Apoorv Bhadwaj
कोरोना के दौर में मिडिल क्लास थर्ड क्लास दौर से गुजर रहा है. साहब जी ने सरकारी कर्मचारियों की जेब को LTA के नाम ढीली करने का पूरा प्लान बना लिया है. साहब जी ने कोरोना में मंदी से बचने के नाम से ऐसी मीठी गोली दी है कि न निगलते बन रहा है, न उगलते.
कोरोना काल में साहब जी ने देश की अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने और मांग में वृद्धि के लिए एक नया शिगूफा छोड़ा है. उन्होंने केंद्रीय कर्मचारियों के कैश वाउचर औऱ एडवांस 10,000 रुपये देने की घोषणा की है. लेकिन ज्यादा खुश मत होइये इससे जुड़ी शर्तें सुन लीजिए और पता कर लीजिए सरकार कितनी असुरक्षित, और चालाक है.
एलटीए कैश वाउचर के लिए कर्मचारियों को विमान/रेल किराया के तीन गुने का सामान और सेवाएं खरीदना होगा. मतलब अगर आपको 4 लोगों की फैमिली में 80000 रुपये फेयर के मिलते थे तो आपको डिजिटल कैश वाउचर के लिए 2,40000 रु का समान खरीदना होगा, समान भी वो जिस पर जीएसटी 12 ℅ से ज्यादा हो. मतलब सरकार एक हाथ से देकर दूसरे हाथ से तीन गुना वसूल रही है. वो भी सूद के साथ.मतलब हींग लगे न फिटकरी रंग भी चोखा आए.
अब फेस्टिवल एडवांस की बात करते हैं. कर्मचारियों को 10,000 रुपये मिलेगा जो सैलेरी से हर महीने कटेगा मतलब आपका ही पैसा आपको उधार दिया जा रहा है. बताया ऐसा जा रहा है जैसे की आपको बोनस दिया जा रहा है. इतना ही ध्यान है तो सरकार जो सालभर का DA रोककर बैठी हो वो ही दे देती. आपके पास खुद का मंहगा प्लेन खरीदने का पैसा है, लेकिन आम आदमी को साधारण समान खरीदने के लिये तमाम शर्ते थोपी जा रही हैं.
“साहब ने किया है तो अच्छा ही किया होगा” वाला वाक्य सुबह शाम रटने वाले मध्यम वर्ग की हालत उस एक तरफा आशिक की हो गयी, जो रोज यह सोचता है कि एक दिन तो उसकी महबूबा उसके इश्क की कद्र करेगी. लेकिन महबूबा उसे 6 साल से बजट से लेकर जीएसटी तक उसके साथ धोखे पर धोखा ही कि जा रही है. लेकिन आशिकी कम ही नही हो रही है.
साहब ने मिडिल क्लास को ठेके पर लिया दिहाड़ी मजदूर समझ लिया है. जो केवल चुनाव के समय उनका भरपूर प्रचार करता है. और चुनाव जीतने के बाद उसको बड़ी बेज्जती औऱ बेदर्दी से दफा कर दिया जाता है. लेकिन धर्म के नशे में डूबा देवदास रूपी मिडिल क्लास अपनी पारो के लिए एक ही गाना गाता है-हम इंतजार करेंगे तेरा कयामत तक.
और एक दिन ठीक 8 बजे आवाज आती है..मित्रों पहले दियं जलाये थे…अब TA जलाओ..बलिदान तो देना ही होगा.
डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.