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जनजातीय भाषाएं अब भी उपेक्षित, छात्रों के भविष्य पर संकट

Ranchi : झारखंड राज्य के गठन को 25 वर्ष पूरे हो चुके हैं, लेकिन जनजातीय समाज की भाषा, संस्कृति और शिक्षा को लेकर जो सपने संजोए गए थे, वे अब भी अधूरे नजर आ रहे हैं. रांची विश्वविद्यालय में जनजातीय भाषाओं के अध्ययन के लिए विभाग की स्थापना तो की गई, परंतु इसे सशक्त बनाने की दिशा में अब तक ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं.   https://lagatar.in/wp-content/uploads/2025/05/Untitled-13-1.gif"

alt="" width="600" height="400" />   शुरू हुई पढ़ाई, लेकिन शिक्षकों की भारी कमी : मुंडारी, कुड़ुख, संथाली, हो और खड़िया जैसी जनजातीय भाषाओं को विश्वविद्यालय स्तर पर पढ़ाए जाने की शुरुआत हुई है. हालांकि  इन विषयों के लिए प्रशिक्षित शिक्षकों की गंभीर कमी बनी हुई है, जिससे इन भाषाओं में अध्ययनरत छात्रों के भविष्य पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं.     कुड़ुख विभाग की स्थिति चिंताजनक : कुड़ुख भाषा विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. महामनी कुमारी ने जानकारी दी कि वे जून माह में सेवानिवृत्त हो रही हैं. वर्तमान शैक्षणिक सत्र (2024–26) में विभाग में 60 सीटों में से 41 छात्राओं ने नामांकन लिया है, परंतु विभाग में केवल दो स्थायी शिक्षक कार्यरत हैं. वर्षों से असिस्टेंट प्रोफेसर के पद रिक्त पड़े हैं, जिन्हें भरने की दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की गई है.   https://lagatar.in/wp-content/uploads/2025/05/Untitled-14.gif"

alt="" width="600" height="400" />   13 शोधार्थी बिना मार्गदर्शन के कर रहे शोध : विभाग में इस समय 13 शोधार्थी पंजीकृत हैं, लेकिन शिक्षकों की कमी के कारण उन्हें समुचित मार्गदर्शन नहीं मिल पा रहा है. इससे न केवल शोध की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है, बल्कि छात्रों का आत्मविश्वास और उत्साह भी कम हो रहा है. सरकार से ठोस नीति की मांग : जनजातीय भाषाओं को संरक्षण और सशक्त बनाने के उद्देश्य से अब राज्य सरकार से ठोस नीति बनाने और त्वरित कार्रवाई की मांग जोर पकड़ने लगी है. शिक्षकों एवं प्रोफेसरों के रिक्त पदों को शीघ्र भरने की आवश्यकता बताई जा रही है, ताकि जनजातीय छात्र-छात्राओं का भविष्य सुरक्षित किया जा सके और उनकी भाषाई विरासत को सहेजा जा सके.
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