Shivendra
कोरोना वायरस का आना शायद 2015 में ही निर्धारित हो चुका था. जी हां, अभी ये बात आपको हजम नहीं हो शायद, मगर इस रिपोर्ट को पढ़कर ये बात आप भी मानेंगे. वायरस ने दुनिया भर में अपनी पकड़ मज़बूत कर ली है. दुनिया के हर छोर पर उपस्थित साइंसदान, डॉक्टर्स और रिसर्चर्स इस सवाल का जवाब तलाशने में लगे हुए हैं कि आखिर ये वायरस आया कहां से? कहां हुई इसकी उत्पत्ति? ये कोई जैविक हथियार है? या इसके पीछे है और कोई साज़िश?
तमाम तरह के सवाल हैं लेकिन आज हम आपको जो बताने जा रहे हैं, वो सुन कर आप सकते में आ जायेंगे. अगर मैं आपको कहूं कि कोरोना महामारी की कहानी और किरदार सब कुछ 2015 में ही तय कर लिए गये थे… तो? वैसे ये हम नहीं कह रहे हैं, ये कह रहा है 2015 में छपे एक मैगजीन का कवर फ़ोटो, जिसमें राजनीतिक हस्तियां, काल्पनिक चरित्र और पॉप कल्चर आइकन शामिल हैं. हालांकि, यह अत्यंत प्रतीकात्मक हैं. लेकिन इनको मिलाकर या अलग अलग देखें, तो इसमें कई घटनाएं छिपी हुई हैं, जो 2015 से अब तक घटी हैं.
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द इकोनॉमिस्ट नामक पत्रिका ने 2015 में “द वर्ल्ड इन 2015” नाम से एक इश्यू प्रकाशित किया. इसके कवर पर अजीबोगरीब चित्र हैं. कुछ ऐसे, जो संदेह को जन्म देते हैं. मैगजीन के कवर पर कोरोना वितरक के रूप में दुनिया भर से आलोचना झेल रहे चीन की कोरोना फैलाने में भूमिका का खुलासा है. आइये इन तस्वीरों को गौर से देखें :
दो शक्ल वाला ग्लोब
ग्लोब का एक शक्ल पश्चिम की ओर स्थित है जबकि दूसरी शक्ल विक्षिप्त दिखाई देती है. क्या यह पूर्व और पश्चिम के बीच टकराव का प्रतीक था? वैसे, कवर में “पूर्व के उदय” का जिक्र करते हुए कुछ अन्य प्रतीक हैं. मगर परेशान करने वाली बात यह है कि गुस्सेल ग्लोब के तरफ एक मशरूम क्लाउड यानी जिस तरह का क्लाउड परमाणु बम के जाने के बाद होता है वो दिखाई दे रहा है और जासूसी उपग्रह को भी अंतरिक्ष में जाते देखा जा सकता है. जो तीसरे विश्व युद्ध और परमाणु सम्पन्न देशों के बीच की तल्खी को बयां कर रहा है.
बांसुरीवाला या पाइपर
ये पाइपर एक जर्मन किंवदंती जिसमें एक व्यक्ति हैमलिन शहर के बच्चों को लुभाने के
लिए अपनी जादुई बांसुरी का इस्तेमाल करता था, और अचानक फिर कभी नहीं दिखायी पड़ा. ऐसे में ये संभव है कि यह तस्वीर को प्लेग या महामारी से या फिर बड़े पैमाने पर मौत का प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया गया हो. या बड़े पैमाने पर प्रवास के लिए. जो कि कोरोना महामारी से फैली बर्बादी से हूबहू मेल खाता है.
लड़का और panic” खेल
पाइपर के ठीक नीचे, एक युवा लड़का पंगु बना, “panic” नामक एक खेल देख रहा है. जिसमें “फेडरल रिजर्व” और “ची” शब्द लिखे दिखते हैं, जिसमे शायद ची का अर्थ चीन से है, जो गेम में शीर्ष पर दिख रहा है. अब वर्तमान में भी इसे देखिये panic का खेल जो दुनिया भर में फैला है और खेल के शीर्ष में चीन आसीन भी है. लड़का खेल को ऐसे बेबस देख रहा है जैसे मज़बूर दुनिया कोरोना का तमाशा देख रही है.
इस कवर में जो सबसे जबर या कहे कि मौजूदा हालात पर सटीक बैठती चीज़ है वो है, चीन के झंडे का स्पीडो पहने हुए एक पांडा जो अपने मसल्स को फ्लेक्स करते हुए इस चीज को चित्रित कर रहा है कि चीन शक्ति प्राप्त कर रहा है. फिर इसके आगे एक सूमो पहलवान है, जो एक बड़ी बैटरी रखता है, जिस पर पोलेरिटी + और – साफ दिख रही है. ये पश्चिम से पूर्व की ओर विश्व शक्ति के स्विच होने की तरफ इशारा कर रहा है. तस्वीर में मौजूद एक भूत जिसके हाथों में हॉलिडे नाम की किताब है, यानी जो हॉलिडे पर जाएंगे उन्हें मरने को तैयार रहना होगा. इसे कोरोना काल मे यात्रा पर गए उन लोगों से भी जोड़ कर देखा जा रहा है जिनकी मृत्यु covid-19 की चपेट में आने से हो गयी.
तस्वीर में ऐसी कई चीजों की भविष्यवाणी अप्रत्यक्ष रूप से की गयी है
जैसे प्रधानमंत्री मोदी के हाथ के नीचे पिग्गी बैंक वाली तस्वीर के बाद भारत मे नोटबन्दी हुई थी. यानी लॉजिक से क्या कोरोना की भी तैयारी पहले से थी? क्या चीन अब शक्ति हासिल करने के लिए नीचता की पराकाष्ठा पर उतर आया है?
ऐसे अनगिनत सवाल हैं जो इस मैगज़ीन की कवर ने खड़े कर दिए हैं. वाक़ई कोरोना से जुड़ी अब तक कि कई साज़िशों या कॉन्सपिरेसी थियोरीज से इतर इस कवर में ऐसे तथ्य हैं जो दुनिया की बड़ी शक्तियों की नीयत पर बड़ा सवालिया निशान छोड़ते हैं.






