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बंगाल फतह के सपने ने मौत की दस्तक को दरवाजे तक पहुंचा दिया

Faisal Anurag

प्रधानमंत्री के आवास से 12 मिनट के फासले पर स्थित गंगाराम अस्पताल में 25 लोग आक्सीजन की कमी से मर गये. समय रहते आक्सीजन की कमी की चेतावनी दिये जाने के बावजूद देश के सबसे बड़े और पुराने अस्पतालों में एक गंगाराम को आक्सीजन की आपूर्ति नहीं की जा सकी. दिल्ली सरकार ने भी केंद्र को चेतावनी दी थी. प्रधानमंत्री आक्सीजन आपूर्ति के संकट को कम करने की बात करते रहे, लेकिन 25 लोग काल के गाल में समा गये. उस पर तुर्रा यह कि प्रधानमंत्री ने बंगाल की उन चार चुनावी सभाओं को रद्द कर दिया है जो शुक्रवार को शिड्यूल किया गया था. टीवी पर इसका खूब प्रचार भी हुआ. लेकिन शुक्रवार की संध्या प्रधानमंत्री वर्चुअल रैली से बंगाल को संबोधित करेंगे.

दुनिया भर के अखबारों में चेतावनियों को नजरअंदाज करने और केंद्र सरकार को अपनी जिम्मेदारी की याद दिलाने वाली खबरें छप रही हैं. पिछले पांच दिनों में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक कोविड से 7730 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. बावजूद इसके चुनाव प्रचार का भूत नहीं उतरने का नाम नहीं ले रहा है.

बंगाल का चुनाव जब शबाब पर था, तब 1 अप्रैल को संक्रमण के 72330 नये मामले आये थे और 15 अप्रैल के बाद से लगातार 2 लाख से ज्यादा नये मामले सामने आये. लेकिन इसके बावजूद न तो केंद्र की नींद टूटी, न ही बंगाल की फिकरेबाजी के दौर को खत्म किया गया. अब बैठकों का सिलसिला शुरू हुआ है. लेकिन इसके नतीजे आने तक लाखों परिवार तबाह हो चुके होंगे. इस बीच वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का एक ताजा बयान तो जख्म पर नमक जैसा ही प्रतीत हो रहा है. उन्होंने कहा है कोविड 19 की इस त्रासदी के बावजूद केंद्र सरकार के आर्थिक सुधार जिसमें विनिवेश भी शामिल है, जारी रहेगा.

जी हां, यानी सरकार अपने दायित्व को निजी हाथों को सौपने की अपनी योजना से पीछे नहीं हटेगी. यह कैसी क्रूरता है कि लोगों को राहत देने, पब्लिक हेल्थ सिस्टम को कारगर बनाने के बजाय सरकार अपनी ही कंपनियों की बिक्री के इरादे को इस संकट में प्राथमिकता दे. शायद यह भारत में ही संभव है. जिस तरह ट्रंप या बेलसानारों के लिए न तो कोई विषेषज्ञों का महत्व है और न ही उन्हें सिस्टम के अधिक से अधिक कल्याणकारी चेहरे को बचाना है, भारत भी उसी तबाही के रास्ते पर चलने को आमादा है. बंगाल का महत्व इसी में है कि इससे हुक्ममरान बहादुर अपनी तमाम आलोचनाओं को जनसमर्थन के नाम पर न्यायसंगत बनाने का हक हासिल कर लेंगे.

विशेषज्ञों के सुझावों को लेकर सरकार की संजीदगी का इसी से अंदाज लगाया जा सकता है कि केंद्र ने कोविड के लिए बने कार्यबल के उस सुझाव को भी गंभीरता से नहीं लिया, जिसमें दूसरी लहर के भवावह होने की चेतावनी दी गयी थी. कुछ अंग्रेजी अखबारों में छपी एक खबर के अनुसार कार्यबल ने केंद्र सरकार को यह चेतावनी दी थी. द टेलीग्राफ को कार्यबल के ही एक विशेषज्ञ ने बताया कि देश आज उसी चेतावनी को नजरअंदाज किये जाने की कीमत चुका रहा है. यानी जिन परिवारों ने अपने लोगों को खोया है, उनके दर्द के लिए सरकारी उपेक्षाभाव भी अपनी जिम्मेदारी से नहीं भाग सकता है. कार्यबल के सदस्य ने कहा कि कोरोना का राष्ट्रव्यापी विस्तार और ऑक्सीजन की कमी का एक बडा कारण तो उस डाटा की अनदेखी करने से जुड़ा है, जो एक बड़ी लहर का संकेत साफ-साफ दे रहा था.

यह कोई पहली बार तो हुआ नहीं. 2020 के कोविड लहर की चेतावनी तो उसी साल जनवरी में विशेषज्ञ दे रहे थे, लेकिन केंद्र ट्रंप के नमस्ते भारत दौरे को ले कर व्यस्त रहा. यही नहीं, राज्यों के मुख्यमंत्रियों के सुझावों को भी केंद्र नजरअंदाज करता रहा है. महाराष्ट्र और केरल के मुख्यमंत्रियों ने तो इस पर सार्वजनिक बयान तक पिछले साल दिये थे. यानी मौतों के लिए केवल महामारी ही नहीं बल्कि हुक्मरानों को भी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं किया जा सकता है.

जमाखोरी के खिलाफ तो कोविड काल में ही केंद्र कानून बना चुकी है. अब तक आनाज की कालाबाजारी को ही लेकर ही किसान सवाल उठाते रहे हैं. लेकिन उस कानून के असर ने हर सेक्टर के कालाबाजारियों के हौसले को बुलंद किया है. कम से कम दवाइयों का जो संकट है, उसके पीछे इस मानसिकता को देखा ही जा सकता है. निजी क्षे़त्रों को मजबूत बनाने के सरकारी मंसूबे ने पब्लिक हेल्थ केयर को बेहद कमजोर बनाया. इसका असर इस लहर की भयावहता में महसूस किया जा रहा है.

पिछली लहर के कम होने के बाद के समय में भारत सरकार ने न तो राज्यों के साथ मिल कर पब्लिक हेल्थ इंतजाम को मजबूत बनाने पर जोर दिया, और न ही आक्सीजन और जरूरी दवाइयों के इंतजाम पर. भारत सरकार अब खाड़ी देशों और सिंगापुर की ओर आशा भरी नजरों से आक्सीजन आपूर्ति के लिए देख रही हे. लेकिन इस दिशा में प्रयास कितने ठोस हुए हैं, इस संदर्भ में भी कोई जानकारी सार्वजनिक नहीं की जा रही है.

बंगाल फतह से पता नहीं कितना कुछ हासिल हाने का सपना देखा जा रहा है, लेकिन उस सपने के कारण मौत की दस्तक दरवाजों तक सुनाई दे रही है. 1 अप्रैल से 23 अप्रैल तक 4114360 नये मामले आये और 24452 लोगों की जान गयी. विशेषज्ञों का आकलन है कि कोविड की इस लहर का पीक आना अभी बाकी है. यह मई के दूसरे पखवारे तक आ सकता है. क्या नींद और आलस्य का तिलिस्म टूटेगा और चुनावी मोड को बदला जायेगा. संकट से निबटने का तरीका ही इसका प्रमाण देगा.

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