Ranchi: ग्रामीण इलाके में रहनेवाले लोगों के लिए मनरेगा आजीविका का एक बड़ा सहारा है. खासकर ऐसे समय में जब कोरोना काल में आजीविका के अन्य साधनों में भारी कमी आयी, इन पर ग्रामीण आबादी काफी निर्भर है. लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के कड़े आदेशों के बावजूद मनरेगा की मजदूरी भुगतान में हो रहे विलंब ने इस पर निर्भर लोगों की समस्या बढ़ा दी है. पॉलिसी रिसर्च संस्थान लिव टेक इंडिया के एक हालिया अध्ययन से पता चलता है कि केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2021-22 में झारखंड में मनरेगा श्रमिकों के स्टेज-2 भुगतान के लिए औसतन 26 दिन का समय लिया है. चालू वित्त वर्ष में केंद्र ने स्टेज-2 भुगतान के लिए अकेले तीन गुना ज्यादा समय लिया है. केंद्र सरकार ने हाल ही में मजदूरों की जाति श्रेणियों (SC, ST, और अन्य) के आधार पर भुगतान प्रक्रिया को अलग करने के निर्देश जारी किये हैं. इससे भुगतान की तकनीकी प्रक्रिया और जटिल हो गयी है.
काम पूरा होने के 15 दिन के अंदर मिलना है भुगतान
मनरेगा कानून के तहत मजदूरों को काम पूरा होने के 15 दिन के अंदर भुगतान मिलना है. भुगतान प्रक्रिया के 2 चरण होते हैं (स्टेज-1 और स्टेज-2). स्टेज-1 में काम पूरा होने के बाद, पंचायत/ब्लॉक द्वारा मजदूर के पूरे विवरण के साथ एक ‘फंड ट्रांसफर ऑर्डर’ (FTO) तैयार किया जाता है. इसे डिजिटल रूप से केंद्र सरकार को भेजा जाता है. इसके बाद केंद्र सरकार FTO को संसाधित करती है. इसके बाद मजदूरी का राशि सीधे मजदूरों के खातों में ट्रांसफर की जाती है. इसे स्टेज-2 कहा जाता है. इस कार्य जिम्मेदारी केंद्र सरकार की होती है.
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मनरेगा अधिनियम में क्या है निर्देश
मनरेगा अधिनियम के दिशा-निर्देशों के अनुसार स्टेज-1 को 8 दिनों में पूरा किया जाना है और स्टेज-2 को स्टेज-1 की प्राप्ति के 7 दिनों के भीतर पूरा किया जाना है. दोनों चरणों को काम के समाप्त होने के 15 दिनों के भीतर पूरा किया जाना है. यानी मजदूरी का भुगतान 15 दिनों में कर देने का प्रावधान है.
भुगतान में विलंब पर मुआवजे का है प्रावधान
अधिनियम के अनुसार मजदूर को विलंब की स्थिति में रोजाना अर्जित मजदूरी का 0.05 प्रतिशत राशि मुआवजे के रूप में दी जायेगी. लिब टेक इंडिया ने वित्त वर्ष 2016-17 में 1.3 करोड़ से अधिक मजदूरी भुगतानों और वित्त वर्ष 2017-18 की पहली दो तिमाही के लिए झारखंड सहित 10 राज्यों का विश्लेषण किया है. उसने पाया है कि केवल स्टेज-2 को पूरा करने में 50 दिनों से अधिक समय लगा. यह देरी पूरी तरह से बेहिसाब थी, क्योंकि यह मनरेगा प्रबंधन सूचना प्रणाली (MIS) में दिखाई नहीं दे रही थी. रिपोर्ट सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत की गयी थी. स्वराज अभियान बनाम भारत सरकार मामले (W.P.C.-000857-000857 – 2015) में सुप्रीम कोर्ट ने मनरेगा मजरूरों को मुआवजे का पूरा भुगतान नहीं करने पर केंद्र सरकार को फटकार लगाई थी.
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