Shakeel Akhter
Ranchi: राज्य सरकार चार साल में पांच एकड़ जमीन की मापी नहीं करा सकी. जमीन की मापी कराने के लिए भू-राजस्व विभाग और जिला प्रशासन के बीच वर्ष 2021 से पत्राचार हो रहा है. लेकिन जमीन की मापी नहीं हो पा रही है. आर्यभट्ट आवास सहयोग समिति के नाम पर म्यूटेशन है. लगान रसीद भी कट रहा है. लेकिन जमीन पर किसी और का कब्जा हो चुका है.
जानकारी के मुताबिक हाईकोर्ट ने जमीन की जालसाजी रोकने के लिए एसओपी बनाने का आदेश दिया था. एसओपी बना, लेकिन जमीन मामले में जालसाजी कम नहीं हुई. इस बीच मापी में नाकाम होने के बाद आर्यभट्ट समिति ने थक हार कर अपनी 5 एकड़ जमीन की मापी कराने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है.
आर्यभट्ट आवास सहयोग समिति ने 1987-91 के बीच शर्म बंधुओं (मूल रैयत) से 5 एकड़ जमीन खरीदी थी. जमीन का म्यूटेशन हुआ. लगान रसीद भी जारी हुआ. इस प्रक्रिया के दौरान जमीन पर समिति को कब्जा भी मिला.
लेकिन मूल रैयत द्वारा वर्ष 2007 में चंद्रदीप कुमार और रमण प्रसाद वर्मा को 6.00 एकड़ ज़मीन का पावर ऑफ अटर्नी देने के बाद विवाद शुरु हुआ. क्योंकि उस वक्त तक मूल रैयत के पास सिर्फ 2.63 एकड़ ज़मीन ही बची हुई था. इसके बावजूद रैयत ने 6.00 एकड़ का पावर दे दिया.
चंद्रदीप व रमण ने पावर मिलने के बाद 6.00 एकड़ में से 4.64 एकड़ जमीन राम बचन सिंह, उपेंद्र कुमार सुधाकर, विश्वनाथ चौधरी, धनंजय प्रसाद फौलाद को बेच दी. इन लोगों ने 4.64 एकड़ में से 3.50 एकड़ जमीन बेच दी. लेकिन 4.64 एकड़ जमीन पर अपना दावा और कब्जा बनाये रखा.
चंद्रदीप ने भी अपने पावर के मुकाबले अधिक जमीन बेची. इसी खरीद बिक्री के बीच आर्यभट्ट की जमीन पर कब्जा हो गया. जालसाजी के शिकार लोगों ने चंद्रदीप, धनंजय फौलाद सहित अन्य के खिलाफ कई प्राथमिकियां दर्ज करायीं.
एक मामले में चंद्रदीप को गिरफ्तार जेल भेजा गया. उसने वर्ष 2020 में हाईकोर्ट में नियमित जमानत याचिका दायर की. न्यायमूर्ति न्यायाधीश केपी देवी की अदालत में इसकी सुनवाई हुई.
न्यायालय ने जमानत याचिका रद्द कर दी और सरकार को जमीन की जालसाजी से बचने के लिए एसओपी बनाने का आदेश दिया. इस आदेश के आलोक में सरकार ने एसओपी बनाया. लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.
15 सितंबर 2020 को न्यायालय ने अपने फैसले में क्या कहा :
सरकार को सरकारी भूमि, संरक्षित वन भूमि, खास महल भूमि और अन्य भूमि की सुरक्षा के संबंध में एक मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) लानी चाहिए. संबंधित अधिकारी वन भूमि का पंजीकरण करते समय मामले को नहीं देख रहे हैं.
संबंधित क्षेत्र के अंचल अधिकारी सरकारी भूमि के संबंध में सतर्क नहीं हैं. इसका म्यूटेशन किया जा रहा है. वन अधिकारी इस मुद्दे पर चुप बैठे हैं और सतर्क भी नहीं हैं. केवल एफआईआर दर्ज करके खुद को बचाने के लिए अदालत में आ रहे हैं.
ऐसे में यह अदालत मुख्य सचिव, झारखंड सरकार, प्रधान सचिव (विधि), पर्यावरण और वन और प्रधान सचिव, राजस्व और भूमि सुधार विभाग, पुलिस महानिदेशक को ऐसे मामलों की जांच करने का निर्देश देती है, जहां सरकारी जमीन बेची जा रही है और मुकदमे दायर किए जा रहे हैं.
सरकार को तीन महीने की अवधि के भीतर एक मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) लानी चाहिए ताकि सरकारी जमीन की रक्षा की जा सके. इस आदेश की एक प्रति “फैक्स” के माध्यम से मुख्य सचिव, सरकार को भेजी जाए.