New Delhi : कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने 1975 में लगी इमरजेंसी पर सवाल उठाते हुए कहा कि इससे हमें सबक लेने की जरूरत है. श्री थरूर ने मलयालम भाषा के अखबार दीपिका में गुरुवार को प्रकाशित अपने एक आर्टिकल में लिखा कि इसे(आपातकाल) सिर्फ भारतीय इतिहास के काले अध्याय के रूप में याद नहीं कर इससे सबक लेना चाहिए.
My column for a global audience on the lessons for India and the world of the Emergency, on its 50th anniversary @ProSyn https://t.co/QZBBidl0Zt
— Shashi Tharoor (@ShashiTharoor) July 9, 2025
शशि थरूर ने लिखा कि अनुशासन और व्यवस्था के लिए उठाये गये स्टेप कई बार ऐसी क्रूरता में बदल जाते हैं, जिन्हें किसी भी तरह उचित करार नहीं दिया जा सकता.
याद करें कि आज से 50 साल पहले, 25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगा दी थी, जो 21 मार्च 1977 तक लागू रही. थरूर ने अपने लेख में इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी द्वारा चलाये गये जबरन नसबंदी अभियान का जिक्र किया.
शशि थरूर ने लिखा कि यह क्रूरता थी. उन्होंने लिखा कि गरीब ग्रामीण इलाकों में लक्ष्य पूरा करने के लिए हिंसा का सहारा लिया गया. दिल्ली आदि शहरों में बेरहमी से झुग्गियां तोड़ डाली गयी. इससे हजारों लोग बेघर हो गये.
थरूर ने अपने लेख में लोकतंत्र को हल्के में नहीं लेने की बात पर बल दिया. लिखा कि यह एक 'बहुमूल्य विरासत है, जिसे लगातार संरक्षित करना आवश्यक है. चेताया कि सत्ता को केंद्रित करने, असहमति को दबाने और संविधान को दरकिनार करने का असंतोष कई रूपों में फिर सामने आ सकता है. थरूर ने कहा कि लोकतंत्र के संरक्षकों को हमेशा सतर्क रहना होगा, ताकि ऐसी स्थितियां दोबारा पैदा न हों.
थरूर ने कहा, आज का भारत 1975 जैसा नहीं है. हम अब ज्यादा आत्मविश्वासी, ज्यादा समृद्ध और कई तरीकों से एक मजबूत लोकतंत्र हैं. फिर भी, आपातकाल से मिली सीख आज भी बेहद अहम हैं.