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जब सावधानी चाहिए तो ऐसी लापरवाहियां क्यों?

Deepak Ambastha देश में आज दो मामले चर्चा का विषय हैं. पहला कोरोना या ओमिक्रॉन, दूसरा पंजाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में बड़ी चूक. पहली बात देश दुनिया में ओमिक्रॉन के मामले बेहिसाब बढ़ रहे हैं, भारत के कई राज्य ओमिक्रॉन के संक्रमण से बुरी तरह जूझ रहे हैं, यह ठीक है कि ओमिक्रॉन का खतरा कोविड-19 के अन्य वैरिएंट की तुलना में कम खतरनाक बताया जा रहा है. लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यूएचओ ने चेतावनी दी है की ओमिक्रॉन को हल्के में ना लिया जाए, इसके परिणाम बहुत गंभीर हो सकते हैं. देश में होने वाले रिसर्च भी यह बात कह रहे हैं कि पहले की तुलना में कोविड-19 का यह नया वैरिएंट अपेक्षाकृत कम खतरनाक है. लेकिन वैज्ञानिकों का एक स्कूल ऐसा भी है, जो चेतावनी जारी कर रहा है कि इस वायरस के प्रति लापरवाही बरतना मुसीबत पैदा कर सकता है. इस सोच से इत्तेफाक रखने वाले वैज्ञानिक कह रहे हैं कि अभी तक खोजबीन में यह तय नहीं हो पाया है कि ओमिक्रॉन मानव शरीर पर लंबे समय तक कौन-कौन से दुष्प्रभाव छोड़ सकता है, तो ऐसे में यह मानकर लापरवाही बरतना कि ओमिक्रॉन के मरीज दो-चार दिन की बीमारी के बाद ठीक हो जा रहे हैं तो इससे चिंता की कोई बात नहीं है, ये कहना गलत होगा. वैज्ञानिकों का कहना है कि सुरक्षा ही बचाव का सबसे बेहतर तरीका है और अगर हम अपना बचाव करना छोड़ दें तो यह ऐसा ही होगा जैसे हम किसी शेर के आगे निहत्थे खड़े हो जाएं. यह देखा जा रहा है कि आम आदमी कोरोना वायरस से बचने के उपायों को छोड़ चुका है, जैसे मास्क लगाना, हाथों को धोना समय-समय पर सैनिटाइजर का इस्तेमाल करना सोशल डिस्टेंसिंग. सामान्य आदमी यह तर्क दे रहा है कि चुनाव में नेता रैलियां कर रहे हैं, क्या इससे कोरोना का प्रसार नहीं होता है? निश्चित रूप से इसका दुष्परिणाम समाज को भोगना ही पड़ता है, लेकिन राजनीतिक पार्टियां अदालती आदेश की ओट में चुनावी प्रचार और रैलियां कर रही हैं, सवाल यह है क्या हम उन रैलियों में शामिल नहीं हो रहे हैं, हमें यदि सुरक्षा चाहिए तो यह हमें ही तय करना होगा कि हम ऐसी रैलियों का हिस्सा बने ऐसी सभाओं का हिस्सा बनें या नहीं. पंजाब समेत कई विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं, राजनीतिक पार्टियां चुनाव प्रचार और दांवपेच में लगी हुई हैं इसी क्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मंगलवार अर्थात 5 जनवरी पंजाब में एक सभा को संबोधित करना था. पंजाब के लिए कुछ विकास कार्यों की सौगात देनी थी, लेकिन दुर्भाग्यवश ऐसा हो नहीं पाया और देश में एक दूसरा माहौल बन गया, मामला था प्रधानमंत्री की सुरक्षा में भारी चूक, सड़क मार्ग से फिरोजपुर जाते वक्त प्रधानमंत्री एक फ्लाईओवर पर किसानों के प्रदर्शन के बीच फंस गए और करीब 20 मिनट तक ऐसी स्थिति बनी रही, जब प्रधानमंत्री आगे बढ़ सकते थे ना पीछे लौट सकते थे. इस दौरान पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी से संपर्क साधने की कोशिश हुई, लेकिन मुख्यमंत्री से इस संबंध में कोई बातचीत नहीं हो पायी, इसके राजनीतिक मायने मतलब निकाले जा सकते हैं, हो सकता है यह राजनीति खेल हो, हो सकता है ऐसा ना भी हो, लेकिन इस बात से कौन इनकार कर सकता है कि ऐसा होना नहीं चाहिए था ऐसी चूक अस्वीकार्य है. देश में अब इसे लेकर राजनीति गर्म है, सभी दल इसे अपने-अपने चश्मे से देख रहे हैं. लेकिन यह तो मानना ही होगा प्रधानमंत्री देश का होता है, किसी पार्टी विशेष का नहीं और यदि इस विचार से सहमति हो यह कैसे कहा जा सकता है कि पंजाब में जो कुछ हुआ, वह कोई बड़ी बात नहीं थी. इस घटना को स्वस्थ दिमाग और स्वस्थ विचार से देखना जरूरी है, क्योंकि देश के लिए यह घातक होगा, अगर यह घटना एक ट्रेंड बन जाए तो फिर सुरक्षित कौन रहेगा, देश के सर्वोच्च पदों में से एक प्रधानमंत्री के पद की गरिमा क्या रह जाएगी? विचार करना होगा और निष्पक्षता से विचार करना पड़ेगा कि जब सावधानी चाहिए तो फिर लापरवाही क्यों चाहे वह कोरोना हो या प्रधानमंत्री की सुरक्षा, दोनों ही विषय देश से जुड़े हैं और देश सर्वप्रथम होना ही चाहिए. [wpse_comments_template]  
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