Surjit Singh
जर्मनी में जब हिटलर का शासन था, तब कवि गुरु रविंदनाथ टैगोर दुनिया भर में घूम कर क्या समझाते थे. वह समझाते थे. “राष्ट्रवाद” एक महामारी है. वह इसकी तुलना उस वक्त की महामारी- प्लेग, चेचक से करते थे. कहते थेः यह देश और राज्य को खत्म कर देगा. हिटलर की सनक के कारण हुए “द्वितीय विश्वयुद्ध” में हुआ भी यही.
बीती रात अमेरिका में क्या हुआ. निवर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने समर्थकों के बीच भाषण दिया. जिसके बाद भीड़ ने संसद पर हमला कर दिया. तोड़-फोड़ व हिंसा की. वहां जो कुछ हुआ है, वह एक “सनक” है. “राष्ट्रवाद” की “सनक”. और यह “सनक” ही राष्ट्रवाद का असली चेहरा है. अमेरिका के लोग आज वही काट रहे हैं, जो उन्होंने बोया था. यह एक घमंडी, बदमिजाज और सत्ता के नशे में चूर शासक और उसके दल का बेशर्म चेहरा है.
याद करिये. डोनाल्ड ट्रंप सत्ता में कैसे आये थे. राष्ट्रवाद के रथ पर सवार होकर ही वह सत्ता पर काबिज हुए थे. अपने कार्यकाल में ट्रंप ने संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर किया. मीडिया पर प्रतिबंध लगाने की बात करते रहे. विरोधी दलों के नेताओं को देशद्रोही बताते रहे. इन सबके पीछे जिस तथ्य को वह रखते रहे, वह बहुसंख्यकों को आकर्षित करता था.
हमारे लिए तकलीफ की बात यह है कि हमारे देश की मोदी सरकार इसी “डोनाल्ड ट्रंप” को दुबारा सत्ता में लाने के लिये अमेरिका में “हाउडी मोदी” और भारत में “नमस्ते ट्रंप” का आयोजन कराया. जिसमें भारतीय वोटरों को ट्रंप के पक्ष में मतदान करने का आह्वान किया गया.
अगर अपने आसपास गौर करें, तो ट्रंप के शासन का नमूना अपने देश में भी नजर आता है. अब तक सुप्रीम कोर्ट तक को भी सत्ता यह बताने लगा है कि फैसले लेते समय इस बात का खयाल रखा जाये कि बहुसंख्यक समुदाय आहत ना हो. हमारे यहां भी विरोध करने वालों को देशद्रोही बताने का प्रचलन तेजी से बढ़ा है. सरकार की नीतियों का विरोध करने वालों को नक्सली, देशद्रोही, खालिस्तानी करार दिया जा रहा है. बहुसंख्यक समाज को यह सब अच्छा लगता है.
हमें यह समझना होगा कि “लोकतंत्र” से बेहतर शासन कोई नहीं होता. और हम धर्म, जाति, कर्म को सामने रख कर असहमति की आवाज को दबाते रहेंगे, तो वह दिन दूर नहीं जब अमेरिका की तरह ही लोकतंत्र का पेड़ किसी दंभी और निरंकुश शासक की जिद में झुलस जायेगा.