बैंककर्मियों को गरिया कर हम अपना भला नहीं कर रहे, जरुरत है उनके साथ खड़े होने की

Surjit Singh बैंककर्मियों के दो दिवसीय हड़ताल को लेकर सोशल मीडिया पर तरह-तरह की बातें चल रही हैं. बहुत सारे लोग बैंक कर्मियों पर तंज कस रहे हैं. कह रहे हैः “ये यही डिजर्व करते हैं.” “ये यही डिजर्व करते हैं” यह बात सचमुच कष्ट देने वाला है. बैंक कर्मियों के प्रति ऐसी बातें नहीं होनी चाहिए. उन्हें गरिया कर हम एक बार फिर से विक्टिम (पीड़ित) को ही एक्यूज्ड (आरोपी) बनाने का काम कर रहे हैं. ऐसा करके एक बार फिर से वही किया जा रहा है, जो इस देश में कृषि बिल का विरोध करने वाले किसानों के साथ किया गया. रोजगार मांगने वाले छात्रों के साथ हुआ. सीएए, एनआरसी का विरोध करने वालों के साथ हुआ. कुछ लोग यह भी कह रहे हैं: “हम कहते थे ना, अब देखो-अब झेलो.” ऐसा कह कर बैंक कर्मियों की आलोचना करने वालों को समझना होगा कि यह “दोस्ताना” आलोचना नहीं है. यह तो गुरुर है. राजनीति है. सियासत और अधकचरी समझ वाली बात है. ऐसे लोग इस बात को नहीं समझ रहे हैं कि राजनीतिक सोंच, तर्क, विचार, ज्ञान, बुद्धि, विवेक और व्यवहार के मामले में हर किसी का स्तर सामान नहीं होता है. यह सही है कि आज बैंक कर्मी बैंकों के निजीकरण का विरोध कर रहे हैं. क्योंकि उन्हें लगता है कि बैंकों का निजीकरण होने से उनका नुकसान होने वाला है. यह भी सच है कि इन्हीं बैंककर्मियों में से अधिकांश ने यह जानते हुए कि मोदी सरकार दुबारा आयी, तो देश की संपत्ति को बेचेगी, वर्ष 2019 में भाजपा को वोट दिया. यह भी सच है कि जब देश के मुसलमान, छात्र, स्वास्थ्य कर्मी, बिजली कर्मी, रेलकर्मी और किसान आंदोलन कर रहे थे, तब सबको देशद्रोही, खालिस्तानी कहने वालों का लाखों बैंककर्मियों ने समर्थन किया होगा. मोदी सरकार के निर्णयों के साथ खड़े रहे होंगे. इन सबके बावजूद यह ठीक नहीं है कि आज उन्हें यह कहा जाये कि “सबका नंबर आयेगा.” जरुरत है उनके साथ खड़े होने की. सहयोग देने की. आप जिन सरकारी नीतियों को गलत समझते हैं, उसके खिलाफ खड़े होने वालों के साथ खड़े होने की. वरना “अगला नंबर आपका है.”
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