Lagatar Desk : मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी विभाग के मंत्री गिरिराज सिंह जी ने कहा – “यदि अधिकारी आपकी बात नहीं सुनते तो बेंत उठाइए और उनके सिर पर दे मारिए.” यह कहां की और कैसी भाषा है. बिहार के सुशासन बाबू ने इसकी आलोचना जरुर की है. पर, क्या आलोचना करना ही काफी है. शायद नहीं.
गिरिराज सिंह कोई आम युवा राजनेता, विधायक या सांसद नहीं हैं. बिहार में वह हार्ड हिन्दुवादी नेता के रूप में प्रतिष्ठित हैं. उनके फॉलोअर्स हैं. जो उनकी बातों पर, बताये रास्तों पर चलने से गुरेज नहीं करते. कल को अगर उनका कोई फॉलोअर कुछ गलत करता है तो क्या बिहार की सरकार और उसके मुखिया को जिम्मेदार नहीं माना जा सकता. जो अभी चुप रह कर मुसकुरा कर निकल जा रहे हैं.
समझ में नहीं आता है कि सरकार का एक मंत्री ऐसे आपराधिक अराजक बयान किस अहंकार के वशीभूत और किसके संरक्षण में बोल रहे हैं? क्या देश में अब ‘लोकतंत्र’ नहीं ‘राजतंत्र’ स्थापित हो चुका है. जहां संविधान के विधानों के बदले शासकों के दिए फरमान से राष्ट्र को चलाया जाएगा?
क्या बिहार में कथित सुशासन अब इतना बेलगाम और अराजक हो गया है, जो लाठी के दम पर शासन करेगा ?
क्या संघ की शरण में शरणागत स्वघोषित सुशासन बाबू को अब जंगलराज नहीं दिखाई देता ? याद कीजिए, इसी बिहार में कभी ऐसे ही एक बाहुबली राजनेता आंनद मोहन के उकसावे में आकर उन्मादियों ने एक जिलाधिकारी की हत्या कर दी थी.
अगर गिरिराज सिंह के इस बयान में आकर किसी ने किसी सरकारी कर्मी के खिलाफ लाठी उठा लिया तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा. तो क्या अब यह मान लिया जाए कि अब सत्ता पर सुशासन बाबू का नियंत्रण समाप्त हो गया है ? नियंत्रण स्थापित करने के लिए आपराधिक व अराजक बयान की जरुरत पड़ने लगी है. ऐसे सवाल तो अनेक हैं, लेकिन जबाब देने वाला कोई नहीं.
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