Shyam Sundar Singh
कहते हैं इतिहास से सीखना चाहिए.,. मगर…? कारण, जो भी हो हम सीख नहीं पाए… याद करता हूं जब पहली बार लॉकडाउन हुआ था… लोग डरे सहमे से थे… कि वो कही से भी कोरोना से संक्रमित हो सकते हैं. सरकार भी विवश थी, लोग समझ रहे थे कि सरकार कुछ भी नहीं कर सकती है ऐसी बीमारी ही है कि इस रोग को ठीक करना मुश्किल है और लोगों ने जिस हिम्मत के साथ कोरोना की लड़ाई खुद की लड़ाई समझ कर आगे आए वो बेमिसाल है.
फिर अचानक से नवंबर के बाद कोरोना को ठंड लगा और वो अचानक से गायब होने लगा. देखते ही देखते हम आम जीवन जीने लगे. और फिर 2021 की इंट्री हुई. लोगों ने सोचा चलो किसी तरह 2020 खत्म हुआ, अब हम 2 से 4 साल पीछे हो गये हैं. कोई बात नहीं नए साल में सब ठीक कर देंगे. सब कुछ आम हो गया.
2021 में दूसरी लहर चल पड़ी….
मगर फिर मार्च के खत्म होते-होते लोगों को ये समझ में आ गया था, जो वो सोच रहे थे, वो गलत है. मामला कुछ और ही है. और समय के साथ-साथ कोरोना ने रिकॉर्ड बनाना शुरू कर दिया. हालात ये है कि अब हम प्रतिदिन कोरोना की दूसरी लहर में 2 लाख पार कर गए हैं.
इस बीच एक अच्छी बात ये हुई कि मोदी सरकार ने ये फैसला लिया कि कोरोना संक्रमित राज्यों का फैसला राज्य सरकार लेगी. कर्फ्यू लगाना है या लॉकडाउन लगाना है. इससे केन्द्र सरकार को भी मौका मिल गया कि वो राज्य सरकार पर अपनी बातें डाल सकता है. और राज्य सरकार के पास भी मौका है की वो केन्द्र सरकार पर बातें डाल सकता है कि हमें राज्य सरकार ने ये किया जबकि उन्हें ये करना चाहिए था. हमें केन्द्र सरकार से ये मदद नहीं मिल पाई. जबकि हमने उनसे इतने की मदद की मांग की थी. खैर जो भी हो पिसेगा आम आदमी ही.
मोदी सरकार ने कई ऐतिहासिक निर्णय लिया. जिसको हर कोई मानता है. नोटबंदी से लेकर लॉकडाउन तक के फैसले को हर कोई गुणगान कर रहा है.
अब कई सवाल उठ रहे है कि
- क्या मोदी सरकार को कोरोना महामारी को देखते हुए जैसे पोलियो का टीका लोगों को दिया गया, उसी तरह से वैक्सीन घर-घर नहीं पहुंचा देना चाहिए था.
- प्रत्येक राज्य में चरमराती स्वास्थ्य व्यवस्था को इतना अच्छा नहीं कर देना चाहिए था कि लोग जहां है वहीं इलाज करवा सके.
- लोगों के पास नौकरी की कमी है, ऐसे में आने वाले समय में वो कैसे क्या करेंगे.
- मजदूर के पलायन के बाद फिर मजदूर क्या करेंगे.
- किसान आंदोलन में जो भीड़ उमड़ रही थी, उसको तुरंत रोका क्यों नहीं गया. क्या मोदी सरकार इतना विवश थी.
- जिस तरह से बच्चों के एग्जाम को रोका गया उसी तर्ज पर इलेक्शन और कुंभ का मेला क्यों नही रोका गया.