Baijnath Mishra
राम जी जो न करायें. उनकी मर्जी के आगे किसी की चलने वाली नहीं है. तुलसीदास ने लिखा ही है-होइहिं सोइ जो राम रचि राखा, को करि तर्क बढ़ावहिं साखा. इतना ही नहीं राम तर्क से परे हैं. राम अतर्क बुद्धि मन बानी. उनकी व्याप्ति सर्वत्र है, लेकिन उनकी प्राप्ति प्रेम और श्रद्धा से ही संभव है- प्रभु व्यापक सर्वत्र समाना, प्रेम ते प्रकट होंहि मैं जाना. उसी राम के बाल रूप की प्राण प्रतिष्ठा अयोध्या में होने जा रही है. यह विघ्नसंतोषियों को रास नहीं आ रहा है. लेकिन वे निरुपाय हैं. वे मंदिर निर्माण के विरुद्ध सारे प्रयत्न कर चुके हैं. यह मंदिर न कोई सरकार बनवा रही है और न कोई पार्टी. इसे बनवा रहा है सुप्रीम कोर्ट से अधिसूचित एक ट्रस्ट. अलबत्ता इस निर्माण कार्य की देख रेख में उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लगे हैं और प्राण प्रतिष्ठा के मुख्य यजमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी होंगे. इसलिए सियासत होनी ही थी.
पहले कहा गया कि प्रधानमंत्री संवैधानिक पद पर रहते हुए यह कार्य कैसे कर सकते हैं. यह धर्मनिरपेक्षता के विरुद्ध है. लेकिन यह सवाल ठहर ही नहीं पाया, क्योंकि सोमनाथ मंदिर के नवनिर्माण कार्य के मुख्य यजमान तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद थे और उस निर्माण कार्य के प्रणेता गृह मंत्री सरदार पटेल थे. जहां तक धर्मनिरपेक्षता की बात है, संविधान में यह शब्द है ही नहीं. जिस सेक्युलर शब्द की चर्चा हर सियासी मोड़ और बुद्धि विलासी जलसे में बार-बार होती है, वह भी मूल संविधान में नहीं है. संविधान सभा में बहस के दौरान बाबा साहेब अंबेडकर सहित कतिपय विद्वानों ने कहा था कि संविधान में माइनॉरिटी और सेक्युलरिज्म दोनों कैसे रह सकते हैं. इनमें से किसी एक को हटाना पड़ेगा. चूंकि जवाहरलाल नेहरु माइनॉरिटी पर अड़ गये, इसलिए सेक्युलर शब्द हटा दिया गया था. इसे प्रस्तावना में जोड़ा गया. 1976 में जब इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगा कर पूरे देश को जेलखाना बना दिया था और लोकतंत्र को हवा में टांग दिया गया था. खैर जब धर्मनिरपेक्षता का पटाखा फुस्स हो गया, तब यह कहा गया कि प्रधानमंत्री के बदले मुख्य अतिथि राष्ट्रपति को बनाया जाना चाहिए. लेकिन मुख्य अतिथि कौन होगा, इसका फैसला तो ट्रस्ट को ही करना था. हां गनीमत यह रही कि इस फैसले के खिलाफ अदालत की कुंडी नहीं खटखटाई गयी. शायद पता था कि इससे केवल भद्द ही पिटती.
पहले राउंड में पिछड़ने के बाद विपक्ष ने एक नया शिगूफा छोड़ा कि राम पर भाजपा का एकाधिकार नहीं है. राम सबके हैं. इसलिए दूसरे दलों को भी निमंत्रण मिलना चाहिए. ट्रस्ट ने यह मांग मान ली या यों कहें कि विपक्ष ने यह मांग रखने में हड़बड़ी कर दी. अब देश की नामचीन हस्तियों तथा विपक्षी नेताओं को नेवता मिल गया है. जिन्हें नहीं मिला है, उन्हें भी शायद मिल ही जाये. लेकिन इससे विपक्ष फंस गया है. उसकी हालत भइ गति सांस छछूंदर केरी, उगिलत लीलत प्रीत घनेरी यानी स्थिति दुविधा की है. सांप छूछूंदर को निगले या उगले गंवाना उसे ही है. जिन्हें निमंत्रण नहीं मिला है या नहीं मिलेगा उनकी मौज है. लेकिन जिन्हें ट्रस्ट ने आदरपूर्वक बुलाया है, वे क्या करें? जायें तो एक बड़ा वोट बैंक नाराज हो जाएगा, न जायें तो उससे भी बड़े वोट बैंक के बीच उन्हें रामद्रोही के तमगे से फिर प्रामाणिक रूप से विभूषित करने का प्रयास होगा. इनमें सबसे मुसीबत कांग्रेस, सपा, राजद, बसपा वगैरह की है. सपा, बसपा, राजद के नेताओं को बुलाया गया है या नहीं, अभी स्पष्ट नहीं हुआ है. लेकिन कांग्रेस के नेता क्या करें?
क्या सोनिया गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे और अधीर रंजन चौधरी 22 जनवरी को अयोध्या जायेंगे? इस बाबत कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल का कहना है कि पार्टी इस मुद्दे पर समय से फैसला लेगी. वैसे यह कोई कश्मीर जैसा मुद्दा है नहीं. लेकिन कामरेड सीताराम येचुरी ने कह दिया है कि वह नहीं जाएंगे. इसके दो कारण हो सकते हैं. वामपंथी धर्म को अफीम मानते हैं, लेकिन दुर्गोत्सव मनाते भी हैं और उसमें शरीक भी होते हैं. दूसरा यह कि वामपंथी भारत के तो हैं, पर भारतीय नहीं हैं. कोई भी वामदल इंडियन नहीं है. इन सबके साथ ऑफ इंडिया लगा हुआ है. लेकिन कांग्रेस तो इंडियन नेशनल कांग्रेस है. फिर येचुरी तो खुद सीताराम हैं, वह राम के बालरूप के दर्शन करने क्यों जायें. केरल की मुस्लिम लीग ने चेतावनी दी है कि कांग्रेस नेता उस दिन अयोध्या गये तो कुट्टी हो जाएगी.
ओवैसी कह चुके हैं कि वायनाड से राहुल केवल मुसलमानों के भरोसे जीते हैं. ममता बनर्जी भी नहीं जाएंगी. वह बंगाल के तीस फीसदी वोटरों को नाराज नहीं करना चाहतीं. उद्धव ठाकरे को न्योता मिल गया है. वो जाएंगे भी जरूर, क्योंकि उन्हें अपनी विरासत की चिंता है. स्टालिन नहीं ही जाएंगे. सपा सांसद डिंपल यादव कह चुकी हैं कि निमंत्रण मिला तो वे जाएंगी. यानी भाजपा विरोधी गंठबंधन नेवता पुराने के सवाल पर भी आपस में भिड़ेगा. लेकिन लाख टके का सवाल यह है कि जो लोग आज तक राम मंदिर में सवा रुपए का बतासा तक नहीं चढ़ाये , कभी राम जी की ड्योढ़ी पर नहीं गये, जो वहां मस्जिद बनाने का उद्घोष कर चुके हैं, जो राम के अस्तित्व पर सवाल खड़े कर चुके हैं, जो मंदिर निर्माण लटकाते, अटकाते, भटकाते रहे हैं, वे प्राण प्रतिष्ठा समारोह में जायें भी तो किस मुंह से. बहाने ढूंढे जा रहे हैं. निर्मोही अखाड़े को महत्व क्यों नहीं दिया गया ? उसको क्यों नहीं बुलाया गया, इसको क्यों बुलाया गया आदि. लेकिन जिन्हें बुलाया गया है, वे तो जायें. अब भी समय है, भूल-चूक सब माफ हो जाएगी, क्योंकि राम तो स्वयं कहते हैं कि सम्मुख होहि जीव मोहि जबही, कोटि जनम अघ नासहिं तबही. यानी यदि जीव राम के सम्मुख छल -कपट छोड़ कर चला जाये तो उसके करोड़ों जन्म का पाप नष्ट हो जाता है.
यहां तो बात सिर्फ एक ही जन्म की है जाएंगे तो अधिक से अधिक भरिणी, भद्रा का संयोग परेशान करेगा, लेकिन नहीं गये तो प्रेत बाधा पीछा नहीं छोड़ेगी. आखिर सामने वे हैं जिन्होंने अयोध्या में राममंदिर के लिए कुर्बानियां दी हैं, गोलियां-लाठियां खायी हैं, जेल यातनाएं सही हैं, अपनी चार राज्य सरकारें कुुर्बान की हैं, राजनीति में अछूत बन कर काम किया है, खुद को होम कर दिया है. जापर कृपा राम कर होई तापर कृपा करे सब कोेई. गांधी जी के रघुपति राघव राजाराम के विरोध का सामर्थ्य अब कांग्रेस में नहीं बचा है. उसका दुर्भाग्य यह है कि वह गांधी को मानती है, खुद को उनका सोल एजेंट बताती है, लेकिन गांधी जी की नहीं मानती है.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.