Jamshedpur (Ashok Kumar) : पूर्व सांसद सह आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने घोषणा कर दी है कि सरना धर्म कोर्ड देने और मरांग बुरू बचाओ की मांग को लेकर 11 फरवरी से सड़क और रेल मार्ग को अनिश्चित काल के लिये जाम किया जायेगा. इसकी जानकारी पहले ही भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र के माध्यम से दी गयी थी. अब आंदोलन को और आक्रामक रूप देने का काम किया जा रहा है.
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17 जनवरी से शुरू की गयी थी मरांग बुरू बचाओ भारत यात्रा
मरांग बुरु (पारसनाथ पहाड़ ) बचाओ भारत यात्रा सेंगेल की ओर से पूर्व सांसद सालखन मुर्मू और सुमित्रा मुर्मू के नेतृत्व में जारी है. 17 जनवरी को इसकी शुरूआत जमशेदपुर से की गयी थी. 11 वां दिन जामताड़ा जिला (संताल परगना) में 12वें दिन नाला प्रखंड जन जागरण सभा के बाद 30 जनवरी को पुरुलिया जिला (बंगाल), 31 जनवरी को दुमका जिला के मसलिया और एक फरवरी को महेशपुर (पाकुड़ जिला), 2 फरवरी को बरहरवा, साहिबगंज ज़िला, 3, 4, 5 फरवरी को क्रमशः पोड़ैयाहाट, सुंदरपहाड़ी, गोड्डा (गोड्डा जिला) प्रखंडों का दौरा करेगा.
7 फरवरी को चाईबासा पिल्लई भवन में होगी जनसभा
तत्पश्चात 7 फरवरी को चाईबासा के पिल्लई हॉल में मरांग बुरू बचाओ यात्रा-जनसभा का आयोजन किया जाएगा. भारत यात्रा 28 फरवरी तक चलेगा. भारत यात्रा देश के विभिन्न राज्यों के आदिवासी बहुल जिलों में जिलेवार जनसभा करेगा, जनता को जागरूक करेगा. भारत यात्रा के दौरान मरांग बुरू बचाने के साथ 2023 में हर हाल में सरना धर्म कोड की मान्यता लेने, कुर्मी को एसटी बनाने वालों का विरोध करने, असम, अंडमान के झारखंडी आदिवासियों को एसटी बनाने, झारखंड में प्रखंडवार नियोजन नीति लागू करने, देश के सभी पहाड़ पर्वतों को आदिवासियों को सौंपने की मांगें शामिल हैं. आदिवासी स्वशासन व्यवस्था में जनतांत्रिक और संवैधानिक सुधार लाने आदि मुद्दों पर प्रकाश डाला जाएगा.
14 जनवरी को राष्ट्रपति को भेजा गया था पत्र
14 जनवरी 2023 को महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र प्रेषित कर इन विषयों की जानकारी दी गई थी. सेंगेल का दृढ़ संकल्प है मारंग बुरू को हर हाल में जैनों के कब्जे से छुड़ाना है. मरांग बुरू पर पहला अधिकार हम आदिवासियों का है. यह हमारे लिए राम मंदिर, स्वर्ण मंदिर, मक्का मदीना और वेटिकन सिटी से कम नहीं है.
आदिवासी विरोधी है झामुमो
झामुमो के नेता आदिवासी विरोधी हैं. खतियानी जोहार यात्रा के नाम से जनता को ठगने का काम कर रहे हैं. उनके सहयोगी संगठन की तरह कार्यरत आसेका, माझी परगना महाल, संताली लेखक संघ आदि भी चुप रहकर मरांग बुरू को लुटाने-मिटाने में योगदान कर रहे हैं. कुर्मी को आदिवासी बनाने का षड्यंत्र भी जेएमएम ने रची है. जो हम असली आदिवासियों के लिए फांसी का फंदा है.
30 जनवरी को पांच राज्यों में मशाल जुलूस निकालने का निर्णय
30 जनवरी 2023 को झारखंड, बंगाल, बिहार, उड़ीसा, असम के लगभग 50 जिले मुख्यालयों में मरांग बुरु को बचाने के लिए और सरना धर्म कोड को 2023 में हर हाल में लेने के लिए मशाल जुलूस निकाला जाएगा. महामहिम राष्ट्रपति को ज्ञापन पत्र प्रेषित किया जाएगा. भारत सरकार और झारखंड सरकार के द्वारा मरांग बुरु की आदिवासी को वैधानिक वापसी और सरना धर्म कोड की मान्यता संबंधी कोई सकारात्मक पहल नहीं होने के खिलाफ तिलका मुर्मू की जन्म जयंती (11 फरवरी 1750) 11 फरवरी 2023 से अनिश्चितकालीन रेल रोड चक्का जाम राष्ट्रीय स्तर पर किया जाएगा. सेंगेल तमाम आदिवासी जनता और संगठनों से शांतिपूर्ण सहयोग की अपील करता है.
सालखन ने प्रबुद्ध नागरिकों से किये सवाल
सेंगेल देश और दुनिया के सभी प्रबुद्ध नागरिकों, बुद्धिजीवियों और भारतीय संविधान में आस्था रखने वालों से पूछना चाहता है- क्या आदिवासियों को उनकी ईश्वर, उनका प्रकृति पूजा धर्म और उनकी धार्मिक आस्था विश्वास का अधिकार नहीं है ? क्या देश के लिए केवल हिंदू, मुसलमान, ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध ही धर्म है ? और बाकी हम प्रकृति पूजा में विश्वास करने वाले आदिवासियों का कोई ईश्वर, कोई धर्म, कोई धार्मिक आस्था विश्वास नहीं है? यदि है और भारत का संविधान उसकी इजाजत देता है तो पारसनाथ पहाड़ में केंद्र सरकार, राज्य सरकार और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग आदि का आदिवासी विरोधी सोच, मानसिकता और रवैया कहां तक उचित और जायज है? आदिवासियों को उजाड़ कर जैनों को कब्जा दिलाना कहां तक जायज है? गलत है. जबकि मरांग बुरु अर्थात पारसनाथ पहाड़ पर तथ्यागत- रिकॉर्ड ऑफ़ राइट्स के तहत आदिवासियों का पहला हक है तथा सीएनटी/ एसपीटी कानून और अन्य वन संरक्षण कानून के तहत मारंग बुरु में जिस प्रकार का भूमि अतिक्रमण आदि जैनों द्वारा किया गया है. उसकी जांच भी अविलंब पहले जरूरी है. आखिर जैनों को भी वहां किस कानून के तहत और कब, किसने बसाया है? आदिवासियों की धार्मिक आस्था, विश्वास और तथ्यों को दरकिनार कर चोट करना आदिवासियों का धार्मिक नरसंहार (रिलीजियस जेनोसाइड) से कम नहीं है. अविलंब इसपर बहुपक्षीय बातचीत शुरू की जाए. एक राष्ट्रीय आयोग का गठन किया जाय और भारत तथा दुनिया के आदिवासियों को उनका नैसर्गिक धार्मिक-प्राकृतिक अधिकार प्रदान किया जाए. अन्यथा सेंगेल का मरांग बुरु बचाओ भारत यात्रा अनवरत अपनी मंजिल को प्राप्त करने तक जारी रहेगा.
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