LagatarDesk : चैत्र नवरात्रि पर इस बार चतुर्थी और पंचमी तिथि एक साथ पड़ रही हैं. यानी आज (2 अप्रैल) को मां दुर्गा के चौथे और पांचवें स्वरूप दोनों की पूजा की जायेगी. बुधवार को चतुर्थी तिथि सुबह 7.30 बजे तक थी. इसके बाद पंचमी तिथि शुरू हो गयी. चैत्र नवरात्र की चतुर्थी तिथि पर मां कूष्मांडा की पूजा की जाती है. जबकि पंचमी तिथि पर स्कंदमाता की पूजा-अर्चना करने का विधान है.
माता कूष्मांडा की उपासना से रोगों का होगा नाश
मां दुर्गा के चौथे रूप माता कूष्मांडा योग और ध्यान की देवी भी हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माता ने अपनी मंद मुस्कान से ब्रह्मांड की उत्पत्ति की थी. इसलिए देवी का नाम कूष्मांडा पड़ा. सृष्टि की रचना करने के कारण माता को सृष्टि का आदि स्वरूप (आदिशक्ति) भी कहा जाता है. ऐसी मान्यता है कि देवी का निवास स्थान सूर्यमंडल के मध्य है. इसलिए देवी सूर्य के समान तेज है.
देवी की आराधना से आयु, यश, बल में होती है वृद्धि
माता कूष्मांडा की उपासना से भक्तों पर किसी प्रकार का कष्ट नहीं आता. साथ ही सभी रोग और शोक मिट जाते हैं और समस्त सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है. मां कूष्मांडा की अराधना से सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है. माता की पूजा-अर्चना करने से लोग निरोग होते हैं. मां कूष्मांडा की पूजा करने से आयु, यश, बल और स्वास्थ्य में वृद्धि होती है. ज्योतिष की मानें तो मां कूष्मांडा का संबंध बुध ग्रह से है. इसलिए इनकी अराधना से बुध ग्रह मजबूत होता है.
मालपुआ व कुम्हड़ा का भोग लगाकर मां को करें प्रसन्न
हिंदू मान्यताओं के अनुसार, कूष्मांडा एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ कुम्हड़ा होता है. कुम्हड़ा वो फल है, जिससे पेठा बनता है. इसी कारण माता को कुम्हड़ा की बलि देना शुभ माना जाता है. यह भी मान्यता है कि मां कूष्मांडा को दही और हलवा अति प्रिय है. जो भक्त मां को इन चीजों का भोग लगाते हैं. उनपर मां की कृपा सदेव बनी रहती है. ऐसा कहा जाता है कि मां कूष्मांडा को मालपुआ बहुत पसंद है. इसलिए मां को प्रसन्न करने के लिए मालपुआ का भोग लगाना चाहिए. साथ ही मां को हरी इलाइची और सौंफ भी चढ़ा सकते हैं. पूजा करने के बाद आप मालपुआ प्रसाद को ब्राह्मण को दान कर सकते हैं. ऐसा करने से बुद्धि का विकास होता है.
देवी कूष्मांडा की आरती
कूष्मांडा जय जग सुखदानी। मुझ पर दया करो महारानी॥ पिंगला ज्वालामुखी निराली।शाकंभरी मां भोली भाली॥ लाखों नाम निराले तेरे भक्त कई मतवाले तेरे॥ भीमा पर्वत पर है डेरा।स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥ सबकी सुनती हो जगदम्बे। सुख पहुंचती हो मां अम्बे॥ तेरे दर्शन का मैं प्यासा। पूर्ण कर दो मेरी आशा॥ मां के मन में ममता भारी। क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥तेरे दर पर किया है डेरा। दूर करो मां संकट मेरा॥ मेरे कारज पूरे कर दो। मेरे तुम भंडारे भर दो॥ तेरा दास तुझे ही ध्याए। भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥
इस मंत्र का करें जाप
या देवी सर्वभूतेषु मां कूष्मांडा रूपेण संस्थिता.
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:
‘ॐ कूष्मांडा देव्यै नमः’ का 108 बार जाप करें.
आप चाहें तो सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ भी कर सकते हैं.
सृष्टि की आदिशक्ति हैं मां कूष्मांडा
पौराणित कथा के अनुसार, जब दुनिया नहीं थी, तब इसी देवी ने अपने हास्य से ब्रह्मांड की रचना की. इसीलिए इन्हें सृष्टि की आदिशक्ति कहा गया. मां कूष्मांडा की आठ भुजाएं हैं. इसलिए इन्हें अष्टभुजा देवी भी कहते हैं. इनके सात हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा होता है. वहीं आठवें हाथ में जपमाला रहता है. मां कूष्मांडा सिंह की सवारी करती हैं.
मां स्कंदमाता की आराधना से मिलेगा संतान सुख
मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप यानी मां स्कंदमाता को मां दुर्गा का मातृत्व परिभाषित करने वाला स्वरूप माना जाता है. देवताओं का सेनापति कहे जाने वाले स्कंद कुमार यानी कार्तिकेय की माता होने के कारण इनका नाम स्कंदमाता पड़ा. स्कंदमाता को वात्सरल्या की मूर्ति भी कहा जाता है.
मान्य्ता है कि इनकी अराधना करने से संतान की प्राप्ति होती है. स्कंदमाता सूर्यमंडल की अधिष्ठातत्री देवी मानी गयी हैं. इसलिए जो भक्त सच्चे मन और पूरे विधि-विधान से माता की पूजा करता है, उन्हें ज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति होती है.
मां स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं. माता ने अपने दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा में भगवान स्कंद को गोद में लिया है. जबकि नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प पकड़ा है. वहीं बांईं तरफ की ऊपरी भुजा वरमुद्रा में और नीचे वाली भुजा में कमल का फूल है. स्कंदमाता का वाहन शेर है
इन नामों से भी जानी जाती हैं मां स्कंदमाता
देवी स्कंदमाता हिमालय की पुत्री है. इसलिए उन्हें पार्वती कहा जाता है. महादेव शिव की पत्नी होने के कारण उन्हें माहेश्वरी के नाम से भी जाना जाता है. इनका वर्ण गौर है. इसलिए उन्हें देवी गौरी के नाम से भी जाना जाता है. कमल के पुष्प पर विराजित मां अभय मुद्रा में होती हैं. इसलिए उन्हें पद्मासना देवी और विद्यावाहिनी दुर्गा भी कहा जाता है.
स्कंदमाता का मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।
कार्तिकेय ने बड़ा होकर किया था तारकासुर का वध
पौराणिक मान्यता के अनुसार, सालों पहले तारकासुर नाम का एक राक्षस था, जिसने भगवान ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की थी. उसकी कठोर तपस्या से ब्रह्मा जी प्रसन्न हो गये और उसको दर्शन दिये. तारकासुर ने ब्रह्मा जी से अमरता का वरदान मांगा. इस पर ब्रह्मा जी ने तारकासुर को समझाया कि इस धरती पर कोई अमर नहीं हो सकता है. धरती पर जिसका जन्म हुआ है, उसे मरना ही पड़ेगा.
ब्रह्मा जी की बात सुनकर तारकासुर निराश हो गया. इसके बाद उसने यह वरदान मांगा कि उसका वध केवल भगवान शिव का पुत्र ही कर सके. तारकासुर ने यह धारणा बना रखी थी कि भगवान शिव कभी विवाह नहीं करेंगे, ना ही उनका पुत्र होगा और उसकी कभी मौत होगी. इसके बाद भगवान ब्रह्मा ने तारकासुर को वरदान दे दिया.
वरदान मिलने ही तारकासुर जनता पर अत्याचार करने लगा. तंग आकर सभी देवता भगवान शिव के पास गये और तारकासुर से मुक्ति दिलाने के लिए प्रार्थना की. तारकासुर का वध करने के लिए भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया. विवाह के बाद कार्तिकेय पैदा हुए. कार्तिकेय जब बड़ा हुआ तो उसने राक्षस तारकासुर का वध किया.