Shyam Kishore Chaubey
पितृपक्ष पश्चात त्योहारी सीजन आ गया. शक्ति की अधिष्ठातृ देवी दुर्गा विराज चुकीं. अजीब संयोग रहा. पितृपक्ष की शुरुआत चंद्रग्रहण और अंत सूर्यग्रहण से हुआ. यह अलौकिक दृश्य भारत में नहीं दिखा. अलबत्ता जम्मू-कश्मीर और हरियाणा पर छाया लौकिक चुनावी ग्रहण छंटा भी नहीं कि झारखंड और महाराष्ट्र पर राजनेताओं ने उसे तारी कर दिया. झारखंड में चुनाव से काफी पहले जो कुछ होने लगा, उसे देखकर ‘पंचायत’ वाला विनोद भौंचक रह गया होगा. विनोद ही क्यों, हर झारखंडी भौंचक है. चुनाव की घोषणा के साथ कौन से तमाशे होंगे, राजनीतिक मंच के अभिनेता नेता ही जानें. यूं, हाल-फिलहाल के दो राजनीतिक मंचन दिलचस्पी जगा रहे हैं. कर्नाटक में कोर्ट के आदेश से ही सही, एक तो बहुचर्चित चुनावी बॉन्ड मामले में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पर एफआईआर, दूसरा जमीन घोटाला मामले में मुख्यमंत्री एस सिद्धारमैया के विरुद्ध ईडी जांच. पता नहीं क्यों गैर एनडीए मुख्यमंत्रियों पर किसी न किसी हीले ईडी, सीबीआई की जांच बैठ ही जाती है.
झारखंड में देखिए भानु प्रताप शाही, मधु कोड़ा और अब कमलेश सिंह एनडीए खेमे में जा टिके. हरिनारायण राय और एनोस एक्का भी आ जाते तो क्या बात थी! ये न केवल 2006-08 में राज-पाट के संगी-साथी थे, अपितु होटवार के भी साथी रह चुके हैं. अपने जमाने के धाकड़ जदयू नेता रमेश सिंह मुंडा की हत्या के मामले में जमानत पर छूटे गोपाल कृष्ण पातर यानी राजा पीटर पुनः जदयू में जा बैठे. मजे की बात यह कि वे रमेश सिंह मुंडा के परवर्ती काल में जदयू के विधायक रहे, मंत्री भी बने. राजनीतिक मंच ऐसे-ऐसे खेल-तमाशे करता रहता है. नीतीश बाबू यानी सुशासन बाबू यानी पलटू चाचा ने सरयू राय और राजा पीटर को पलटवा कर चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह और जूनियर चाणक्य हिमंता बिस्वा सरमा के दिमाग को चकरघिन्नी बना डाला. बैसाखी भी कमाल की चीज होती है न! राजा पीटर 2009 में तत्कालीन सीएम और प्रसिद्ध आदिवासी नेता शिबू सोरेन को मुंडा बेल्ट तमाड़ के उपचुनाव में पटखनी देकर हीरो बने थे. अपराजेय समझे जानेवाले तत्कालीन सीएम रघुवर दास को 2019 में सरयू राय भाजपा त्याग बतौर निर्दलीय उम्मीदवार धूल चटाकर छा गये थे. आखिरकार वे भी आ ही गये एनडीए फोल्डर में. गनीमत है ‘जहाज का पंछी‘ नहीं बने या नहीं बनने दिया गया. विनोद को क्या! मन हुआ तो अपना वोट डालकर तमाशा देखता रहेगा.
झारखंड में चुनाव का ऐलान जब होगा, तब होगा. माहौल अभी से गर्म कर दिया गया है. किसी भी पक्ष में सीट शेयरिंग नहीं हुई है. पेंच-खुरपेंच हर ओर है. फिर भी एनडीए पक्ष का यहां-वहां प्रायः हर दिन सीरीज में केंद्रीय मंत्री या कोई न कोई मुख्यमंत्री अपना लहरा मार जा रहा है. पीएम नरेंद्र मोदी ने इन लहरों का जमशेदपुर में उद्घाटन भाषण तो किया ही, हजारीबाग में एक धमक और दिखा गये. दूसरे पक्ष से सीएम हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी कल्पना सोरेन मोर्चा संभाले हुए हैं. इनका एक पार्टनर राजद सीटों के लिए पैंतरे भांज रहा है. कांग्रेस हमेशा की तरह चुनाव के इंतजार में उलझी हुई है. वह कभी खुद से उलझती है तो कभी मेजर पार्टनर झामुमो से. बावजूद इसके सरकारी पक्ष दनादन कुछ न कुछ बांट रहा है और आगे के भी सपने बांट रहा है. दूसरी ओर से भी कम वादे नहीं किये जा रहे. अरे, वे इतना ही दे रहे हैं, हम इतना देते. विस्थापन की जद से उठाकर हमें स्थापित करें, फिर देखिए क्या-क्या न देंगे. अभी ही इतनी घोषणाएं. पता नहीं, चुनावी घोषणा पत्रों में क्या-क्या अटा पड़ा रहेगा. सभी झारखंडी संस्कृति की दुहाई दे रहे हैं, लेकिन साथ ही साथ प्रकारांतर से लोभी और मंगता-खाता साबित करने में कोई हिचक नहीं दिखा रहे. सरकारी खजाने से खैरात लुटाकर या लुटाने के ख्वाब दिखाकर वोट के बदले नोट का यह अजब किस्सा क्या आम्बेदकर ने सपने में भी सोचा होगा? नहीं न! ऐसा तो विनोद ने भी नहीं सोचा, लेकिन देख जरूर रहा है.
झारखंड और महाराष्ट्र के लिए यह त्यौहारी सीजन चुनावी सीजन भी है. यह शुभ-शुभ गुजर जाये तो अच्छा, वरना आंध्र में जो लड्डू विवाद उठाया गया था, उसका पहला हश्र सुप्रीम कोर्ट की डांट-फटकार के रूप में सामने आया. हरियाणा चुनाव के ऐन पहले बहुचर्चित राम रहीम को चार साल में 11वीं मर्तबा पैरोल मिल गई. पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के कम से कम सात चुनावों के पहले उसको यह सुविधा मिली. अगली शोचनीय-विचारणीय खबर यह कि देश की जेलों में 76 फीसद कैदी अंडरट्रायल हैं. और बड़ी खबर यह कि ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद गौ हिताय भारत-भ्रमण पर निकले तो अरुणाचल में ईटानगर एयरपोर्ट पर रोक दिये गये, लेकिन महाराष्ट्र में गौ माता राज्य माता घोषित कर दी गईं.
महाराष्ट्र और अरूणाचल का फर्क देखिए. दोनों राज्यों में भाजपा पॉलिटिकल पार्टनर है. ध्यान दें, झारखंड के संग-संग बहुत संभव है, महाराष्ट्र में भी चुनाव हो. फिलहाल पूर्व चुनावी बयार में सभी पक्ष यत्र-तत्र-सर्वत्र एक-दूसरे पर तुष्टीकरण की राजनीति का आरोप लगाते फिर रहे हैं. काश! वे खुद तुष्ट हो लेते. वह नेता ही क्या जो तुष्ट हो जाय! उसके सीने में महत्वाकांक्षाओं का सागर लहराता रहता है, भले ही वह उम्र के आखिरी पड़ाव पर हो. किसी पर 75 का होने पर रिटायरमेंट का दबाव है तो कोई 83 का होकर भी कहता फिर रहा है, उनके पराभव के बाद ही मरूंगा मैं. विनोद को अभी बहुत कुछ देखना है लेकिन वह फिलहाल भजे जा रहा है,
या देवि सर्वभूतेषु तुष्टिरूपेण संस्थिता.
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः..
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.
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