बेमिसाल शिक्षक: पढ़ाने के जुनून के आगे आड़े नहीं आई दिव्यांगता, गरीब बच्चों को निःशुल्क पढ़ा रहे सिकंदर कुदादा

Jamshedpur : कहावत है जहां चाह वहां राह. यह साबित करके दिखाया है दोनों पैर से दिव्यांग शिक्षक सिकंदर कुदादा ने. शिक्षा की ज्योति जलाने की राह में उनकी दिव्यांगता कभी आड़े नहीं आई. बागबेड़ा से सटे मतलादीह गांव में रहकर सिकंदर कुदादा एक छोटे से कमरे में स्थानीय बच्चों को पढ़ाकर उन्हें सक्षम बना रहे हैं. चाईबासा से सटे राजनगर के रहने वाले 45 वर्षीय सिकंदर कुदादा ने बीकॉम तक की पढ़ाई की है. राजनगर में ही एक निजी स्कूल से शिक्षा दान की शुरुआत की. लेकिन वर्ष 2010 में बीमारी एवं पैर में फैले इंफेक्शन के कारण उनके दोनों पैर काटने पड़े. दोनों पैर कटने के बाद भी सिकंदर कुदादा के मन में पढ़ाने की ललक कम नहीं हुई. राजनगर से वे बागबेड़ा से सटे मतलाडीह आ गए. यहां एक छोटे से कमरे में बैठकर अगल-बगल के बच्चों को पढ़ाना शुरू किया. धीरे-धीरे पूरे गांव में दिव्यांग शिक्षक की चर्चा होने लगी. इसके बाद बच्चों की संख्या भी बढ़ने लगी. छोटे से कमरे में बच्चों को पढ़ाने के लिए जगह कम पड़ने लगी. इसे देखते हुए सिकंदर कुदादा ने सरकार की ओर से मिलने वाली दिव्यांगता पेंशन से बेंच डेस्क खरीद कर बच्चों को पढ़ाना शुरू किया. आज उनके यहां कक्षा 1 से लेकर कक्षा 10 तक के बच्चे पढ़ते हैं.
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