अलग राज्य बनने के बाद औद्योगिक विकास के लिए 20 साल में महज 400 एकड़ रैयती भूमि का अधिग्रहण हुआ है. इन 20 साल में सिर्फ 177 रैयतों से जमीन ली गयी है. यह दावा है झारखंड सरकार का. सरकार के मुताबिक औद्योगिक विकास के लिए 2016 के बाद एक छटांक भी रैयती भूमि का अधिग्रहण नहीं हुआ है. सिर्फ सरकारी, अनुपयोगी, बंजर और गैरमजरुआ जमीन औद्योगिक विकास के लिए दी गयी है. यह सरकारी आंकड़ा है. हकीकत यह है कि उद्योगपतियों ने सरकार की मदद से हजारों एकड़ रैयती जमीन का अधिग्रहण किया है. इसे भी पढ़ें : पेयजल">https://english.lagatar.in/drinking-water-scam-part-4-two-years-ago-the-villagers-of-bodra-drinking-the-water-of-the-farm-by-paying-for-the-tap-connection/44697/">पेयजल
घोटाला पार्ट -4 – दो साल पहले नल कनेक्शन का पैसा देकर खेत का पानी पी रहे बोदरा के ग्रामीण
रघुवर राज में अदानी के लिए बदला कानून
रघुवर">https://en.wikipedia.org/wiki/Raghubar_Das">रघुवरराज में जमीन का सबसे बड़ा खेल हुआ है. रघुवर सरकार ने भूमि कानून में संशोधन किया. इससे गोड्डा में अदानी के लिए 2000 एकड़ जमीन के अधिग्रहण का दरवाजा खुल गया. बड़कागांव में भी एनटीपीसी ने सरकार की मदद से जमीन अधिग्रहण किया. वहीं मोमेंटम झारखंड के तहत उद्योग लगाने के नाम पर कई कंपनियों के साथ एकरारनामा किया गया. इनमें से अधिकांश कंपनियों ने जमीन लेकर एक-तिहाई से भी कम हिस्से में उद्योग लगाया. बची जमीनें रैयतों और सरकार को लौटायी भी नहीं गयीं. इस महीने ओरिएंट क्राफ्ट समेत ऐसी सभी कंपनियों को हेमंत सरकार जमीन लौटाने के लिए नोटिस भेज रही है.
पूर्ववर्ती सरकारों ने सिर्फ जमीन छीनी, हेमंत लौटा रहे
झारखंड बनने के बाद राज्य में सिर्फ अदानी ही नहीं, एनटीपीसी, ओएनजीसी समेत कई कंपनियों ने रैयती भूमि का अधिग्रहण किया. अधिग्रहण के बाद सरकार की ओर से इसकी मॉनिटरिंग नहीं हुई. कितनी जमीन उपयोग हुई और कितनी खाली है, इसकी समीक्षा नही हुई. नतीजा यह हुआ कि गैर उपयोगी जमीन पर भी दशकों से कंपनियों का कब्जा है. भूमि अधिग्रहण कानून-2013 के मुताबिक उद्योग यदि 5 साल तक अधिग्रहित जमीन का उपयोग नहीं करते, तो उसे रैयतों को वापस दिया जाना है. लेकिन पिछली सरकारों (रघुवर राज में भी) ने एक भी रैयत को जमीन वापस नहीं की. हेमंत सरकार ने इस दिशा में कदम बढ़ाया है. बड़कागांव में 26 रैयतों की 56 एकड़ जमीन वापस की गयी है.1960 से झारखंड में शुरू हुआ है जमीन लूट का खेल
झारखंड में 1960 से औद्योगिकीकरण के नाम पर जमीन की लूट का खेल चल रहा है. संयुक्त बिहार के समय कई योजनाओं-परियोजनाओं और औद्योगिक इकाइयों के लिए हजारों एकड़ जमीन अधिग्रहित हुई. लगभग सभी कंपनियां अधिग्रहित जमीन का 25 फीसदी हिस्से का उपयोग नहीं कर पायी. आज तक इन पर उनका कब्जा बरकरार है. HEC ने 1965 से 1971 तक 9200 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया है. इनमें से 80 फीसदी जमीन सीएनटी के दायरे में आती है. एचईसी के पास करीब 3500 एकड़ गैर उपयोगी भूमि बची रही. एचईसी ने विस्थापित हुए रैयतों को उनकी जमीन नहीं लौटाई, बल्कि उन जमीनों को स्मार्ट सिटी और जेएससीए स्टेडियम सरकार और दूसरी कंपनियों को बेच दिया.BSL भी रैयतों को नहीं लौटा रहा अनुपयोगी जमीन
1956 में बोकारो में स्टील प्लांट के लिए भूमि अधिग्रहण शुरू हुआ था. प्लांट के लिए 31287.24 एकड़ भूमि उपलब्ध करायी गयी. इसमें 26908 एकड़ अर्जित भूमि, 3600.215 एकड़ गैर मजरूआ और 778.46 एकड़ वन भूमि शामिल थी. जिसमें से सिर्फ 17751 एकड़ जमीन का ही कंपनी ने उपयोग किया. बाकी की जमीन को सबलीज का उल्लंघन करते हुए डालमिया सीमेंट और बियाडा जैसी कंपनियों को दे दी. स्टील प्लांट के लिए जमीन देकर विस्थापित हुए 19 गांव के लोग आज भी मुआवजा और नौकरी के लिए संघर्ष कर रहे हैं.पतरातू में 1100 एकड़ गैर उपयोगी जमीन रैयतों को नहीं लौटायी
1959 से पतरातू थर्मल के लिए जमीन का अधिग्रहण शुरू हुआ था. कुल 5600 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया गया था. इस पूरे भूखंड के 2727 एकड़ जमीन पर पीटीपीएस डैम का निर्माण कराया गया. 210 एकड़ भूमि छोटे-मोटे उद्योगों के विकास के लिए रियाडा को सौंपी गयी. लगभग 250 एकड़ भूमि पर पीटीपीएस प्लांट का निर्माण कराया गया. शेष बची जमीन पर पीटीपीएस अवासीय कॉलोनियां, बाजार आदि बसाये गये. इसके बाद भी 1100 एकड़ जमीन अब भी खाली पड़ी है. इस पर अब पीवीयूएनएल का कब्जा है. अपनी जमीन से बेदखल किये गये रैयत उन्हीं जमीनों में झुग्गी-झोपड़ी बनाकर रह रहे हैं.कुछ खास कंपनियों पर मेहरबान रही सरकार, कई कंपनियां लौट गयीं
साल 2004 से 2008 तक तक झारखंड सरकार ने सैकड़ों कंपंनियों के साथ एमओयू किया, लेकिन इनमें से कुछ खास कंपनियों ने ही झारखंड में निवेश किया. जिन कंपनियों को सरकार का संरक्षण और जमीन मिली, उन्होंने उद्योग लगाया. बाकियों ने मुंह मोड़ लिया. 26 मार्च 2004 को झारखंड सरकार का आरजी स्टील लिमिटेड के साथ एमओयू हुआ था. जमीन और खदान नहीं मिलने के कारण कंपनी ने निवेश नहीं किया. इसके बाद 12 अप्रैल 2005 को गोयल स्पंज प्राइवेट लिमिटेड के साथ एमओयू हुआ था. इस कंपनी ने भी निवेश नहीं किया. 23 जुलाई 2005 को कल्याणी स्टील लिमिटेड के साथ सरकार ने एमओयू किया. जमीन और माइंस नहीं मिलने के कारण यह कंपनी भी लौट गई. फिर दिसंबर 2006 में कोल स्टील एंड पावर लिमिटेड के साथ हुआ. यह कंपनी भी लौट गयी. सार्थक इंडस्ट्रीज के साथ 26 फरवरी 2007 को समझौता हुआ. जमीन और माइंस नहीं मिलने के कारण कंपनी ने रुचि नहीं दिखाई. 7 फरवरी 2007 को मां चंडी दुर्गा इस्पात और फरवरी 2007 में जगदंबा इस्पात सर्विसेज के साथ एमओयू हुआ. दोनों कंपनियां लौट गयीं.विशेष निगरानी से ही लग सकती है जमीन लूट पर रोक
झारखंड में जमीनों की लूट को रोकने के लिए सरकार को भूमि अधिग्रहण की विशेष निगरानी करने की जरूरत है. इसे लेकर सरकार गंभीर दिख रही है. हेमंत सरकार जल्द ही नयी उद्योग नीति लाने वाली है. इसमें उद्योगों और भूमि अधिग्रहण पर विशेष फोकस होगा. वहीं विस्थापितों को उनका हक दिलाने की दिशा में भी सकारात्मक प्रयास चल रहा है. विस्थापन और पुनर्वास आयोग के गठन को लेकर सरकार ने ग्रीन सिग्नल विधानसभा सत्र के दौरान दिया है. https://english.lagatar.in/worm-found-in-corona-infected-patient-admitted-to-rims-trauma-center/44687/https://english.lagatar.in/jewar-businessman-killed-in-road-accident-on-gt-road-in-barhi-three-in-critical-condition/44685/
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