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स्मृति शेष : झारखंड में स्वशासन आंदोलन के पुरोधा बंदी उरांव

Praveen Kumar  Ranchi : आज से करीब तीन साल पहले बंदी बाबा को जन्म दिन की बधाई देने के लिए हमने फोन किया था. तब उन्होंने हमें अपने पास बुलाया. करीब तीन घंटे तक झारखंड के अलग अलग विषयों में हम बातचीत करते रहे. वे पेसा, पत्थलगड़ी, भ्रष्टाचार, झारखंड और झारखंडियों की उन्नति के बारे में बीमार रहने के बाद भी लगातार बोलते रहे. उस दौरान उन्होंने कहा था. वर्तमान विधायक, सांसद और अधिकारी पेसा कानून के बारे में नहीं जानते. इसे पूरी तरह लागू करने की इच्छाशक्ति अलग राज्य बनने के बाद भी सरकार में नहीं दिखी. अगर पेसा कानून लागू रहता तो राज्य में कमीशनखोरी का मामला भी नहीं होता. राज्य में ग्रामसभा को अधिकार दिया जाता तो आज राज्य में विकास का दूसरा ही नजारा रहता. बंदी उरांव ने राज्य को करप्शन से मुक्ति का एक ही रास्ता पेसा कानून को अमल में लाना बताया था. इसे भी पढ़ें : बिहार">https://english.lagatar.in/bandi-oraon-a-minister-in-the-bihar-government-died-breathed-his-last-late-monday/45928/">बिहार

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कार्तिक उरांव के बाद राजनीतिक शून्य को पाटने का किया प्रयास

आदिवासी लीजेंड कार्तिक उरांव की प्रेरणा से भारतीय पुलिस सेवा छोड़ कर राजनीति में आये बंदी उरांव न केवल आदिवासी हितों के प्रवक्ता बने रहे, बल्कि झारखंड के जल,जंगल,जमीन और स्वशासन की रक्षा के लिए पूरी जिंदगी संघर्ष करते रहे. कार्तिक उरांव के निधन के बाद उभरे राजनीतिक शून्य को जिन दोःतीन उरांव नेताओं ने भरने का प्रयास किया, उनमें बंदी उरांव का नाम अग्रणी है. आदिवासी नेताओं में उनकी खास पहचान यह रही कि सत्ता ओर विधायकी के बावजूद आदिवासी सांस्कृतिक पहचान के सवाल पर कभी भी उन्होंने  बीच का रास्ता  नहीं चुना. जीवन के उत्तर्राद्ध में तो उनका पूरा जीवन संविधान की पांचवीं अनुसूची के अनुकूल आदिवासी स्वशासन के लिए समर्पित रहा. पेसा कानून को कानूनी बनाने में बंदी उरांव किसी भी नेता की तुलना में ज्यादा सक्रिय रहे. बाद में तो डॉ बी. डी. शर्मा के साथ उनकी ऐसी अटूट जोड़ी बन गयी, जिसने पूरे झारखंड में राज्य बनने के पहले ही हजारों गांवों में पत्थरगड़ी आंदोलन को संभव बनाया. इसे भी पढ़ें : कोरोना">https://english.lagatar.in/21-jharkhand-police-jawans-caught-in-corona/45980/">कोरोना

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झारखंड में स्वशासन आंदोलन के पुरोधा माने जाते हैं

डॉ बी. डी. शर्मा देश के आदिवासी सवालों के लिए पहचाने जाते रहे हैं. माना जाता है कि इंदिरा गांधी ने उनके ही सुझाव पर ट्राइबल सब प्लान बनाया था.1994 से 1996 के बीच देश के आदिवासी अंचलों से पेसा की आवाज बुलंद होने लगी. बंदी उरांव ने आदिवासी जमीन लूट के खिला जो रिपोर्ट बनायी थी, उस रिपोर्ट ने पिछली सदी के 90 के दशक में धूम मचायी थी. यह रिपोर्ट आज भी संदर्भ की तरह इस्तेमाल की जाती है. इस रिपोर्ट को तैयार करने वालों में पीएनएस सुरीन भी एक थे, जो बाद के दिनों में आदिवासी स्वशासन के लिए दबाव बनाने वालों में शामिल थे.

आदिवासी समाज में समझौता नहीं करने वाले पुरोधा के रूप में जगह

बंदी उरांव उन अंतिम आदिवासी नेतृत्वकर्ताओं में से एक थे, जिन्हें आदिवासी समाज सादगी, स्पष्टता और समझौता नहीं करने वालों की श्रेणी में रखता है. झारखंड़ आंदोलन के लिए उनके कार्यो को याद किया जा सकता है. राज्य बनने के बाद तो उनकी निराशा बढ़ती गयी और वे ज्यादा तल्ख होते गये. उन्हें लगने लगा कि राज्य बनने के बाद भी आदिवासियों और अन्य झारखंडियों के सपनों के साथ छल किया जा रहा है. साथ ही झारखंड उस लूट का हिस्सा बना   हुआ है जिसके खिलाफ झारखंड आंदोलन के दौर में बातें की जाती रही हैं. जान लें कि बंदी उरांव  झारखंडियों की सांस्कृतिक पहचान पर मंडराते खतरों को लेकर बेबाक राय रखते थे. https://english.lagatar.in/party-changed-case-court-can-pronounce-verdict-on-babulals-petition-on-may-4/45990/

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