Ranchi: झारखंड विधानसभा चुनाव के परिणामों के बाद नई सरकार ने अपने कार्यभार को संभालते हुए नई दिशा में कदम बढ़ाए हैं. यह जीत केवल इंडिया गठबंधन के राजनीतिक दलों और उनके नेताओं की नहीं है, बल्कि इसमें उन सामाजिक कार्यकर्ताओं की भी अहम भूमिका रही है, जिन्होंने जमीनी स्तर पर जनता से संवाद स्थापित कर बदलाव की दिशा तय की. समाज में परिवर्तन के लिए निरंतर प्रयासरत ऐसे ही एक सामाजिक कार्यकर्ता धीरज इस चुनाव परिणाम को जनसरोकार और लोकतांत्रिक मूल्यों की जीत मानते हैं. उनके अनुसार यह सफलता केवल सत्ता पाने तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि इसे सरकार के कार्यों में सामाजिक न्याय और जनकल्याण के रूप में परिलक्षित करने की जरुरत है.
इसे भी पढ़ें – निलंबित IAS पूजा सिंघल की बेल पर अब 13 को HC में सुनवाई
झारखंड चुनाव: मेहनतकश वर्ग की जीत
झारखंड विधानसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन की जीत को कई विश्लेषकों ने भाजपा के नफरती एजेंडा के खिलाफ झारखंडी अस्मिता की जीत बताया है. बौद्धिक धरातल पर इस तरह सरलीकरण किया जा सकता है. लेकिन भौतिक आर्थिक धरातल पर इस जीत के अन्य पहलू भी नजर आयेंगे.
मेहनतकश वर्ग की आकांक्षाओं के आगे शासक वर्ग की मजबूरी
झारखंड में इंडिया गठबंधन की प्रचंड ऐतिहासिक जीत को मेहनतकश जनता के आर्थिक जरूरतों के प्रति शासक वर्ग की नीतियों में हो रहे बदलाव के रूप में भी देखने की जरुरत है. इस जीत को सिर्फ झारखंड नहीं बल्कि अन्य राज्यों के चुनावी परिणाम के संदर्भ में भी देखना चाहिए. झारखंड की तरह महाराष्ट्र में भी सत्ताधारी दल ने ही पुनः ऐतिहासिक बहुमत से सरकार बनाई है. एक साल पहले मध्य प्रदेश में भी सत्ताधारी भाजपा ने ऐतिहासिक बहुमत के साथ पुनः सरकार बनाई थी.
तीनों राज्यों में सत्ताधारी दल या गठबंधन ने ही दोबारा ऐतिहासिक बहुमत के साथ सरकार बनाई तो इसकी मुख्य वजह है, चुनाव के कुछ महीना पहले महिलाओं के लिए सीधा नकद हस्तांतरण योजना की शुरुआत की. मध्यप्रदेश में लाडली बहन योजना, महाराष्ट्र में माझी लड़की बहिन योजना एवं झारखण्ड में मईया सम्मान योजना.महाराष्ट्र हो या मध्य प्रदेश हो या झारखण्ड, महिलाओं के लिए नकद हस्तांतरण योजना शुरु करना शासक वर्ग की मजबूरी थी.
झारखंड में शासक वर्ग की मजबूरी
झारखंड में गठबंधन सरकार ने सर्व जन पेंशन योजना के अलावा 4 साल तक कोई विशेष काम नहीं किया था. इसलिए जनता का सामना वे चुनाव में नहीं कर सकते थे. हेमंत सोरेन यह जानते थे कि सिर्फ झारखंडी अस्मिता या जेल जाने जैसे भावनात्मक मुद्दों के आधार पर उन्हें वोट नहीं मिल सकता था, ऐसे में जन आकांक्षाओं के आगे हेमंत सरकार के सामने मंईयां सम्मान योजना एक मात्र विकल्प था. जवाब में भाजपा ने भी मजबूरन गोगो दीदी योजना के तहत 2100 रु देने का वादा कर जनता में एक आर्थिक अकांक्षा पैदा कर दी. हेमंत सोरेन सरकार किसी तरह का खतरा नहीं उठाना चाहती थी. राजनैतिक प्रतिस्पर्धा में मंईयां सम्मान योजना की राशि को बढ़ाकर 2500 रु कर दिया गया. मेहनतकश जनता ने अघोषित रूप से एक आर्थिक शर्त रख दी है, जिसके आगे शासक वर्ग के तमाम राजनौतिक दल मजबूर हैं.
मंईयां सम्मान योजना दूरगामी परिणाम
आने वाले दिनों में मंईयां सम्मान योजना के सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक परिणाम देखने को मिल सकते हैं
सामाजिक परिणाम
मानव व्यापार पर अंकुश: बिहार के बाद झारखंड भारत का सबसे गरीब राज्य है. झारखंड उन प्रमुख राज्यों में से है, जहां सबसे ज्यादा मानव व्यापार होता है. झारखंड की लाखों लड़कियां महानगरों में मजबूरन घरेलू कामगार के रूप में कार्यरत हैं. 2003 के एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार राज्य की लगभग 44 हजार लड़कियां मानव व्यापार का शिकार थी. उम्मीद है कि मंईयां सम्मान योजना की 2500 रु की राशि झारखंड में मजबूरी में हो रहे लड़कियों के पलायन और मानव व्यापार को काफ़ी हद तक कम या लगभग खत्म कर देगी.
बाल विवाह पर अंकुश: एक रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड में लगभग एक तिहाई लड़कियों का बाल विवाह होता है. कुछ भूमिहीन परिवारों में तो लोग आर्थिक मजबूरी में लड़कियां बेच भी देते हैं. मंईयां सम्मान योजना बहुत हद तक बाल विवाह पर अंकुश लगाएगी. क्योंकि एक आर्थिक रूप से बेहद कमजोर परिवार लड़कियों को बोझ नहीं संपत्ति के रूप में देखेगा
शिक्षा पर असर: मंईयां सम्मान योजना से लाभान्वित एक बड़ा तबका जिसके अंदर अपने बच्चों को पढ़ाने की आकांक्षा है, इसे बच्चों की शिक्षा पर खर्च करेगा.
इसके साथ ही उच्च शिक्षा में भी लड़कियों की तादाद बढ़ेगी. झारखंड में उच्च शिक्षा में लड़कियों की भागीदारी मात्र लगभग 28% है. कभी-कभी मात्र एक दो हजार रूपए की कमी के कारण परिवार की पूरी पीढ़ी उच्च शिक्षा से वंचित हो जाती है. ऐसी लड़कियां जिनके अदंर पढ़ने की ललक है, लेकिन आर्थिक मजबूरी के कारण पढ़ाई जारी नहीं रख पाती, वे उच्च शिक्षा ग्रहण करने में सक्षम होंगी.
आर्थिक परिणाम
स्वयं सहायता समूहों पर असर: बहुत संभव है कि मंईयां सम्मान योजना आर्थिक लेन देन के लिए बने स्वयं सहायता समूहों पर भी प्रभाव डाले. क्योंकि एक परिवार में 2500 रु से लेकर 7500 रु तक की राशि आने पर कर्ज के लिए महिलाओं की समूहों पर निर्भरता कम हो सकती है.
बाजार में बहार: लोगों की खरीद शक्ति बढ़ेगी, जिसका असर सीधे तौर पर स्थानीय बाजार में देखने को मिलेगी.
मजदूरी दर: मंईयां सम्मान योजना के बाद श्रमिक वर्ग मजदूरी बढ़ाने की मांग करेंगे. उद्योगपति,पूंजीपति और भू स्वामी वर्ग योजना को बंद करवाने का पूरा प्रयास करेगा.
राजनैतिक परिणाम
भाजपा का अस्तित्व संकट में: अगर हेमंत सरकार अगले पांच साल तक 2500 रु देती रही और भाजपा इसका कोई सशक्त आर्थिक विकल्प नहीं खोज पाई, तो 2029 के चुनाव में भाजपा 10 से कम सीटों पर सिमट सकती है.
क्षेत्रिय अस्मिता के संघर्ष का आर्थिक आधार
मंईयां सम्मान योजना को आधार बना कर झारखंड सरकार केंद्र से अपने बकाया 1 लाख 36 हजार करोड़ की मांग आक्रमक तरीके से कर रही है, जो बिलकुल जायज है. मंईयां सम्मान जैसी योजना आने वाले दिनों में झारखंड के क्षेत्रिय अस्मिता के संघर्ष का सशक्त आर्थिक अधार बन सकती है.
इसे भी पढ़ें –मंगल मुंडा की असामयिक मौत स्वास्थ्य व्यवस्था और प्रशासनिक तंत्र की बड़ी विफलता : बाबूलाल