Nishikant Thakur
सत्ता के लिए देश में अब ऐसा होने लगा है कि हमारा पतन ही होता जा रहा है और पता नहीं, अभी नीचे और कितना पतन बाकी है. मेहनत की कमाई को मुफ्त में खाने का तरीका है जातिवाद, राजवाद, ब्रह्मवाद, यज्ञवाद. समाज में जनता को इस ‘वाद’ के जाल से तब तक नहीं बचाया जा सकता, जब तक वह खुद सचेत न हो और उन्हें सचेत होने देना स्वार्थियों को पसंद नहीं होता. ‘भारत जोड़ो यात्रा’ को पिछले सप्ताह एक वर्ष पूरा हो गया. इस एक वर्ष में कांग्रेस ने क्या पाया और क्या खोया, यदि इसका विश्लेषण किया जाए तो जिस कांग्रेसमुक्त भारत की कल्पना भाजपा के नेताओं ने की थी, इस एक वर्ष में ही उसके अरमान धूल धुसरित हो गए. जब राहुल गांधी ने पिछले वर्ष ‘भारत जोड़ो यात्रा’ शुरू की थी, तो उसे सत्तारूढ़ ने इसे बहुत हल्के में लिया था और छोटी-छोटी बातों को लेकर जमकर तंज कसा जाता था. कभी टी-शर्ट, तो कभी किसी से मिलने पर स्वामी विवेकानंद के दर्शन न करने को लेकर, कभी तानाशाह सद्दाम हुसैन से तुलना की गई और न जाने क्या-क्या, लेकिन बेपरवाह होकर राहुल गांधी ने अपनी यात्रा सफल बनाने में कामयाब रहे. परिणाम आलोचक के मुंह पर करारा तमाचा था- सत्तारूढ़ भाजपा को हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में कांग्रेस ने सत्ता से बेदखल कर दिया.
अब अपने देश में एक नया विवाद खड़ा हो गया है, वह है इंडिया बनाम भारत. इस बात को सब जानते हैं कि इंडिया और भारत एक ही देश का नाम है, लेकिन अब इस पर भी बवाल खड़ा हो गया है. यह बात समझ में नहीं आती कि आखिर इस तरह का फितूर राजनीतिज्ञों के मन में आता कैसे है?
प्रचलन में दोनों नामों की चर्चा होती रही है और खासकर केंद्रीय सरकारी कार्यालय के कामकाज में इंडिया नाम का ही प्रयोग किया जाता है, लेकिन जहां अपने पर, अपने देश पर गर्व करने का मुद्दा आता है, वहां भारत नाम का प्रयोग हम करते हैं. दोनों एक ही नाम हैं, जैसे सोना कहें या गोल्ड… बात एक ही है. सरकारी और खासकर केंद्रीय सरकार के मामले में उसके पत्रजात पर अंग्रेजी का ही प्रयोग किया जाता है जैसे- गवर्नमेंट आफ इंडिया ही लिखा जाता हैं, न कि गवर्नमेंट आफ भारत. अभी जी-20 शिखर सम्मेलन संपन्न हुआ, तो जितने भी विदेशी मेहमान आए थे, सभी गवर्नमेंट आफ इंडिया के निमंत्रण पर यहां आए थे, लेकिन जब उन्हें रात्रि भोज के लिए प्रेसिडेंट आफ भारत का निमंत्रण मिला होगा, तो निश्चित रूप से वे कुछ पल के लिए भ्रमित हो गए होंगे कि अतिथि तो वे गवर्नमेंट आफ इंडिया के थे, लेकिन रात्रि भोज का निमंत्रण प्रेसिडेंट ऑफ भारत से आया है, आखिर यह मामला क्या है!
भाजपा से ही कई राज्यों के राज्यपाल रहे सत्यपाल मल्लिक ने खुलेआम सार्वजनिक मंच से आरोप लगाया है कि अदाणी का सारा रुपया प्रधानमंत्री का है. उन्होंने जनता से प्रश्न किया कि ‘आपने सुना है कि जो शिकायतकर्ता है उसकी जांच होगी या जिसकी शिकायत की गई है उसकी जांच होगी. मैंने शिकायत की तो मेरी ही जांच दो—दो बार की गई, लेकिन जिसकी शिकायत की गई, उसकी जांच नहीं कराई गई.’ अति तो तब और हो गई, जब उनके ही पूर्व सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने प्रधानमंत्री को निरा अयोग्य घोषित कर दिया और उनका प्रधानमंत्री के पद पर बने रहना देश का दुर्भाग्य बताया. कुछ दिनों से तो सरेआम जनता प्रधानमंत्री के खिलाफ अनर्गल बातें करती नजर आती है. हर चौक-चौराहों पर जहां भी आप खड़े हो जाएं, लोग उन्हें कोसते नजर आते हैं. यह सब कुछ दिनों से ही शुरू हुआ है. वह भी तब से जब से इंडिया महागठबंधन हुआ है. अब यह बात खुलकर सामने आने लगी है कि वर्तमान सरकार का जो कार्यकाल रहा है, वह देशहित में अच्छा नहीं रहा है और अब प्रधानमंत्री का प्रताप कम होने लगा है, क्योंकि अब उनकी पार्टी की छवि जनता के समक्ष उजागर हो गई है.
उदाहरण के रूप में उत्तर प्रदेश के घोसी में हुए विधानसभा उपचुनाव में भाजपा की हार को देखा जा रहा है. देश के सात उपचुनाव में इंडिया को चार और भाजपा के खाते में तीन सीट गई है, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण उत्तर प्रदेश की घोसी सीट के उपचुनाव को देखा जा रहा था, लेकिन बुरी तरह भाजपा उम्मीदवार का पराजित होना महत्वपूर्ण हो जाता है. विश्लेषकों का कहना है कि उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का इकबाल कम हो गया है. विश्लेषक भाजपा की इस पराजय को आगामी लोकसभा चुनाव से जोड़कर देखते हैं, क्योंकि कहा यह जाता है कि दिल्ली में सत्ता पर अपनी उपस्थिति दर्ज करने का रास्ता उत्तर प्रदेश से ही जाता है. ऐसी स्थिति में भाजपा की यह दुर्गति चिंता की लकीरों को गहरा कर देता है.
याद कीजिए वर्ष 2013 जब कांग्रेस के प्रति कितना दुष्प्रचार किया जा रहा था और भाजपा के लिए कितना प्रचार किया जा रहा था, गुजरात मॉडल की कितनी विशेषताएं बताई जा रही थीं. लोग मंत्रमुग्ध थे, आशाओं की एक तरह से बाढ़ आ गई थी. कितने खुश थे उस पर यह दिवास्वप्न कि देश के हर व्यक्ति के खाते में कम से कम पंद्रह लाख रुपये आएंगे, हर साल दो करोड़ बेरोजगारों को रोजगार मिलेगा. देश का हर व्यक्ति सुखी जीवन का स्वप्न देखने लगा था. जहां जो भी आमने-सामने होता था, सभी आह्लादित थे कि खुशियों का एक प्रवाह आने वाला है, लेकिन एक बार नहीं, दो-दो बार जनता को इस तरह मंत्रमुग्ध कर दिया गया कि सब यह सोचने पर विवश हो गए कि ‘अच्छे दिन’ आने ही वाले हैं, लेकिन जब आंख खुली, तो सारे स्वप्न टूट चुके थे.
डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.