
राजनीति के '' कोरोना'' का न्यू सोशल ऑर्डर

Faisal Anurag एक दिन में एक लाख नये कोरोना पॉजिटिव मामले. बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी में चुनावों में भारी भीड़ का शोरशराबा. एम्स के निदेशक की निराशा कि लोग सावधानी नहीं बरत रहे. इस बार अभी तक तबलीगी जमात की चर्चा नहीं, लेकिन चुनावी राज्यों में सांप्रदायिकता का जहर तमाम राजनीतिक-आर्थिक सवालों पर हावी. मिडनाइट्स चिल्ड्रेन के मशहूर लेखक सलमान रशदी की टिप्पणी-इमरजेंसी के दौर से भी ज्यादा भारत में अंधेरा. इन सब के बीच भारत के साथ हुए राफेल रक्षा सौदे में रिश्वत दिये जाने का सवाल. फ्रांस के एक वेब पोर्टल ‘मीडिया पार्ट’ का रहस्योद्घाटन राफेल सौदे में 5 लाख 8 हजार 925 यूरो के भ्रष्टाचार के प्रमाण. सुकमा में पारा मिलिटरी जवानों पर जानलेवा हमले. ये सभी घटनाएं अलग-अलग हैं, लेकिन इनके बीच सीधा संबंध भी है. यही वह संबंध है जिसकी चर्चा से हर मुमिकन परहेज किये जाने का प्रचलन बढ़ गया है. इन्हीं परहेजों के कारण राजनीतिक का ``कोरोना`` सत्ता की निरंकुशता का वह हथियार बनाया जा चुका है, जिसमें लोग मुसीबतों के बावजूद शासकों का गुणगान करने लगते हैं. आखिर वह कौन से अवरोध हैं, जो सवालों को पूछने की राह में खड़े हैं. ऐसा क्यों है कि प्रधानमंत्री की एक टिप्पणी पर बंगाल की एक महिला सांसद को सड़क छाप फिकरेबाजों की याद आ जाती है. यह गैर-मामूली बात है. बावजूद, इसकी परवाह कौन कर रहा है. भाषा और बदतर होने की प्रतिस्पर्धा कर रही है. यह बात आज सड़क पर हो रही है. कल संसद में भी हो सकती है. ऐसी भाषा न तो अनजाने में इस्तेमाल की जाती है और न ही उसके लिए किसी को पछतावा है. चर्चा तो फ्रांस के मीडिया पार्टनर से उठे सवालों को लेकर भी नहीं है. ये सवाल मामूली नहीं हैं. एक स्वीडिश रेडियो ने 16 अप्रैल 1987 को पहली बार उस किकबैक की चर्चा की थी. भारत की राजनीति में तूफान खड़ा हो गया. लोकसभा के इतिहास में सबसे भारी बहुमत पाने वाले राजीव गांधी इस तूफान का सामना नहीं कर पाये. उनकी सरकार में ही विरोध पैदा हो गया. विश्वनाथ प्रताप सिंह उनके खास मंत्री थे, लेकिन उन्होंने भ्रष्टाचार की बात कर सरकार से इस्तीफा दे दिया. दो साल बाद राजीव गांधी की कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गयी. उसके बाद वह कभी अपने बहुमत के दम पर सरकार में नहीं आ पायी. ‘मीडिया पार्ट’ के सवाल गंभीर हैं. हालांकि भारत इसके आरोपों को गलत बता रहा है. लेकिन कांग्रेस ने एक बार फिर संयुक्त संसदीय समिति से पूरी राफेल डील की जांच की मांग उठा दी है. 2019 के लोकसभा चुनावों के पहले राहुल गांधी ने कई प्रेस कांफ्रेंस किये और राफेल घोटाले की चर्चा की. द हिंदू ने तो इस संदर्भ में कई दस्तावेज भी प्रकाशित किये. तब तो कोरोना जैसे न्यू वर्ल्ड आर्डर की बात भी नहीं हो रही थी. आज जब कोरोना अपनी तमाम गंभीरता के बावजूद राजनीति का हथियार है, दुनिया भर के शासक अपने सत्ता हितों के लिए इसे कोई भी कदम उठाने के लाइसेंस की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं. इसी कोरोना काल में किसानों और श्रमिकों के हितों पर हमले हुए और कारपारेट के लिए तमाम राह आसान कर दी गयी. किसान 130 दिनों से ज्यादा हो गये, अभी भी डटे हुए हैं. लेकिन मीडिया बहसों और छवियों से बाहर किये जा चुके हैं. इससे जाहिर होता है कि आंदोलनों की लोकतांत्रिक अपील को किस तरह बेमानी बनाया जा रहा है. हालांकि किसानों का आंदोलन जमीन पर अनेक नये बदलावों का आधार मजबूत कर रहा है. सलमान रश्दी यदि मिडनाइट चिल्ड्रेन वाले भारत के पूरी तरह बदल जाने की बात कर रहे हैं, तो उसके गहरे निहितार्थ हैं. लंदन से प्रकाशित दैनिक द गार्डियन में उन्होंने लिखा है : जब मैंने मिडनाइट्स चिल्ड्रन लिखी तो मेरे मन में उम्मीद से आगे बढ़ते इतिहास का एक अंश था, खून भरी आशा, लेकिन फिर भी आशा. तथाकथित आपातकाल में उस उम्मीद के साथ विश्वासघात हुआ. आजाद भारत में पहली बार आपातकाल के वर्षों की तुलना में कहीं अधिक गहरे दौर में प्रवेश कर चुका है. इस लेख में रश्दी भारत में लोकतांत्रिक मूल्यों के पतन को देख रहे हैं. इस लेख में उनका दर्द बार-बार छलकता है. लेकिन जैसा कि रिवाज बन गया है, इसकी भी चर्चा नहीं ही होगी. जब फ्रीडम हाउस और वीडैम की रिपोर्टों को नजरअंदाज कर दिया गया, तो दुनिया में भले ही रश्दी के लेखन की धूम हो. लेकिन भारत में तो सड़क छाप भाषा में बदलती राजनीतिक भाषा तमाम सवालों पर प्रभावी है. इसलिए पक्ष-विपक्ष के नेताओं के कथनी-करनी में भारी अंतर भारी निराशा पैदा कर चुका है. लेकिन इस फर्क में इतनी ताकत तो है कि उसे जब जरूरत होगी, वह कोरोना के राजनीतिक इस्तेमाल के सहारे तमाम गंभीर सवालों को निगल जायेगा. कभी भी, कहीं भी कोरोना रोकथाम का बुलडोजर उन सवालों को मसल देगा, जिसे दुनिया के जानेमाने लेखक, मीडिया चाहे जिस तरह उठाएं. अब यही रिवाज और रवैया बन गया है. यह है विरोध, सवाल और अधिकार को कुचलने का न्यू सोशल ऑर्डर.
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