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रेलवे और एचईसी की जमीन से उजाड़े गये बेघर परिवारों का ठंड में हाल बेहाल... बच्चे होने लगे हैं बीमार

 Bashant Munda  Ranchi : रेलवे और एचईसी की जमीन पर बसे अवैध कब्जाधारियों को प्रशासन पिछले पंद्रह दिन से हटा रहा है. बिरसा चौक, बाईपास रोड, पत्थर कोचा औऱ सुंदरगढ़ में अवैध कब्जाधारियों को हटाया गया है. इस कारण बेघर हुए लोग ठंड से ठिठुर रहे हैं. बेघर लोग अपने औऱ परिवार को बचाने के लिए खुले आसमान के नीचे प्लास्टिक के छप्पर लगाकर जीवन काट रहे हैं. राजधानी में इन दिनों 8.5 से 12-13  डिग्री सेल्सियस तापमान रह रहा है. https://lagatar.in/wp-content/uploads/2025/01/cold.jpg">

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alt="" width="600" height="400" /> ठंड के कारण लोग बीमार हो रहे हैं. इनके बच्चे भी ठंड लगने से बीमार पड़ रहे हैं.  इन बेघर लोगों ने बताया कि पुनर्वास किये बिना उन्हें उजाड़ दिया गया है. उनके पास रहने के लिए घर नहीं है. कमाने-खाने के इंतजाम नहीं हैं.  पहले फटे तिरपाल और तंबुओं में रह रहे थे. प्रशासन ने उजाड़ा  तो तिरपाल और तंबू भी नष्ट हो गये. लोगों का कहना है कि जब जेसीबी का आवाज सुनाई पड़ती हैं, तो सभी डर जा रहे है. सभी एक जगह इकठ्ठा हो जाते हैं. रात के समय में ठंड काफी बढ़ जाती है. हमारे पास न छत है और न ही ठंड से बचने क लिए गर्म कपड़े.

नया साल डर के साये में बीता

सुंदरगढ़ के रहने वाले अजय नायक ने कहा कि उनके इलाके में एक हजार लोग होंगे. सभी लोग डरे और सहमे हुए हैं. क्योंकि एचईसी के अधिकारी कब उनके घरों पर बुलडोजर चलवा दे. यह बात सभी परिवारों को सता रही है. जेसीबी की आवाज सुनते ही बच्चे घर की ओऱ दौड़ लगाते हैं. मां बाप को आवाज देना शुरू कर देते हैं. उनसे लिपट जाते हैं.

 हंसते खेलते बच्चों की मुस्कान खत्म हो गयी : नीला देवी

नीला देवी साड़ी के आंचल से अपने आंसू पोछते हुए कहती है कि सरकार बेहरम हो गयी है. उनका बनाया हुआ घर जेसीबी लगाकर तोड़वा दिया. कहा कि यहां की महिलाएं आसपास के मुहल्लों में लोगों  के घरों में चौका बर्तन करती है. इससे जो पैसा आता है, उससे हमलोगों का घर किसी तरह चलता है. चावल, तेल औऱ बच्चो के लिए कपड़े खरीदते है. इसी से परिवार चल रहा था.  लेकिन रेलवे ने  हंसते खेलते बच्चों से उनका बचपन छीन लिया. आंसू पोछते हुए कहती है कि हम तो इसी जगह बूढ़े हो गये. बेटा पतोहू के पास घर बनाने के लिए पैसा नहीं है. उनके बेटे बेटी सभी गंदे कपड़े पहन रहे हैं. इनके पास खाना पकाने के लिए चूल् तक नहीं है.  तीन ईट का चूल्हा बना कर खाना पका रहे हैं.

  आंख से आंसू बहते देख बच्चे रोने लगते हैं : गायत्री देवी

दोनोx पैर से विकलांग गायत्री देवी ने कहा कि घर बसने से पहले उजाड़ दिया होता तो आज परिवार बिखरने का नौबत नहीं आती. दो छोटे छोटे बच्चे हैं. दिन रात आंख से आंसू ही निकलते हैं. जब मां के आंसू गिरने शुरू होते हैं यह देखकर बच्चे भी रोने लगते हैं. दो पीढ़ियां गुजर गये. माता पिता, सास ससुर सभी इसी जगह गुजर गये.  आज यहां पर बड़े बड़े घर बन गये हैं. कहा कि पांच महीना से विकलांगता पेंशन नहीं मिल रही है.

बेघर हुए परिवारों के बच्चे बीमार होने लगे हैं : बसंती देवी

बसंती देवी के दो छोटे बच्चे हैं. उजड़ने के बाद छोटी सी प्लास्टिक की झोपड़ी बनाकर रह रहे है. आसमान से पाला गिर रहा है. जमीन पर साड़ी और गमछा बिछा कर सोते हैं. झोपड़ी के अंदर ठंडी  हवा घुसतीरहा है. पूरा परिवार  बीमार हो गया है. दवा खरीदने के लिए पैसे नहीं है. गरम पानी करने के लिए चूल्हा नही है. जलाने के लिए लकड़ी नही है. बर्तन धोने के लिए पानी नही है झोपडी के बगल के खेत में छोटा सा तालाब है. यहां गंदा पानी रहता है. घर के बर्तन धोने औऱ खाना बनाने के लिए यही गंदा पानी का उपयोग कर रहे है. पांच साल का छोटा बच्चा और मां दोनों ठंड से  बीमार हो गए है. बच्चे सत्यम को ठंड लग गयी है. इसी हालात में जमीन पर दिन भर सो रहा है. मां को भी बुखार है. उसकी आवाज भी बदल गयी है.
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