Tisri (Giridih) : जिले के तिसरी प्रखंड अंतर्गत पलमरुआ पंचायत के नैयाडीह गांव निवासी छोटन भुला नामक नामक एक तीस वर्षीय दलित य़ुवक की मौत पैसे के अभाव में इलाज नहीं करा पाने पर हो गई. मृतक परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत ही दयनीय है. मौत के बाद अस्पताल से शव को घर लाने और अंतिम संस्कार तक के पैसे नहीं थे. कुछ स्थानीय लोगों की मदद से शव को घर लाकर अंतिम संस्कार किया गया.
मृतक की मां कमली देवी ने बताया कि उसका बेटा पटना में रहकर मजदूरी करने के साथ-साथ पढ़ाई भी करता था. कुछ दिनों पूर्व ही वह घर आया था. इसी बीच अचानक उसकी तबीयत बिगड़ गई. उसे बुखार रहने लगा. बुखार की दवा भी वह खाया. तीन दिनों बाद तेज बुखार होने पर उसे 19 अप्रैल को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र तिसरी में भर्ती कराया गया, जहां चिकित्सकों ने प्राथमिक उपचार कर उसे गिरिडीह रेफर कर दिया. गिरिडीह में इलाज कराने के लिए पैसे की जरूरत थी. परिजन के पास पैसे नहीं थे. विवश होकर परिजन उसे घर ले आए. उसी शाम उसकी तबीयत और ज्यादा बिगड़ने पर परिजन फिर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र तिसरी ले गए. चिकित्सकों ने जांच के बाद उसकी गंभीर स्थिति को देखते हुए तुरंत गिरिडीह ले जाने की सलाह दी. पैसे नहीं रहने के कारण परिजन उसे गिरिडीह ले जाने में हिचक रहे थे. तभी एक स्थानीय मीडियाकर्मी के सहयोग से छोटन को 108 एंबुलेंस में चढ़ाकर गिरिडीह ले जाया जा रहा था. रास्ते में उसकी स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही थी. उसे गिरिडीह नहीं ले जाकर जमुआ अस्पताल ले जाया गया, जहां चिकित्सकों ने जांच के बाद उसे मृत घोषित कर दिया.
एंबुलेंस चालक शव को जमुआ अस्पताल में ही छोड़कर चले गए. परिजनों को शव को घर लाने के पैसे नहीं थे. दलित युवक के मौत की जानकारी पाकर भाजपा के चंदौरी मंडल अध्यक्ष रविंद्र पंडित और सांसद प्रतिनिधि सुनील साव ने एम्बुलेंस की व्यवस्था कर शव को मृतक के घर नैयाडीह गांव भिजवाया. परिजनों के पास अंतिम संस्कार के पैसे भी नहीं थे. कुछ स्थानीय लोगों की मदद से शव का अंतिम संस्कार किया गया.
परिजनों के अनुसार मृतक के पिता रूपन भुला की मौत वर्षों पहले हो चुकी है. छोटन के बड़े भाई अनूप भुला की भी मौत तीन वर्ष पहले पैसे की कमी के कारण इलाज नहीं करा पाने पर हुई थी. इस परिवार पर मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा है. जैसे-तैसे यह परिवार जीवन यापन कर रहा है. परिजनों को उम्मीद थी कि छोटन नौकरी कर परिवार को मुसीबत से उबारेगा, लेकिन उसकी भी मौत हो चुकी है.
इस परिवार की दयनीय स्थिति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि परिवार के सभी सदस्य एक जर्जर खपरैल मकान में रहने को विवश हैं. घर में दरवाजा भी नहीं है. छत भी आधा अधूरा है. मृतक की मां ने बताया कि महीनों पहले परिवार का राशन कार्ड स्थानीय डीलर ने ले लिया. इसके बाद से राशन मिलना भी बंद है. बड़े पुत्र की मौत के बाद उसकी पत्नी कांति देवी को अब तक सरकारी आवास मुहैया नहीं की गई है. इस परिवार ने स्थानीय जनप्रतिनिधियों और जिला प्रशासन से मदद की गुहार लगाई है.
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