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पीक आवर्स में ओला-उबर और रैपिडो से सफर महंगा, देना होगा 2 गुना किराया

Tanushree Sen

 

Ranchi :   महंगाई और अन्य आर्थिक दिक्कतों से परेशान मीडिल क्लास के लिए एक और परेशानी बढ़ाने वाली खबर सामने है. अब अगर आप ओला, उबर या रैपिडो बुक कराते हैं, तो आपको ज्यादा भाड़ा, यानी कि फेयर चुकाने पड़ेंगे. केंद्र सरकार ने इससे संबंधित फैसला ले लिया है. 

 

केंद्र सरकार ने ओला, उबर, रैपिडो जैसे कैब एग्रीगेटर कंपनियों के लिए जो नई गाइडलाइंस जारी की है, उसके मुताबिक ये कंपनियां पीक आवर में सामान्य से 2 गुना तक किराया वसूली कर सकती है. चलिये अब हम आपको बताते हैं, केंद्र सरकार ने जो नई गाइडलाइन जारी की है, उसमें क्या-क्या है और आखिर यह पीक आवर होता क्या है और इसका कितना असर आप पर पड़ने वाला है. 


पीक आवर्स में वाहनों की डिमांड होती है ज्यादा

सबसे पहले हम पीक आवर्स को समझते हैं. क्योंकि इस पीक आवर्स में कैब बुक कराने पर अब आपको ज्यादा किराया देने पड़ेंगे. पीक ऑवर्स यानी, वह समय, जिस वक्त वाहनों की ज्यादा डिमांड होती है. यानी सुबह जिस वक्त लोग काम के लिए घर से निकलते हैं या काम खत्म करने के बाद घर से लौटते हैं.

 

इस दौरान वाहनों की डिमांड बढ़ जाती है. इसलिए इसे पीक आवर कहा जाता है. सामान्य तौर पर सुबह के 9.30 बजे से 11.00 बजे तक और शाम के 5 बजे से 7.30 बजे तक के वक्त को पीक आवर माना जाता है. 

 

पीक आवर्स में कैब बुक कराने वालों पर पड़ेगा असर

केंद्र सरकार ने ओला, उबर और रैपिडो जैसी कैब एग्रीगेटर कंपनियों के लिए नई किराया गाइडलाइंस जारी की है, जिनका सीधा असर यात्रियों और ड्राइवरों दोनों पर पड़ेगा. नए दिशा-निर्देशों के अनुसार, ज्यादा मांग वाले वक्त में ये कंपनियां बेस फेयर से अधिकतम 2 गुना तक किराया वसूल सकती है,

 

जबकि नॉन-पीक ऑवर्स में किराया बेस फेयर के कम से कम 50% तक होना अनिवार्य होगा. हालांकि सरकार का कहना है कि नई नियमों का उद्देश्य यात्रियों को मनमाने किराया वसूली से बचाना और फेयर स्ट्रक्चर में पारदर्शिता लाना है. लेकिन इसका असर उन लोगों की जेब पर पड़ेगा, जो पीक आवर्स में कैब बुक कराते हैं.

 

नई गाइडलाइंस लागू करने के लिए राज्य सरकारों को तीन महीने का समय 

केंद्र सरकार ने सभी राज्य सरकारों को इन गाइडलाइंस को लागू करने के लिए तीन महीने का समय दिया है. इसके साथ ही, ड्राइवर और कंपनियों के बीच रेवेन्यू शेयरिंग को लेकर भी स्पष्ट दिशा-निर्देश तय किए जाएंगे. ये नियम सिर्फ कैब्स ही नहीं, बल्कि बाइक टैक्सी और ऑटो-रिक्शा जैसे अन्य एग्रीगेटर्स पर भी लागू होंगे. 

 

गाइडलाइंस के अनुसार, ऐप्स पर यात्रियों को किराया, टैक्स और अन्य चार्ज की पूरी जानकारी पहले से दिखाना अनिवार्य होगा और कोई भी कंपनी डिजिटल या कैश पेमेंट में भेदभाव नहीं कर सकेगी. साथ ही, सर्ज प्राइसिंग यानी डायनामिक किराया प्रणाली पर भी निगरानी रखी जाएगी, ताकि कंपनियां अनुचित रूप से कीमतें न बढ़ाएं. 

 

एग्रीगेटर कंपनियों को लेने होंगे डिजिटल रजिस्ट्रेशन और लाइसेंस 

नए नियम में ग्राहक सेवा और शिकायत समाधान के लिए भी निश्चित समयसीमा तय की गई है. वहीं, सभी एग्रीगेटर कंपनियों को राज्य परिवहन विभाग से डिजिटल रजिस्ट्रेशन और लाइसेंस प्राप्त करना होगा. सरकार का मानना है कि इस नई नीति से यात्रियों को सुविधा, पारदर्शिता व सुरक्षा देना, ड्राइवरों के हितों की रक्षा करना और कंपनियों की मनमानी पर नियंत्रण रखना आसान हो जायेगा. 

 

इन नियमों के लागू होने से यात्रियों को किराये की अस्थिरता से राहत मिलने की उम्मीद है. साथ ही ड्राइवरों को भी स्थायी आय का बेहतर अवसर मिल सकता है.

 

कंपनियों ने दिशा-निर्देश का नहीं किया पालन तो लाइसेंस रद्द या लगेगा जुर्माना  

सरकार का मानना है कि इससे राइडिंग सर्विस सेक्टर में एक समान नीति लागू होगी, जिससे छोटे-बड़े सभी एग्रीगेटर्स के लिए प्रतिस्पर्धा अधिक न्यायसंगत बनेगी. इसके अलावा, केंद्र ने राज्यों को यह भी निर्देश दिया है कि वे इन गाइडलाइंस के आधार पर स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार संशोधित नियम बना सकते हैं, लेकिन मूल ढांचा वही रहेगा.

 

सरकार यह भी सुनिश्चित करना चाहती है कि उपभोक्ताओं को भरोसेमंद, सुरक्षित और किफायती परिवहन सुविधा मिले. यदि कंपनियां इन दिशा-निर्देशों का पालन नहीं करतीं, तो उनके खिलाफ लाइसेंस रद्द करने या जुर्माना लगाने जैसी कार्रवाई भी की जा सकती है. कुल मिलाकर, ये गाइडलाइंस तकनीक आधारित ट्रांसपोर्ट सिस्टम को अधिक जिम्मेदार, पारदर्शी और उपभोक्ता हितैषी बनाने की दिशा में एक अहम कदम मानी जा रही है.

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