Shadendu Kumar Vats
म्यांमार में सैन्य तख्तापलट पर बहुत सारे लोगों की टिप्पणी है कि रोहिंग्या उत्पीड़न पर बहुसंख्यकों की चुप्पी का परिणाम है कि आज वहां बहुसंख्यक उत्पीड़ित हो रहे हैं और यह ईश्वर का न्याय है. पर, ऐसा है नहीं. यह कोई ईश्वर का न्याय-व्याय नहीं है. बल्कि भारत के इर्द-गिर्द सभी राष्ट्रों का यह राष्ट्रीय चरित्र बन गया है कि माइनॉरिटी के खिलाफ घृणा नफरत का संचार करके बहुसंख्यकों को पोलराईज करना. यह केवल म्यांमार की समस्या नहीं है, बल्कि पाकिस्तान, बंगलादेश, श्रीलंका, भारत हर जगह आपको देखने को मिलेगी.
श्रीलंका में सिंघला बहुसंख्यक है. उन्हें तमिल हिन्दुओं के शोषण में आनंद आता है. श्रीलंका में बहुसंख्यकों को पोलराईज करने के लिए तमिलों का उत्पीड़न होता है. उसी उत्पीड़न का नतीजा है कि 60 हजार से ऊपर की संख्या में तमिल हिन्दू भारत में शरणार्थी बनकर जी रहे है. यद्यपि भारत में बहुसंख्यकों के पोलराइजेशन की राजनीति करने वाले संघी/भाजपाई कभी उसका नाम नहीं लेते हैं. क्योंकि इसमें मुस्लिम ऐंगल नहीं है.
पाकिस्तान में मुस्लिमों को पोलराईज करने के लिए हिन्दुओं का शारीरिक मानसिक उत्पीड़न की राजनीति हुई. पूरे पाकिस्तान को एक रंग में रंगने की कीमत वहां रहने वाले हिन्दुओं ने चुकाई. काफी बड़ी संख्या में हिन्दू आबादी पाकिस्तान से माइग्रेट करके भारत में शरणार्थी बनी हुई है.
बांग्लादेश में भी बहुसंख्यकों को पोलराईज करने के लिए वहां बहुसंख्यकों की राजनीति करने वाले कट्टरपंथियों को बढ़ावा देते हैं. हिन्दू माइनॉरिटी का दमन करते हैं.
म्यांनमार की घटना इससे कुछ भी अलग नहीं है. हर जगह जहां-जहां बहुसंख्यकों को पोलराईज करके सत्ता में बने रहने की राजनीति करने वाले राजनीतिक दल हैं, उनका सबसे आसान शिकार वहां की माइनॉरिटी होती है. माइनॉरिटी का दमन उत्पीड़न करके बहुसंख्यकों का गर्व जगाया जाता है और उस गर्व को वोट के रूप में भंजाया जाता है.
लोग कह रहे हैं कि म्यांमार के बहुसंख्यक तमाशा देख रहे थे. इसलिए अब भोग रहे हैं. तो हर जगह बहुसंख्यक तमाशा ही देखते हैं. चाहे वो श्रीलंका हो, पाकिस्तान हो या बांग्लादेश या भारत. हर जगह का एक ही हाल है. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि सारे बहुसंख्यक तमाशा ही देखते हैं. हर जगह बोलने वाले हैं, लेकिन उनकी संख्या कम है. ये वही बोलने वाले हैं, जिन्हें सेक्युलर लिब्रान्डू, एंटीनेशनल टुकड़े-टुकड़े गैंग कहकर गाली दिया जाता है और सरकारे ऐसे लोगों की आवाज को बंद करने के लिए राजद्रोह के आरोप में जेलों में ठूंसकर सड़ा देती है.
क्या पाकिस्तान, बंगलादेश में हिन्दुओं के पक्ष में बोलने वाले नहीं थे. बिल्कुल थे. वैसे ही म्यांमार में भी हैं. लेकिन इन सबकी दशा वही है, जो भारत में माइनॉरिटी के पक्ष में बोलने वालों की है. मसलन ये मुल्लापरस्त, सेक्युलर कीड़े, लिब्रान्डू, टुकड़े-टुकड़े गैंग वाले हैं.
कुल मामला, सुषुप्त लोकतंत्र का है. कारण शिक्षा की दरिद्रता है. इन मुल्कों में वास्तव में लोकतंत्र और नागरिकता का बोध नहीं है. इसलिए यहां सरकारों के नरेटिव में फंसकर जनता ही जनता को गरियाती है, और अंततः उसका खामियाजा जनता ही भोगती है.
बाकी उन्नत लोकतांत्रिक देशों को देखिए, सीखिए. अभी हाल ही का उदाहरण है, अमेरिका जहां सिस्टम द्वारा एक अश्वेत के मारे जाने पर अमेरिका की श्वेत आबादी सड़कों पर उतर गई. राष्ट्रपति को बंकर में छिपना पड़ा. पुलिस को घुटनों के बल बैठकर अमेरिकी जनता से माफी मांगनी पड़ी. और वहां का न्याय देखिए. मात्र 11 महीने के अंदर ही उस अश्वेत को अमेरिकी प्रशासन ने 2.7 करोड़ डॉलर (196 करोड़ रुपये) प्रतिकर दिया है और मारने वाला श्वेत पुलिसकर्मी जेल में सड़ रहा है.
ऐसा सिर्फ इसलिए संभव है कि वहां के नागरिक अपने नागरिक हितों के लिए एक-दूसरे के साथ खड़ा रहता है और सुषुप्त लोकतांत्रिक देशो में नागरिक कम भेड़ ज्यादा हैं, जिन्हें जाति, धर्म, क्षेत्र के उन्मादी नारों से हांका जाता है.
डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.