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विवेकानंद ने युवा जगत को नई राह दिखाई हैः सिद्धि प्रसाद
alt="" width="600" height="400" /> कोडरमा : शिवतारा सरस्वती विद्या मंदिर के प्रांगण में विद्यालय के भैया बहनों ने स्वामी विवेकानंद की जयंती हर्षोल्लास से मनाई. स्वामी विवेकानंद की जयंती युवा दिवस के रूप में भी मनाया जाता है. इस अवसर पर विद्यालय के पूर्व छात्रों के द्वारा संगोष्ठी का आयोजन किया गया. कार्यक्रम का शुभारंभ विद्यालय के प्रधानाचार्य रमेश कुमार उपाध्याय और जयंती प्रमुख सिद्धि प्रसाद ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलन करके किया. पूर्व छात्र परिषद से आई पायल कुमारी ने अपने बचपन की यादों को भैया बहनों एवं आचार्य-आचार्या के बीच शेयर किया. कार्यक्रम प्रमुख सिद्धि प्रसाद ने अपने वक्तव्य देते हुए कहा कि स्वामी विवेकानंद ने युवा जगत को नई राह दिखाई है, जिसे भारतीय जनमानस पर जबरदस्त असर हुआ है. आगे भी युगों युगों तक इसका प्रभाव रहेगा. उन्होंने यह भी कहा कि स्वामी जी केवल एक संत ही नहीं, बल्कि एक महान देशभक्त, दार्शनिक, विचारक और लेखक भी थे. स्वामी विवेकानंद के उच्च विचार हमेशा से युवाओं को प्रेरित करते रहे हैं. विद्यालय के प्रधानाचार्य रमेश कुमार उपाध्याय ने कहा कि 1893 में अमेरिका के शिकागो में हुए विश्व धार्मिक सम्मेलन में विवेकानंद ने जब भारत और हिंदुत्व का प्रतिनिधित्व किया तो उनके विचारों से पूरी दुनिया उनकी ओर आकर्षित हुई. वेदांत और योग को पश्चिमी संस्कृति में प्रचलित करने में उन्होंने बेहद अहम योगदान दिया. तत्पश्चात विद्यालय के भैया बहनों ने स्वामी विवेकानंद की जीवनी पर अपने-अपने विचार रखे. इस अवसर पर भैया बहनों ने कहानी, कविताएं, प्रश्नोत्तरी, हिंदी, अंग्रेजी में भाषण देकर स्वामी जी को याद किया. ऐसा कहा जाता है कि स्वामी विवेकानंद को संगीत साहित्य और दर्शन में विशेष रूचि थी. मात्र 25 वर्ष की उम्र में ही स्वामी जी ने वेद, पुराण, बाइबिल, कुरान, तनख, गुरु ग्रंथ साहिब, दास कैपिटल, पूंजीवाद, अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, साहित्य, संगीत और दर्शन की तमाम तरह की विचारधाराओं को घोट लिया था.
द हेरिटेज एकेडमी में स्वामी विवेकानंद की 161वीं जयंती मनाई गई
alt="" width="600" height="400" /> डोमचांच (कोडरमा) : डोमचांच प्रखंड में संचालित द हेरिटेज एकेडमी स्कूल में बड़े ही धूमधाम से स्वामी विवेका नंद की 161वीं जयंती मनाई गई. वहीं प्राचार्य रंजन सिंह ने बच्चों को बताया कि स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी सन् 1863 (इतिहासकारों के अनुसार मकर संक्रांति संवत् 1920) को कोलकाता में एक कुलीन कायस्थ परिवार में हुआ था. उनके बचपन के घर का नाम वीरेश्वर रखा गया, किन्तु उनका औपचारिक नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था. पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाईकोर्ट के एक प्रसिद्ध वकील थे. उन्होंने अपने परिवार को 25 वर्ष की आयु में छोड़ दिया और एक साधु बन गए. उनकी माता भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों की महिला थी. उनका अधिकांश समय भगवान शिव की पूजा-अर्चना में व्यतीत होता था. नरेन्द्र के पिता और उनकी मां के धार्मिक, प्रगतिशील व तर्कसंगत रवैया ने उनकी सोच और व्यक्तित्व को आकार देने में सहायता की. मौके पर विवेकानंद के विचारों और आदर्शों को हर साल की भांति इस वर्ष भी याद करके दोहराया गया. तत्पश्चात उनकी तस्वीर पर पुष्प अर्पित किया गया. इस दौरान बच्चों को स्वामी विवेकानंद के विचारों को और राष्ट्र के प्रति प्रेम को याद दिलाया गया. विद्यालय के बच्चों को विवेकानंद के आदर्श और प्रेरणा की जानकारी दी गई. इस दौरान निदेशक उमेश सिंह, शिक्षक सूरज कुमार, शिक्षिका कविता सिंह, विद्यार्थी प्रतिमा, आकाश, श्रेष्ठ, अंश हिमांशु सिंह, प्रिंस कुमार, सौरव, प्रियतम, आर्यन, रौनक, पूजा, पायल, इनामुल अंसारी, आदित्य दास, अमर यादव, पृथ्वी कुमार, आर्यन यादव, प्रीतम, सोनिका, पम्मी, सलेश, सोनम परी, गोलू, स्नेहा, काव्या, पियूष, रोशन, आदित्य, अभिनंदन, कुमकुम, मानवी, साक्षी, कोमल, अन्नू प्रिया, इति श्री, रंजन, रुचि, राजवीर व रानी समेत कई विद्यार्थी मौजूद थे. इसे भी पढ़ें : कोडरमा">https://lagatar.in/koderma-pedestrian-dies-after-being-hit-by-bike/">कोडरमा
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