कि इस गांव क्षेत्र में नक्सलियों का भारी प्रभाव पहले से अब तक रहा है. नक्सलियों के विरोध व दबाव के बावजूद गांव के ग्रामीण इस सड़क का निर्माण कराना चाहते हैं ताकि वे सरकार की मुख्यधारा और बुनियादी सुविधाओं से जुड़ सकें. वर्षों पूर्व तक इस गांव को जाने वाली कच्ची सड़क से पुलिस नक्सलियों द्वारा बिछाये गये लैंड माईन बरामद करते रही थी. आज भी पुलिस नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन के दौरान इस सड़क से गुजरने के बजाये जंगल रास्तों को अपनाती है.

मुख्य सड़क से बहदा को जोड़ा नहीं, आगे बना दी पीसीसी 

सारंडा एक्शन प्लान के दौरान इन गांवों को मुख्य सड़क से पक्की सड़क के रूप में जोड़ने का आदेश हुआ था. लेकिन पीडब्ल्यूडी मुख्य सड़क (तितलीघाट मोड़) से बहदा गांव तक लगभग पांच किलोमीटर लंबी सड़क आजतक नहीं बना सकी. जबकि बहदा गांव से अंदर कुमडीह गांव की तरफ पीसीसी सड़क का निर्माण हुआ जो किसी भी गांव के लिए लाभकारी साबित नहीं हो रहा है. जब तक यह सड़क नहीं बनेगी तब तक कुमडीह क्षेत्र के ग्रामीण बरसात में इस रास्ते से आवागमन नहीं कर सकते.

बारिश के दिनों में शिक्षक और सेविका महीनों नहीं आते

उल्लेखनीय है कि हल्की वर्षा मात्र से यह गांव पूरी तरह टापू में तब्दील हो जाता है. कीचड़ भरे रास्तों पर साइकिल तो क्या पैदल भी चलना मुश्किल है. गांव में वर्ग आठ तक सरकारी विद्यालय एंव आंगनबाडी़ केन्द्र है, लेकिन सड़क नहीं होने की वजह से बरसात में शिक्षक व सेविका अपनी सेवा महीनों तक नहीं दे पातीं जिससे बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो जाता है. ग्रामीण को लगभग आठ किलोमीटर दूर बाईहातु गांव में पैदल राशन लेने जाना होता है जो बरसात में राशन लेने नहीं जा पाते. स्वास्थ्य सुविधा व टीकाकरण का लाभ ग्रामीणों को नहीं मिलता जिससे चिकित्सा के अभाव में दर्जनों ग्रामीण व बच्चे दम तोड़ चुके हैं. सरकार की विकास योजनाएं से लगभग यह गांव पूरी तरह से कटे हुए हैं. बरसात के बाद प्रतिवर्ष गांव के सारे ग्रामीण श्रमदान कर इस कच्ची सड़क की मरम्मती कर चलने लायक बनाते हैं लेकिन हल्की वर्षा के बाद एक भी वाहन गुजरा तो यह सड़क पुनः खराब हो जाता है.

फरवरी 2020 में मिला एनओसी, लेकिन काम नहीं शुरू हुआ

इस सड़क के निर्माण के लिए सारंडा के तत्कालीन डीएफओ रजनीश कुमार ने ग्रामीण विकास विभाग, चक्रधरपुर के कार्यपालक अभियंता को फरवरी 2020 में सशर्त स्वीकृति प्रदान कर दी थी. इस एनओसी को हासिल करने में गांव के मुंडा रोया सिधु, वार्ड सदस्य कामेश्वर माझी एंव गणेश सिधु ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. ये तीनों युवक कई दिनों तक कार्यपालक अभियंता एंव सारंडा वन प्रमंडल कार्यालय का निरंतर चक्कर लगाते रहे. फाइलों को दौड़-दौड़कर अधिकारियों तक पहुंचाते रहे. सारंडा के पूर्व डीएफओ की भूमिका की ग्रामीणों ने सराहना की. लेकिन एनओसी मिलने के दो साल बात भी हालत जस-के-तस हैं. ग्रामीणों ने चक्रधरपुर के कार्यपालक अभियंता से आग्रह किया कि वह यथाशीघ्र गुणवत्तापूर्ण गांव की सड़क और पुल-पुलिया की निविदा प्रक्रिया पूर्ण कराकर कार्य अविलम्ब प्रारम्भ करायें.

वन विभाग ने एनओसी में रखी हैं कई शर्तें

सारंडा के तत्कालीन डीएफओ ने दिये गये एनओसी में जो शर्त रखी है, उस अनुसार लगभग पांच किलोमीटर लंबी उक्त सड़क में 330 मीटर लंबा एंव पौने छः मीटर चौडा़ (लगभग 0.1897 हेक्टेयर) वन भूमि का क्षेत्र आयेगा. जिसपर 3.75 मीटर पक्कीकरण की चौडा़ई समेत दो मीटर फ्लैंक मिलाकर पूरी चौडा़ई 5.75 मीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए. वन क्षेत्र से पत्थरों की तोडा़ई व मिट्टी की कटाई नहीं हो, पथ निर्माण के बाद पथ के दोनों तरफ बांस गैवियन द्वारा 132 पौधे लगाकर सात वर्षों तक उसकी देखभाल की जाये, वन क्षेत्र को खंडित नहीं किया जाये तथा श्रमिक शिविर नहीं लगाया जाये, सुर्यास्त के बाद पथ निर्माण का कार्य नहीं कराना तथा पथ निर्माण में उपयोग होने वाले वाहनों की अनुमति वन विभाग से लेना आदि शर्ते रखी गई हैं.

श्रमदान कर हर साल बरसात के बाद सड़क बनाने में लगते हैं बहदा के ग्रामीण.

अब और इंतजार नहीं होता

गांव के मुंडा रोया सिधु एंव वार्ड सदस्य कामेश्वर माझी ने कहा कि वर्षों से इस सड़क के निर्माण केे लिए मुख्यमंत्री, विधायक, सांसद, उपायुक्त, एसपी आदि से गुहार लगाये लेकिन कोई हमारी पीडा़ को नहीं सुन रहा है. हम लोग स्वयं प्रयास कर इस सड़क का निर्माण के लिए सारंडा के तत्कालीन डीएफओ से एनओसी प्राप्त कर संबंधित विभाग को भी दे चुके हैं फिर भी इस दिशा में विभाग कोई सकारात्मक कदम नहीं उठा रही है. इस सड़क के बनने से तितलीघाट, बहदा, कुमडीह, कुदलीबाद, कोलायबुरु आदि दर्जनों गांव के ग्रामीण लाभान्वित होंगे.

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