NewDelhi : उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आज शुक्रवार को राष्ट्रपति द्वारा विधेयकों पर निर्णय लिये जाने को लेकर समयसीमा निर्धारित करने संबंधी सुप्रीम कोर्ट के हाल के फैसले पर गहरी चिंता व्यक्त की.
उपराष्ट्रपति संविधान के अनुच्छेद 142 में प्रदत्त सुप्रीम कोर्ट की शक्तियों पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि यह सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के हाथ परमाणु बम लगने जैसा है,
#WATCH | Delhi | Vice-President Jagdeep Dhankhar says, “…We cannot have a situation where you direct the President of India and on what basis? The only right you have under the Constitution is to interpret the Constitution under Article 145(3). There, it has to be five judges… pic.twitter.com/U7N9Ve3FZx
— ANI (@ANI) April 17, 2025
उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत ने ऐसे लोकतंत्र की कल्पना नहीं की थी, जहां न्यायाधीश कानून बनायेंगे, कार्यपालिका का काम स्वयं संभालेंगे और एक सुपर संसद की तरह काम करेंगे.
श्री धनखड़ ने कहा, हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहां अदालतें राष्ट्रपति को निर्देश दें. श्री धनखड़ राज्यसभा के प्रशिक्षुओं के एक समूह को संबोधित कर रहे थे
उन्होंने कहा, संविधान का अनुच्छेद 142 लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ एक परमाणु मिसाइल बन गया है. जान लें कि संविधान का अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार प्रदान करता है कि वह पूर्ण न्याय करने के लिए कोई भी आदेश, निर्देश या फैसला दे सकता है, चाहे वह मामला कोई भी हो,
मामले की तह में जायें तो पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार निर्धारित किया कि राष्ट्रपति राज्यपाल द्वारा विचारार्थ सुरक्षित रखे गये विधेयकों पर संदर्भ प्राप्त होने की तिथि से तीन माह के भीतर निर्णय ले.
श्री धनखड़ ने चिंता जताई कि सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति को निर्देश दिया है. हम कहां जा रहे हैं? देश में क्या हो रहा है? कहा कि हमें बेहद संवेदनशील होना होगा. यह कोई समीक्षा दायर करने या न करने का सवाल नहीं है.
हमने इस दिन के लिए लोकतंत्र का सौदा नहीं किया था. राष्ट्रपति को समयबद्ध तरीके से फैसला करने के लिए कहा जा रहा है और यदि ऐसा नहीं होता है, तो संबंधित विधेयक कानून बन जाता है.
उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘हमारे पास ऐसे न्यायाधीश हैं जो कानून बनायेंगे, जो कार्यपालिका का कार्य स्वयं संभालेंगे, जो सुपर संसद के रूप में कार्य करेंगे और उनकी कोई जवाबदेही नहीं होगी, क्योंकि देश का कानून उन पर लागू नहीं होता.
धनखड़ ने कहा कि उनकी चिंताएं ‘बहुत उच्च स्तर’पर हैं और उन्होंने अपने जीवन में कभी नहीं सोचा था कि उन्हें यह सब देखने का अवसर मिलेगा. उन्होंने उपस्थित लोगों से कहा कि भारत में राष्ट्रपति का पद बहुत ऊंचा है.
राष्ट्रपति संविधान की रक्षा, संरक्षण एवं बचाव की शपथ लेते हैं, जबकि मंत्री, उपराष्ट्रपति, सांसदों और न्यायाधीशों सहित अन्य लोग संविधान का पालन करने की शपथ लेते हैं.
उपराष्ट्रपति ने कहा, संविधान के तहत कोर्ट के पास एकमात्र अधिकार अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान की व्याख्या करना है. लेकिन इसके लिए पांच या उससे अधिक न्यायाधीशों की आवश्यकता होती है.
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने दिल्ली हाईकोर्ट के एक जज के घर से जले हुए नोटों के बंडल मिलने का जिक्र भी किया. कहा कि 14-15 मार्च में दिल्ली में एक न्यायाधीश के आवास पर एक घटना हुई. सात दिनों तक किसी को इस घटना की जानकारी नहीं हुई.
21 मार्च को एक समाचार पत्र द्वारा इसका खुलासा किया गया. देश के लोग इस विस्फोटक चौंकाने वाले खुलासे पर चिंतित और परेशान थे. उन्होंने पूछा कि न्यायाधीशों की एक समिति मामले की जांच कर रही है, ले
किन जांच कार्यपालिका का क्षेत्र है, जांच न्यायपालिका का क्षेत्र नहीं है. सवाल उठाया कि क्या समिति भारत के संविधान के तहत है? क्या तीन न्यायाधीशों की यह समिति संसद से निकले किसी कानून के तहत कोई स्वीकृति रखती है?
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