Faisal Anurag
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की राह को मुश्किल कर दिया है. केंद्र के लिए यह झटका है. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से दो टूक पूछा है कि आप इन कानूनों को होल्ड करेंगे या अदालत ही कर दे. यह सामान्य टिप्प्णी नहीं है. सुप्रीम कोर्ट एक कमेटी बनाने जा रहे है जो तीनों कानूनों पर सभी पक्षों से बात की सुझाव देगी. सुप्रीम कोर्ट ने एक और तल्ख टिप्पणी भी की है. इन कानूनों को बनाने के पहले किसान संगठनों से बात नहीं करने का उल्लेख केंद्र के लिए परेशानी का सबब है. सुप्रीम कोर्ट का तेवर बताता है कि वह किसान संगठनों के सवालों को गंभीरता से सुन रहा है. केंद्र सरकार के तमाम दावों के बावजूद कानूनों पर रोक लगाने की बात कही गयी है. सुप्रीम कोर्ट उस याचिका पर सुनवायी कर रहा हे जो किसानों को आंदोलन से रोकने के लिए दायर की गयी है. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा हे कि वे फिलहाल कानूनों को निरस्त किए जाने की बात नहीं कर रहे हैं लेकिन वह बातचीतको ले कर भी संतुष्ट नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट कमिटी की रिपोर्ट आने तक कानूनों को होल्ड रखे जाने की पक्ष में है. किसान संगठनों के साथ जब वार्ता शुरू हुई थी तब संभावना वयक्त किया गया था कि किसानों के आंदोलन के तेवर और भागीदारी को देखते हुए केंद्र फिलहाल इन कानूनों को स्थगित कर सकता है. लेकिन केंद्र ने जिस तरह का रूख इन कानूनों पर प्रकट किया है, उससे होता है कि वह कानूनों को गति के साथ लागू करने के लिए आमादा है.
ऐसी स्थिति में कानूनों को केंद्र होल्ड करेगा या सुप्रीम कोर्ट को ही ऐसा करना पड़ेगा. केंद्र सरकार आर्थिक सुधारों को लेकर अपनी छवि को प्रभावित नहीं करना चाहती. लेकिन केंद्र की यह भी मंशा है कि किसानों के बढ़ते आंदोलन पर अंकुश लगे. किसान संगठन सुप्रीम कोर्ट के रूख पर क्या नजरिया अपनाते हैं, यह तो उनकी सामूहिक बैठक के बाद ही पता चलेगा.
केंद्र सरकार समाधान चाहती है या वह समस्या को लटकाये रखना चाहती है. कोर्ट की एक टिप्पणी इस बाबत भी है. इससे जाहिर होता है कि अब तक जिन नौदोरों की बातचीत हुई है, उससे समस्या पेचीदा ही हो गयी है. किसानों ने साफ कर दिया है कि वे केंद्र से एक ही जबाव चाहते हैं कि वह कानूनों को निरस्त करेगी या नहीं. आगे की किसी भी बातचीत के लिए किसानों का यह रूख बताता है कि हालात कितने नाजुक हैं.
किसानों ने तो नारा ही दिया है कि मरेंगे या जीत कर घर जाएंगे. इस रूख का असर आज की सुनवाई पर भी पड़ा है. अब तक किन्हीं भी सवाल पर सर्वोच्च अदालत का कड़ा रूख नहीं देखना पड़ा है.
नागरिकता कानून के खिलाफ भी जोरदार विरोध हुआ था. लेकिन शाहीनबाग मामले के हल के लिए केंद्र ने एक वार्ताकार नियुक्त कर दिया था. इसका कोई नतीजा नहीं निकला. धारा 370 का मामला तो अभी तक सर्वोच्च अदालत ने विचाराधीन ही रखा है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कुछ गलत हुआ तो हममें से हर एक जिम्मेदार होगा. सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हम किसी का खून अपने हाथ पर नहीं लेना चाहते हैं. यह गैर मामूली बात आज की सुनवाई के दौरान कही गयी. ऐसा पहले कभी अदालतों में सुनने को नहीं मिला है.
अदालत का रूख बताता है कि वह फिलहाल कानून को निरस्त करने की बात तो नहीं कर रहा है. लेकिन आंदोलन को लेकर सजग भी है. अपेक्षा की जा रही थी कि अदालत धरना दे रहे किसानों के संदर्भ में कोई आदेश दे सकता है. लेकिन सुनवाई के दौरान ऐसा कोई संकेत अदालत ने नहीं दिया है. 9वें दौर की वार्ता में केंद्र ने किसानों से अदालत जाकर कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने का सुझाव दिया था. किसानों ने इसे ठुकरा दिया. किसान संगठन वैधानिकता से ज्यादा कानूनों के भारतीय कृषि पर पड़ने वाले असर को लेकर चिंतित हैं.
किसान चाहते हैं कि मुद्दों को भटकाया जाय. इसे रद्द किया जाये. 15 जनवरी को होने वाली वार्ता के लिए सर्वोच्च अदालत ने एक तरह का दिशा निर्देश दे दिया है. साफ है केंद्र सरकार के अवसर सीमित रह गये हैं.