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इस बार गायब हैं चार पुराने रणनीतिकार

Brijendra Dubey शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमाशा है, जिस डाल पे बैठे हों वो टूट भी सकती है... मशहूर शायर बशीर बद्र का यह शेर 2024 लोकसभा चुनाव में देश के चार बड़े नेताओं पर पूरी तरह फिट है. याद करें कि 2019 में अपने-अपने दलों के लिए इन नेताओं की रणनीति काफी काम आई थी. लेकिन इस बार ये लोग सीन से पूरी तरह गायब हैं. आपको याद दिला दें कि ये नेता हैं- बंगाल के मुकुल रॉय, बिहार के आरसीपी सिंह, झारखंड के रघुवर दास और पंजाब के कद्दावर नेता रहे कैप्टन अमरिंदर सिंह. 2019 लोकसभा चुनाव में इन नेताओं का सिक्का चला था. इनके कहने पर दावेदारों का टिकट कटता और मिलता था. पूरे चुनाव में इनके घरों पर मजमा लगता था, लेकिन अब पांच साल बाद ये खुद पर्दे से गायब हो गए हैं. रघुवर दास को छोड़ दिया जाए, तो बाकी के तीन नेता अपने आवासों में ही सिमट के रह गए हैं. बदले समीकरण में राजनीतिक रूप से इन नेताओं को न तो कोई पूछ रहा है और न ही इन नेताओं को अब अपना आगे का भविष्य दिख रहा है. 2019 लोकसभा चुनाव में मुकुल रॉय ने बीजेपी की ओर से पश्चिम बंगाल की कमान संभाली थी. रॉय ने चुनाव से पहले तृणमूल के कई नेताओं को तोड़ कर बीजेपी के पाले में लाने का काम किया था, जिसमें अर्जुन सिंह, लॉकेट चटर्जी, सौमित्र खान और शांतनु घोष जैसे प्रमुख नेता शामिल थे. नेताओं के साथ-साथ मुकुल रॉय ने कई समाज और तृणमूल कांग्रेस के कोर वोटरों में भी सेंध लगा दी थी. 24 परगना के मतुआ समुदाय के हक पूरे चुनाव में मुद्दा बना दिया था, जिसका फायदा बीजेपी को चुनाव में हुआ. 2019 चुनाव में टिकट वितरण में भी बीजेपी ने मुकुल रॉय के समर्थकों को खूब तरजीह दी. नतीजा पार्टी के पक्ष में गया और पहली बार भाजपा ने बंगाल की 18 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की. इस जीत ने मुकुल रॉय के कद में भी बढ़ोतरी की. 2020 में बीजेपी ने उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी. हालांकि, बीजेपी में मुकुल का यह आखिरी प्रमोशन था. 2021 में बंगाल के विधानसभा चुनाव हुए, जिसमें बीजेपी दूसरे नंबर की पार्टी बनी. हार के बाद मुकुल ने नेता प्रतिपक्ष पद के लिए दावेदारी कर दी, जिसे बीजेपी हाईकमान ने नहीं माना. पार्टी ने मुकुल राय के बदले तृणमूल से ही आए शुभेंदु अधिकारी को बंगाल का नेता प्रतिपक्ष बनाया. मुकुल इसके बाद तृणमूल में चले आए, लेकिन दाल उनकी वहां भी नहीं गली. 2023 में वे फिर से बीजेपी में जाने की कोशिश में लगे थे, लेकिन वहां उनकी किरकिरी हो गई. वर्तमान में मुकुल रॉय कोलकाता स्थित अपने आवास पर ही हैं. उनके बेटे शुभ्रांशु के मुताबिक वे डिमेंशिया से पीड़ित हैं और डॉक्टरों की देखरेख में उनका इलाज चल रहा है. याद कीजिए बिहार जदयू के कद्दावर नेता आरसीपी सिंह को. रामचन्द्र प्रसाद सिंह 2019 लोकसभा चुनाव में जदयू के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) थे. नीतीश कुमार के बाद उनकी गिनती पार्टी में नंबर-2 नेता की होती थी. 2019 में जदयू संगठन की कमान उन्हीं के पास थी और टिकट बंटवारे से लेकर मुद्दा तय करने में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई. आरसीपी सिंह के कहने पर ही नीतीश कुमार ने बिहार में पहली बार 2019 के चुनाव में किसी मुसलमान को टिकट नहीं दिया. पार्टी को इसकी सफलता भी मिली और 2019 में 16 सीटों पर जीत दर्ज की. आरसीपी को इसका इनाम भी मिला. उन्हें पहले पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया और फिर केंद्र की मोदी सरकार में मंत्री. हालांकि, मंत्री पद पाने के बाद आरसीपी जदयू की सियासत से अलग-थलग होने लगे. 2022 में जेडीयू ने उन्हें राज्यसभा ही नहीं भेजा, जिसकी वजह से उन्हें मंत्री पद छोड़ना पड़ा. वहीं पार्टी की तरफ से उन्हें जमीन घोटाले की शिकायत को लेकर एक लेटर लिख दिया गया, जिसके बाद आरसीपी जदयू से अलग हो गए. जदयू से अलग होने के बाद आरसीपी बीजेपी में आए. उस वक्त नीतीश राजद के साथ थे, लेकिन लोकसभा चुनाव से पहले नीतीश फिर बीजेपी के साथ आ गए. नीतीश के साथ आने के बाद बीजेपी ने आरसीपी को पूरी तरह अलग-थलग कर दिया है. पार्टी के स्टार प्रचारकों की सूची में भी आरसीपी को जगह नहीं मिली है. वर्तमान में आरसीपी सिंह नालंदा के अपने पैतृक आवास पर ही रह कर पुराने दिनों को याद कर रहे हैं. 2019 चुनाव में उत्तर भारत के राज्यों में सिर्फ पंजाब में ही कांग्रेस ने बेहतरीन परफॉर्मेंस किया था. उस वक्त पार्टी को पंजाब की 13 में से 8 सीटों पर जीत मिली थी, जो एक रिकॉर्ड था. पंजाब में जीत का सेहरा कांग्रेस के तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के सिर बंधा था. वजह- पूरे चुनाव की कमान कैप्टन ने अपने पास ही रखी थी. कैप्टन के कहने पर ही नेताओं को टिकट दिए गए थे. इनमें मनीष तिवारी, परणीत कौर जैसे नेता शामिल थे. हालांकि, 2019 के बाद कांग्रेस में कैप्टन के बुरे दिन शुरू हो गए. 2022 में पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी ने कैप्टन को साइडलाइन कर दिया. नाराज कैप्टन ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया. कैप्टन ने इसके बाद खुद की पार्टी बनाई, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली. इसके बाद कैप्टन बीजेपी में शामिल हो गए. हालांकि, वहां भी उन्हें कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं मिली है. कैप्टन वर्तमान में पटियाला स्थित अपने फॉर्म हाउस पर ही रहते हैं. उनकी पत्नी परणीत कौर यहां से बीजेपी की उम्मीदवार हैं. चर्चा है कि कैप्टन अपनी पत्नी के लिए यहां प्रचार कर सकते हैं. 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने झारखंड की 14 में से 12 सीटों पर जीत हासिल की थी. इतना ही नहीं, सालों बाद बीजेपी ने जेएमएम को उसके गढ़ दुमका में भी उसे मात दी थी. बीजेपी की इस जीत का श्रेय रघुवर दास को मिला. दास उस वक्त झारखंड के मुख्यमंत्री थे और उन्हीं के पास चुनाव की कमान थी. दास ने चुनाव के बीच ही शिबू सोरेन की सीट दुमका में सरना कोड लागू करने की बात कह दी, जिसे उस वक्त आदिवासी समाज ने हाथों-हाथ लिया. चुनाव बाद रघुवर के कद में बढ़ोतरी भी हुई. लोकसभा चुनाव के ठीक 6 महीने बाद हुए विधानसभा के चुनाव में रघुबर दास को बीजेपी ने फ्री हैंड दिया. उनके कहने पर ही कद्दावर नेता सरयू राय का टिकट तक काटा गया. हालांकि, दास इस चुनाव में न तो खुद को और न ही पार्टी को जीता पाए. इसके बाद रघुवर दास झारखंड की राजनीति से अलग-थलग हो गए. 2024 लोकसभा चुनाव से पहले दास के चतरा या जमशेदरपुर सीट से चुनाव लड़ने की चर्चा थी, लेकिन दास झारखंड की राजनीति में वापसी नहीं कर पाए. वर्तमान में दास ओडिशा के राज्यपाल हैं और भुवनेश्वर स्थित राजभवन में रह रहे हैं. कभी-कभार झारखंड आते हैं, तो भाजपा नेता उनसे मुलाकात करने की रस्म अदायगी कर लेते हैं [wpse_comments_template]
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