Mahak Singh Tarar
क्या आपकी याददाश्त में इस स्तर का कोई आंदोलन है? देश छोड़ो विदेश में हो? जिस समय आंदोलन स्टार्ट हुआ क्या आप पंजाब की 32 जत्थेबंदियों के बारे में जानते थे? क्या आपने पहले दिन से नहीं सुना था कि हम छह महीने की तैयारी करके आये है? क्या आपको याद है GT रोड की बेल्ट छोड़कर तीन चौथाई हरियाणा इसमें पहले दिन शामिल नहीं था?
क्या आपको याद है, इन पंजाब वाली जत्थेबंदियों द्वारा करनाल का नाका टूटने के बाद UP वालों ने शामिल होना तय किया था. याद करें कितने दिन बाद पलवल का नाका चालू हुआ. उसके कितने समय बाद शाहजहांपुर का नाका चालू हुआ. कितने दिनों बाद हनुमान बेनीवाल जैसे शामिल हुए और अब कौन से नेता है, जो शामिल होने के लिए इस्तीफे भी दे रहे हैं?
तो किसान आंदोलन की खास बातें समझने की जरुरत है
एक – यह आंदोलन पंजाब की जत्थेबंदियों ने आपसी विवाद भुलाकर जब खड़ा किया, तब बाकी किसान खतरे को समझ तक नहीं पाये थे.
दो – इसमें से अधिकतर जत्थेबंदियां सड़क पर आने से पहले जबरदस्त प्लानिंग कर चुकी थी.
तीन – इन जत्थेबंदियों ने सड़क की तैयारी के अलावा कागज-कलम की लड़ाई भी बराबर लड़ी.
चार – इनका सामूहिक नेतृत्व होने के कारण आजतक कोई अलग-अलग बिक नहीं पाया.
पांच – संसाधनों की सपोर्ट, अकालियों, कांग्रेस इत्यादि की भले हो पर इन्होंने खुद के हितों को उन दलों को गिरवी नहीं रखा है.
छह – इनमें औरतों और नई पीढ़ी का बराबर समावेश है.
मैं कई जगह पढ़ चुका हूं. जो सरकार से हुई बेनतीजा वार्ताओं से आक्रोशित हैं. गुरनाम जैसे नेताओं को भी आवेशित हालत में सुन रहा हूं. कुछ किसानों की 26 तारीख को सरकार से भिड़ने की व्यग्रता समझ रहा हूं. क्या किसानों को अभी तक कुछ हासिल नहीं हुआ है?
पहली जीत – क्या सरकार ने जत्थेबंदियों को रोकने में कोई कोर कसर बाकी छोड़ी थी. फिर भी वह दिल्ली की छाती पर बैठे हैं. ये उनकी पहली जीत है.
दूसरी जीत – मात्र 4 साल पहले सुनारों की सबसे अमीर फिनांसर लॉबी के 3 लाख आंदोलनकारियों ने 42 दिन लगातार हड़ताल करके सरकार के सामने घुटने टेक दिए थे. पर किसान मोदी के सामने डटे हुए हैं. ये दूसरी जीत है.
तीसरी जीत – किसान सीधे अंबानी-अडानी से लड़े, और उन्हें करोड़ों के इश्तेहार देकर खेती से कोई वास्ता ना होने की सफाई देनी पड़ रही है. ये किसानों की जीत है.
चौथी जीत – इस आंदोलन की नींव रखे जाने के बाद देश मे इस साल आंध्र और तमिलनाडु तक में MSP पर रिकॉर्ड तोड़ खरीदी हो रही है. ये किसानों की चौथी जीत है.
पांचवी जीत – पीएम मोदी के बाजूओं को पहचान कर पहली बार उस शहंशाह की इमेज के साथ अंबानी-अडानी के चौकीदार होने का परमानेंट तमगा चस्पा कर देना, किसान की पांचवी जीत है.
छठी जीत – अंबानी के चैनल्स (जिनकी 95% घरों तक पहुंच होने के बावजूद) द्वारा कृषि कानूनों के फायदे गिनवाने के बावजूद कृषि कानूनों की कमियों को आमजन तक पहुंचाने ओर सरकार द्वारा डेढ़ दर्जन गलतियां स्वीकार करवाना किसानों की छठी जीत है.
सातवीं जीत – खट्टर सरकार द्वारा ऐलान करने के बावजूद जमीन पर हेलीकॉप्टर ना उतार पाना. पानीपत का प्रोग्राम रद्द करना. गणतंत्र दिवस पर नेताओं के सब प्रोग्राम कैंसिल करना भी किसानों की सातवीं बड़ी जीत है.
आठवीं जीत – पंजाब के आह्वान पर UP, हरियाणा, राजस्थान, ओड़िशा, केरल के लोगों का साथ जुड़ना. SYL जैसे मुद्दों पर सरकार की मुंह की खाना. सरकार द्वारा किसानों पर ख़ालिस्तानी तमगा चिपकने वाली विफलता किसानों की आठवीं बड़ी जीत है.
नौवीं जीत – ऑस्ट्रेलियाई, ब्रितानी, यूरोपियन, कनाडाई संसदों में किसान आंदोलन पर चर्चाएं होना किसानों की नौवीं बड़ी जीत है.
दसवीं जीत – सुप्रीम कोर्ट (SC) द्वारा सरकार के साथ खड़े होने के बावजूद किसानों पर कोई मोरल प्रेशर ना आना. कमेटी की बात का हवा में गायब हो जाना. और सरकारी कमेटी के अध्यक्ष तक के पद छोड़ कर किसानों के साथ खड़ा होने की घोषणा करना किसानों की दसवीं बड़ी मोरल जीत है.
पर मेरी नजर में सबसे बड़ी जीत है कि वो पंजाब का समाज जो अपनी समस्याओं का समाधान देश छोड़ कनाडा में ढूंढ रहा था. वो हरियाणा समाज जो सिर्फ नेताओं की पर्ची-खर्ची के अलावा दारू पीने-पिलाने को ही इज्जत समझता था, वो वेस्ट UP का समाज जिसने बाबा टिकैत की गलत को गलत कहकर पहाड़ से भिड़ जाने वाली विरासत को बर्बाद कर दिया था. ये सारे समाज ना सिर्फ दमदारी से लड़ना सीख गये हैं. बल्कि इसके साथ ही साथ मानसिक तौर पर इतना जागरूक हो गये हैं कि अब अगले दो दशकों तक पूंजीपतियों-नेताओं का नेक्सक्स इतनी आसानी से इन्हें लूट नहीं सकेगा.
कहते हैं जवानी का हासिल या तो मोहब्बत होती है या कहानी. जिस जवानी की कहानी नहीं वो जीवन बर्बाद है. मैं अपनी नई-नई जवानी के फरवरी 1988 के मेरठ कमिश्नरी के धरने की कहानियां आजतक सुनाता हूं. किसानों को आपकी युवा पीढ़ी के पास आज अपनी निजी कहानी है. जो पिछली पीढ़ी की सदारत में इस पीढ़ी ने हासिल की है. ये कहानी उन्हें अगले कई दशकों तक खूंखार लड़ाका बनायें रखेगी.
बुजुर्गों आपकी नस्ल संभालने वाली बहुत बड़ी जीत हो चुकी है. और अंतिम बात अगर आंदोलन में चढ़ूनी, टिकैत, हनुमान, योगेंद्र यादव जैसे नेता चुपचाप अपने स्थान पर ही रहे और उन पंजाबी जत्थेबंदियों को, जो पहले दिन से जानते हैं कि छह महीने लगेंगे. उन्हें ही नेतृत्व करने दें तो बजट सत्र में विपक्ष को भी अपनी पोजीशन बचानी बेहद भारी पड़ेगी.
या तो विपक्ष सरकार के साथ लड़कर मरेगा या सरकार के अंदर हनुमान बेनीवाल टाइप बड़ी टूट स्टार्ट होगी. खट्टर जैसे खेत में खत्म होंगे, दुष्यंत चौटाला जैसे मिट्टी में मिल जाएंगे, मोदी की इमेज दिन पर दिन कट्टर व जिद्दी इंसान की बनती जाएगी. जिसका चुनावी नुकसान भी होगा. आप बस राजेवाल जैसों को सपोर्ट करते जाओ. भले कानून हटे ना हटे, MSP मिले ना मिले,
आपकी जीत आपके मुस्तकबिल में लिखी जा चुकी है. अब जीत की ज़िम्मेदारी है कि कब वरण करती है किसानों का.
डिस्क्लेमरः ये लेखक के निजी विचार हैं.