वसूलों की राजनीति की कीमत चुका रहे शिवा महतो
Giridih : बिहार से अलग राज्य के लिए अग्रणी भूमिका निभाने वाले में शिवा महतो बीमार चल रहे है. शिबू सोरेन के सबसे विश्वस्त साथियों और उनकी पार्टी का राज्य में सरकार होने के बावजूद उन्हें उचित उपचार नहीं मिल पा रहा है. उनका इलाज उनके घर पर ही कराया जा रहा है. आंदोलकारी बीमार है लेकिन सरकार की तरफ से सुध भी नहीं लिया जा रहा है. शिवा महतो के दो बेटे है जो अपने पिता की सेवा में लगे हुए है.
अगर राज्य बनाने और आंदोलनकारी होने के नाते उन्हे बेहतर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध हो इसकी पहल राज्य सरकार को करनी चाहिए. जो अभी तक नहीं की गई है. इससे सरकार की कथनी और करनी में जमीन और असमान का अंतर स्वत: ही दिखने लगता है. झारखण्ड प्रदेश के अलग-राज्य के लिए निर्बाध रूप से लड़ाई में कूदने से लेकर इसे मुकाम तक पहुंचाने वाले योद्धाओं का यह हाल सरकार के द्वारा आंदोलनकारियों को सम्मान देने की घोषणा से मेल नहीं खाता. झारखंड सरकार की ओर से कहा गया कि आंदोलनकारियों को पेंशन और उन्हे सम्मान दिया जाएगा. शिवा महतो का बेहतर इलाज न होना सरकार की दावे को झूठलाने के लिय काफी है.
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सूदखोर , महाजन, माफिया में डर का दूसरा नाम था शिवा महतो
शिवा महतो शिबू सोरेन की तरह ही सूदखोर, महाजन, माफिया के खिलाफ अवाज बुलंद करते हुये अलग झारखंड राज्य के आंदोलन में अग्रणी भूमिका में रहे. विनोद बिहारी महतो,कॉमरेड ए० के० राय जैसे दिग्गज आंदोलनकारियों की कतार में शिवा महतो का नाम लिया जाता है. वसूलों की राजनीति और आंदोलनकारी में शिवा महतो की अलग पहचान रही है. झारखण्ड अलग राज्य के लिए लड़नेवाले शिबा महतो को शेरे शिबा की उपाधि मिली थी. वह जीवन भर वसूलों की राजनीति करते रहे है. उन्हें हर कोई चाचा कह कर ही संबोधित करता है.
वसूलों की राजनीति करने वाले शिवा महतो तीन बार रहे हैं विधायक
वसूलों के साथ राजनीति करने वाले शिवा महतो 1980 में पहली बार झामुमो से चुनाव जीते और झारखंड कॉमर्स कॉलेज का स्थापना किया. 1985 में शिवा महतो दूसरी बार डुमरी से विधायक चुने गए. 1995 में झामुमो से शिवा महतो तीसरी बार चुनाव जीतकर डुमरी के ही विधायक बने. इनका जीवन वर्तमान नेताओं की तरह नहीं रहा. वह कभी सुविधाभोगी एवं राजनैतिक तौर पर दिशाहीन नहीं रहे.
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