Nishikant Thakur
सत्ता के लिए कुछ भी असंभव नहीं है, इसलिए हम कुछ भी करेंगे, पर सत्ता हासिल करके रहेंगे, राजनीतिज्ञों की सदैव यही लालसा रहती थी, और आगे भी रहेगी, हमेशा रहेगी. चुनाव के समय में जो आश्वासन दिए जाते हैं और जिसके लिए वे प्रतिबद्ध दिखाई देते हैं, क्या कभी उसे पूरा होते हुए देखा गया है? हो सकता है कि कुछ सुलझे हुए राजनीतिज्ञ अपने द्वारा किए गए वादों को पूरा करते हों, लेकिन अमूमन ऐसा होता नहीं है. यदि ऐसा हुआ होता तो आजादी के बाद से आज 75 वर्ष पूरे होने पर भारत, अमेरिका के बराबर खड़ा होता और आज भारतीयों को उन विकसित राष्ट्रों में अपनी जीविकोपार्जन के लिए नहीं जाना पड़ता. यह कहना ठीक है कि अपनी रोजी-रोटी के लिए हम कहीं भी जाने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन यह हम भारतीय मानसिकता से ही सोचते हैं, क्योंकि यदि सच में ऐसा हुआ होता तो अमेरिकी भी भारत में रोजगार ढूंढने आते हमें दिखते. ऐसा भी नहीं है कि भारत का विकास नहीं हुआ है. भारत खूब विकसित हुआ है. सच तो यह है कि आजादी के बाद हमारे पास था ही क्या! सब कुछ लूटकर अंग्रेजों ने भारत को खोखला कर दिया था, इसलिए तो तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल ने कहा था कि यदि भारत अयोग्य राजनीतिज्ञों के हाथों में चला गया, तो वह खण्ड-खण्ड में विभाजित होकर स्वयं नष्ट हो जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और यदि चर्चिल आज जीवित होता, तो भारत की एकजुटता और उसके विकास को देखकर शायद आत्महत्या कर लेता.
देश के विकास को पंख लग गए होते यदि हमारे राजनीतिज्ञ आपसी कलह से ऊपर उठकर देश के विकास को ऊपर उठाना चाहते. अब तक यही माना जाता है कि स्वतंत्रता की लड़ाई में कई ज्ञातअज्ञात क्रांतिकारियों ने अपनी भूमिका का निःस्वार्थभाव से निर्वहन किया और उनके योगदान को अज्ञात होने के कारण सराहा नहीं जा सका. इसलिए उन्हें हम भूल गए, लेकिन आज स्वतंत्रता संग्राम में जिनके योगदान को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है, वह कांग्रेस ही है. हां, यह बात ठीक है कि 1925 में विजयादशमी के दिन डॉ. हेडगेवार ने एक संस्था को स्थापित किया तथा जिसका नाम राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ रखा गया. डॉ. हेडगेवार का उद्देश्य राष्ट्रीय स्वाधीनता ही था. संघ के स्वयंसेवकों को जो प्रतिज्ञा दिलाई जाती थी, उसमें राष्ट्र की स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए तन-मन-धन से आजन्म और प्रामाणिकता से प्रयत्नरत रहने का संकल्प होता था.
संघ स्थापना के तुरन्त बाद से ही स्वयंसेवक स्वतंत्रता संग्राम में अपनी भूमिका निभाने लगे थे. लेकिन, इसके साथ ही जिसकी देशभक्ति पर हमेशा से सवाल उठता आया है, वह आरएसएस ही है. उससे हमेशा से एक सवाल पूछा गया कि आपका देश की आजादी में क्या योगदान था? जी हां, यहां बात राष्ट्रीय स्वयंसवेक संघ की ही हो रही है. वही आरएसएस, जिससे हमेशा यह पूछा जाता है कि आपने 52 साल तक नागपुर मुख्यालय में तिरंगा क्यों नहीं फहराया? क्या वाकई संघ ने देश की आजादी में हिस्सा नहीं लिया था? डॉ. हेडगेवार ने जब इस संस्था की स्थापना की, तब भारत आजादी के लिए अपनी लड़ाई लड़ रहा था. भारत को पूर्ण आजादी की बात सबसे पहले कांग्रेस अधिवेशन में संघ के संस्थापक ने ही की थी. जो भी हो, यह गहन शोध का विषय है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने स्वतंत्रता की लड़ाई में भाग लिया या नहीं, लेकिन आज यदि विशेषज्ञों की बात करें तो उनका कहना यही है कि आजादी की लड़ाई में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का कोई योगदान नहीं था और उसी कुंठा का परिणाम है कि आज उसके संगठन के सहयोगी भारतीय जनता पार्टी द्वारा कांग्रेसविहीन भारत की बात की जाती है. काश, इस प्रकार के भ्रम को दूर कर मजबूती से गरीबी हटाओ, बेरोजगारी हटाओ, महंगाई कम करो का नारा दोनो पक्षों द्वारा दिया जाता.
सन 1947 में भारत देश की जनसंख्या एक अनुमान के मुताबिक 33 करोड़ थी, लेकिन देश की आजादी के बाद जो आधिकारिक रूप से भारत की जनगणना की गई थी, वह वर्ष 1951 में की गई थी. तब भारत की जनसंख्या लगभग 36 करोड़ थी. ब्रिटिश राज में भारत में जनगणना 10 वर्ष में होती थी. आज भी उसी परंपरा को हमारे देश में निभाया जाता है और हर 10 साल के बाद जनगणना की जाती है. शिक्षा के मामलों में सभी राजकीय और राजकीय सहायता प्राप्त संस्थानों में विश्वविद्यालय स्तर तक शिक्षा निःशुल्क थी. हालांकि, शुल्क लेने वाले कुछ निजी संस्थान भी थे, शिक्षा का प्रबंधन मुख्य रूप से राज्य की जिम्मेदारी थी.
आजादी के समय साल 1947 में प्रति व्यक्ति आय केवल 249.6 रुपये सालाना थी. अब यदि आज से हम इन सभी मामलों में देश के विकास को देखें और वर्ल्ड पॉपुलेशन रिव्यू की एक ताजा रिपोर्ट को मानें तो भारत की जनसंख्या पहले ही चीन की जनसंख्या को पार कर चुकी है. वर्ल्ड पॉपुलेशन रिव्यू ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 2022 के अंत तक भारत की जनसंख्या 1.417 बिलियन (लगभग 10 बिलियन) हो चुकी थी. भारतीय शिक्षा प्रणाली के पास के मुद्दे और खण्ड का अपना हिस्सा है, जिसे हल करने की आवश्यकता है, ताकि बच्चों को बेहतरीन शिक्षा प्रदान की जा सके, जो देश का भविष्य हैं. पिछले कुछ वर्षों में, भारतीय शिक्षा प्रणाली में बहुत कुछ बदल गया है, लेकिन फिर भी, कई खामियां हैं, जिन्हें हल करने की आवश्यकता है. एनएसओ के हालिया आए डाटा के मुताबिक, भारत की प्रति व्यक्ति आय 1,72,000 रुपये प्रतिवर्ष हो गई है.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.