Hyderabad : आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा है कि अगर कोई अनुसूचित जाति का व्यक्ति धर्म परिवर्तन करता है, तो उसका एससी का दर्जा खत्म हो जाता है. वह अनुसूचित जाति एवं जनजाति अधिनियम के तहत संरक्षण का दावा नहीं कर सकता.
हाईकोर्ट ने अनुसूचित जाति समुदाय के लोगों के धर्म परिवर्तन को लेकर यह बयान दिया है. खबर है कि हाईकोर्ट की जस्टिस हरिनाथ(सिंगल बेंच) ने गुंटूर जिले के निवासी अक्कला रामी नाम के शख्स की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बात कही.
अक्लला पर आरोप था कि उसने हिंदू से ईसाई धर्म स्वीकार करनेवाले चिंतादा नामक शख्स को जातिसूचक गालियां दी. अक्कला के वकील ने कोर्ट में कहा कि चिंतादा का दावा है कि वह एक चर्च में पादरी के तौर पर काम कर रहा है.
उसने कई साल पहले अपनी मर्जी से अपना धर्म बदल लिया था. कहा कि ईसाई धर्म जाति व्यवस्था को मान्यता नहीं देता, तो फिर एससी-एसटी एक्ट का कोई मतलब नहीं रह जाता.
जस्टिस हरिनाथ ने कहा कि जब चिंतादा खुद ही कह रहा है कि वह पिछले 10 सालों से ईसाई धर्म का पालन कर रहा है, तो पुलिस ने आरोपी(अक्कला) पर एससी एसटी एक्ट के तहत केस क्यों किया.
जस्टिस हरिनाथ ने अक्काला के वकील की दलीली स्वीकार करते हुए कहा, एससी-एसटी एक्ट उन समुदायों से जुड़े व्यक्तियों की रक्षा के लिए है, यह धर्म परिवर्तन करने वाले लोगों के लिए नहीं है. साथ ही जस्टिस हरिनाथ ने यह केस खारिज कर दिया.
जान लें कि संविधान में अनुसूचित जाति 1950 के अनुसार केवल भारत में पैदा हुए धर्मों (हिंदू, सिख, बौद्धों) के अनुसूचित जाति समुदायों को ही मान्यता प्राप्त है. अगर कोई मुस्लिम या ईसाई धर्म अपनाता है, तो उसका यह दर्जा खत्म हो जाता है.
सुप्रीम कोर्ट पूर्व में स्पष्ट कर चुका है कि अगर कोई ईसाई या मुस्लिम व्यक्ति आरक्षण का लाभ लेने के लिए वापस अपने धर्म को बदलता है तो यह संविधान के साथ धोखा होगा.
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