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जब सब प्राइवेट हो जायेगा तो भूख से संतोषी की मौत पर सवाल किससे पूछेंगे आप

Krishna Kant क्या आपको झारखंड की संतोषी नाम की वह बच्ची याद है, जो भात-भात रटते हुए मर गई थी? अगर नहीं, तो पैदल भागकर रास्ते में जान गंवाते हुए मजदूर तो याद ही होंगे? अब फर्ज कीजिए कि शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, बैंक, उड्डयन, भोजन आदि सब सुविधाओं का निजीकरण हो गया है. सारी बुनियादी सुविधाएं निजी प्लेयर्स के हाथों में हैं. अब ऐसे में कोई संतोषी भूख से मरती है तो जवाबदेही किसकी होगी? क्या हम किसी अंबानी अडानी से पूछ सकते हैं कि वह भूख से क्यों मरी? क्या हम आपदा में अमीर होते लोगों से पूछ सकते हैं कि जनता पैदल भागकर क्यों मर रही है? अगर कोई इलाज के बिना मर जाता है, तो हम सरकार पर सवाल उठाते हैं. ऐसी किसी समस्या पर आप सरकार से सवाल पूछ सकते हैं. हम अपनी चुनी हुई सरकार से मांग करते हैं कि सबको गरिमापूर्ण जीवन जीने की बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराई जाएं. हम अंबानी और अडानी किसी दूसरे कॉरपोरेट से ये मांग नहीं कर सकते. हम उनसे नहीं कह पाएंगे कि फलां इलाके में भुखमरी है, राशन पहुंचाओ. पानी पहुंचाओ. इलाज की सुविधा दो. किस हैसियत से पूछेंगे? सरकार अपनी इसी जवाबदेही से बचकर भागने की फिराक में है. सरकार कोई निजी कंपनी नहीं होती. सरकार मुनाफाखोरों का अड्डा नहीं है. सरकार कल्याणकारी राज्य यानी वेलफेयर स्टेट की अवधारणा पर काम करती है. लेकिन मौजूदा सरकार `खून में व्यापार` का मंसूबा पाले हुए है. इन्हें देश चलाने का इतना ही मतलब समझ में आया है कि मुनाफा कैसे कमाया जाए. इस विध्वंसक समझदारी का ही नतीजा है कि देश की विकास दर साल भर से नेगेटिव चल रही है. भोजन, शिक्षा, मेडिकल, परिवहन, आर्थिकी और सुरक्षा- ये बुनियादी चीजें हैं. सरकार पर दबाव बनाइये कि ये चीजें उसे बिना शर्त देनी पड़ेंगी. जिस पार्टी की सरकार इतना न कर सके, समझ लीजिए वे नकारा लोग हैं. उनको चलता कीजिए. वरना पीढ़ियां भुगतेंगी. डिस्क्लेमरः ये लेखक के निजी विचार हैं.

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