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आदिवासी संगठनों ने मोदी सरकार से की अपील, जनगणना परिपत्र में हो ट्राइबल कॉलम

Ranchi: राज्य में धर्म कॉलम का विवाद अभी भी सुलझ नहीं पाया है. जनसंख्या और धर्म संस्कृति को बचाने की दिशा में संघर्ष शुरू हो गया है. आदिवासियों के लिए अलग धर्म कॉलम अब एक राष्ट्रीय मुद्दा बन चुका है. आंदोलन के लिए कभी सड़क पर उतरकर, कभी विधानसभा में अपनी आवाज उठाकर मांग की जा रही है. सोमवार को नगड़ा टोली स्थित सरना भवन में राष्ट्रीय आदिवासी इंडीजीनस धर्म समन्वय समिति के मुख्य संयोजक अरविंद उरांव, सह संयोजक राजकुमार कुंजाम और महिला नेत्री निरंजना हेरेंज टोप्पो ने मीडिया से बात करते हुए यह बात कही. उन्होंने कहा कि 1 जनवरी 2025 से देश में डिजिटल तरीके से जनगणना का कार्य शुरू होने की संभावना है. इस दौरान देश के सभी राज्यों के सीमाओं को सील किया जाएगा. 1961 के बाद से आदिवासियों के लिए जनगणना परिपत्र से धर्म कॉलम को हटा दिया गया है. तब से आदिवासी समुदाय हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध, जैन आदि धर्मों का अनुसरण कर रहे हैं. इसे बचाने के लिए आदिवासियों के लिए 2025 की जनगणना परिपत्र में अलग ट्राइबल कॉलम को पुनः लागू किया जाए, ताकि आदिवासियों/जनजातियों के अस्तित्व, आस्था और पहचान को संरक्षित किया जा सके. मीडिया से बात करते हुए आदिवासी संगठनों ने कहा है कि अलग धर्म कॉलम के लिए कई बार आंदोलन हो चुके हैं. बंगाल और झारखंड ने भी आदिवासियों के लिए अलग धर्म कॉलम के लिए कैबिनेट से प्रस्ताव भेजा है. झारखंड, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह से लेकर दिल्ली के जंतर-मंतर तक लगातार धरना-प्रदर्शन होते आ रहे हैं. कई राज्यों से केंद्र सरकार को जनगणना-प्रपत्र में आदिवासियों के लिए अलग कॉलम के लिए प्रस्ताव भेजा गया है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा जो प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा गया है, उसे झारखंड राज्य में लागू करवाया जाए. प्रेस वार्ता में धार्मिक अगुवा मुन्ना टोप्पो, विरसा कच्छप, अजय टोप्पो, बाबूलाल महली, उमेश पहान, रमेश चंद्र उरांव, सुरेश शंकर उरांव, विजय उरांव, संदीप तिर्की, विक्की पाहन सहित अन्य लोग उपस्थित थे.
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