New Delhi : सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस वर्मा की ओर से दायर याचिका पर जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एजी मसीह की पीठ में आज सुनवाई हुई. इस दौरान न्यायालय ने पूछा कि अगर सुप्रीम कोर्ट की आंतरिक समिति को जांच का अधिकार नहीं था, तो जस्टिस वर्मा समिति के सामने हाजिर क्यों हुए. उन्होंने उसी वक्त उसे चुनौती क्यों नहीं दी. पीठ ने जस्टिस वर्मा द्वारा प्रतिवादी बनाने की प्रक्रिया पर भी आपत्ति जतायी.
जस्टिस वर्मा के घर में आग लगने के दौरान स्टोर रूप से भारी मात्रा में जले हुए नोट पाये गये थे. सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने मामले की जांच के लिए आंतरिक समिति का गठन किया था. समिति की रिपोर्ट के आधार पर उन्होंने प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को इससे संबंधित रिपोर्ट भेजी थी.
रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा के खिलाफ उचित कार्रवाई करने की अनुशंसा की गयी थी. जस्टिस वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर इस कार्रवाई को चुनौती दी थी. साथ ही यह भी कहा था कि आंतरिक समिति को जांच का अधिकार नहीं है.
कपिल सिब्बल ने जस्टिस वर्मा का पक्ष पेश करते हुए कहा कि जज को सिर्फ संविधान के अनुच्छेद 124 और पब्लिक डिबेट के आधार पर पद से नहीं हटाया जा सकता है. अनुच्छेद 124(5) में यह प्रावधान है कि जज को पब्लिक डिबेट का विषय नहीं बनाया जा सकता है. लेकिन 22 मार्च को क्या हुआ. सारी चीजें रिलीज कर दी गयी. इससे पूरा देश इसी मुद्दे पर बात करने लगा.
कपिल सिब्बल ने कहा कि लोगों ने तो जस्टिस वर्मा को दोषी ही मान लिया. उन्होंने जस्टिस वर्मा का पक्ष पेश करते हुए कहा कि जजों के पैनल को महाभियोग चलाने की अनुशंसा करने का अधिकार नहीं है. यह पूरी तह संसद का अधिकार है. कपिल सिब्बल की दलील सुनने के बाद न्यायालय ने आंतरिक जांच समिति की रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया. साथ ही मामले की सुनवाई बुधवार तक के लिए टाल दी.
सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता कपिल सिब्बल झारखंड के डीजीपी की नियुक्ति के मामले में सरकार के खिलाफ दायर अवमानना याचिका में सरकार के भी वकील है. लेकिन जस्टिस वर्मा के मामले में सुनवाई के दौरान अधिक समय लगने की वजह से वह डीजीपी नियुक्ति मामले में मुख्य न्यायाधीश की पीठ में समय पर उपस्थित नहीं हो सके. इसलिए न्यायालय ने इस मामले की सुनवाई 19 अगस्त को निर्धारित की.
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